महापर्व छठ बिहार के लोगों का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं।
महापर्व छठ 28 अक्टूबर 2022 से शुरू हो रहा है. इस पूजा में भगवान सूर्य और छठी माता की उपासना की जाती है जिसमें महिलाएं 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास रखती हैं दीपावली के छह दिन के उपरांत कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को छठ पर्व मनाया जाता है। शुक्रवार को नहाय खाय के साथ प्रारंभ हो रहा है। शनिवार को खरना के साथ 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा। यह व्रत संतान की प्राप्ति, सुख-समृद्धि, संतान की दीघार्यु और आरोग्य की कामना के लिए की जाती है इस व्रत में सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करते हैं।
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सीएम नीतीश कुमार ने सूर्यदेव से राज्य की प्रगति, सुख, समृद्धि और शांति की कामना की है। सीएम नीतीश कुमार ने ट्वीट कर लिखा है- लोक आस्था के 4 दिवसीय महापर्व छठ के अवसर पर शुभकामनाएं. यह आत्मानुशासन का पर्व है। लोग शुद्ध अन्तःकरण एवं निर्मल मन से अस्ताचल और उदीयमान भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
CM नितीश कुमार ने ट्वीट के जरिए दी शुभकामनाएं:
लोक आस्था के 4 दिवसीय महापर्व छठ के अवसर पर शुभकामनाएं। यह आत्मानुशासन का पर्व है। लोग शुद्ध अन्तःकरण एवं निर्मल मन से अस्ताचल और उदीयमान भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। भगवान भास्कर से राज्य की प्रगति, सुख, समृद्धि और शांति के लिए प्रार्थना है।
— Nitish Kumar (@NitishKumar) October 28, 2022
28 अक्टूबर को नहाय खाय होगा। इस व्रत में साफ-सफाई का खास ख्याल रखना होता है इसलिए नहाय खाय के दिन महिलाएं नहाने के बाद घर की साफ-सफाई करती हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्ध्य और चौथे दिन उषा अर्घ्य देते हुए समापन होता है।
पहला दिन नहाय खाय से शुरू:
कार्तिक महीने के चतुर्थी के दिन छठ पर्व का पहला दिन जिसे ‘नहाय-खाय’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। उसके बाद व्रती अपने नजदीक में स्थित गंगा नदी,या तालाब में जाकर स्नान करते है। व्रती इस दिन सिर्फ एक बार ही खाना खाते है।
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खाना में व्रती कद्दू की सब्जी ,मुंग चना की दाल, भात का उपयोग करते है। पकाने के लिए आम की लकड़ी और मिटटी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है। जब खाना बन जाता है तो सर्वप्रथम व्रती खाना खाते है उसके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य खाना खाते है ।
दूसरा दिन होता है खरना:
छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती पुरे दिन उपवास रखते है। सूर्यास्त से पहले पानी की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करते है। शाम को चावल गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग कर खीर बनाया जाता है। खाना बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता है। इन्हीं दो चीजों को पुन: सूर्यदेव को नैवैद्य देकर उसी घर में एकान्त रहकर उसे ग्रहण करते हैं।
पुन: व्रती खाकर अपने सभी परिवार जनों एवं मित्रों-रिश्तेदारों को वही ‘खीर-रोटी’ का प्रसाद खिलाते हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ‘खरना’ कहते हैं। चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है। इसके बाद अगले 36 घंटों के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते है। मध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ बनाती है।
तीसरा दिन संध्या अर्घ्य:
छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुयी टोकरी जिसे दौरी कहते है में पूजा के प्रसाद,फल डालकर देवकारी में रख दिया जाता है। वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल,पांच प्रकार के फल,और पूजा का अन्य सामान लेकर दौरी में रख कर घर का पुरुष अपने हाथो से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है।
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यह अपवित्र न हो इसलिए इसे सर के ऊपर की तरफ रखते है। छठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में प्रायः महिलाये छठ का गीत गाते हुए जाती है। सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा का सारा सामान लेकर घुटने भर पानी में जाकर खड़े हो जाते है और डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करते है।
उषा अर्घ्य के साथ होता है समापन:
सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्योदय से पहले ही व्रती लोग घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा हेतु पहुंच जाते हैं सिर्फ व्रती लोग इस समय पूरब की ओर मुंहकर पानी में खड़े होते हैं व सूर्योपासना करते हैं। पंचांग के अनुसार इस वर्ष 31 अक्टूबर को सुबह 06.32 बजे सूर्योदय हो रहा है।
पूजा-अर्चना समाप्तोपरान्त घाट का पूजन होता है। वहाँ उपस्थित लोगों में प्रसाद वितरण करके व्रती घर आ जाते हैं और घर पर भी अपने परिवार आदि को प्रसाद वितरण करते हैं।