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प्रेगनेंसी के आठवें महीने में बरतें सावधानी, जच्चा-बच्चा के लिए बेहद जरुरी!

प्रेगनेंसी के आठवें महीने में आपको विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। वैसे तो प्रेग्‍नेंसी के पूरे नौ महीने ही सावधानियाँ बरतनी होती है। लेकिन आखिरी महीनों में बहुत ज्‍यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है।

जब बच्चे के आने का बेसब्री से इंतजार किया जाता है। वहीं, गर्भवती को डिलीवरी को लेकर घबराहट भी होती है। खासतौर से उनके लिए, जो पहली बार मां बनने जा रही हैं।

प्रेग्‍नेंसी के आठवें महीने में देखभाल:

गर्भवती महिला की जीवनशैली, उसका खान-पान, ये सब गर्भवती और होने वाले शिशु पर सीधा असर डालता है। ऐसे में सही देखभाल जरूरी है। कुछ बातों का भी ध्यान रखें।

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देर तक खड़े रहने से बचें:

इस दौरान आपके बच्‍चे का वजन बढ़ता है जिससे आपके पेट और आस-पास दबाव बढ़ता जाता है। जिससे आपकी पीठ पर भी दबाब बढ़ता है, इससे उठने और झुकने में काफी दर्द होता है।

पूरी नींद लें और पीठ के बल न लेटें:

इस समय बेहद जरूरी है कि आप कम से कम रात में आठ घंटे की नींद लें। काम के साथ साथ आराम भी बेहद जरुरी है इसलिए दिन में भी कुछ देर आराम अवश्‍य करें।

sleeping side

आप अपनी पीठ के बल न लेटें। इस समय आपका वजन बहुत ज्‍यादा बढ़ गया है। पीठ के बल लेटना आपके लिए भी असहज होगा और बच्‍चे के लिए भी। हमेशा बाएँ करवट में सोना या लेटना सही रहता है। इसलिए कोशिश करें कि बाएँ करवट में ही लेटें। अपने टांगों के बीच पिलो रख कर आरामदायक नींद लें।

तनाव से दूर रहें:

इस समय तनाव करने से बच्‍चे के ऊपर भी उसका असर पड़ता है। इसलिए तनाव से दूर रहें।स दौरान आप बहुत से भावनात्मक परिवर्तन महसूस कर रही होंगी। हो सकता है कि आपको डिलीवरी को लेकर मन में डर बना हुआ हो, लेकिन आप बिल्कुल भी तनाव न लें।

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सांस लेने में तकलीफ होना:

बढ़ते गर्भाशय के आकार की वजह से गर्भवती महिला के फेफड़ों में सिकुड़न आ सकती है, जिस वजह से गर्भावस्था का आठवां महीना सांस से जुड़ी परेशानी का संकेत दे सकता है।

सांस लेने में दिक्कत

इसके कारण गर्भवती को सांस लेने में तकलीफ व उसे सांस फूलने की समस्या हो सकती है। हालांकि, इसका शिशु के स्वास्थ्य पर किसी तरह का प्रभाव नहीं देखा जा सकता है।

गर्भावस्था के आठवें महीने में आहार:

फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ

फाइबर युक्त भोजन खाने से प्रेग्नेंसी में कब्ज, गैस व बवासीर के होने का जोखिम कम किया जा सकता है। इसके लिए आहार दैनिक आहार में ओट्स, मौसमी फल, एवोकाडो व हरी सब्जियां शामिल की जा सकती हैं।

विटामिन व मिनरल युक्त खाद्य पदार्थ

 इस दौरान माँ व शिशु को आयरन के साथ ही, कैल्शियम की भी अधिक आवश्यकता होती है। इसलिए, दैनिक आहर में आयरन व कैल्शियम का सेवन भी उचित मात्रा में करें। इसके लिए आहार में हरी पत्तेदार सब्जियां, ड्राई फ्रूट्स, बीन्स व डेयरी उत्पाद को शामिल किया जा सकता है।

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कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा युक्त खाद्य पदार्थ

शरीर की ऊर्जा बनाए रखने के लिए कार्बोहाइड्रेट समेत आहार में प्रोटीन और वसा की मात्रा भी जरूर शामिल करें। इनकी पूर्ति के लिए आहार में मछली, सोया, दूध, बीन्स, अंडा, शकरकंद, सूखे मेवे व आलू जैसे खाद्य शामिल किए जा सकते हैं।

डिलीवरी से जुड़े जोखिम व चिंताएं:

प्रेग्नेंसी का 8वां महीना बच्चे की डिलीवरी व उसके स्वास्थ्य से जुड़े कुछ जोखिम भी उत्पन्न कर सकता है।

समय पूर्व प्रसव

प्रीटर्म लेबर यानी समय पूर्व प्रसव का जोखिम हो सकता है। समय पूर्व डिलीवरी से जन्में शिशु में अविकसित फेफड़े होने की आशंका हो सकती है। ऐसी स्थिति में शिशु के जन्म के बाद डॉक्चर उसे एनआईसीयू यानी नवजात गहन चिकित्सा इकाई (NICU) में रखने का फैसला कर सकते हैं। जहां पर शिशु के स्वास्थ्य व उसके फेफड़ों की देखरेख की जाती है।

गर्भावस्था के आठवें महीन के दौरान स्कैन और परीक्षण

8 महीने की गर्भावस्था होने पर कुछ तरह के स्कैन व परीक्षण भी कराएं जाते हैं, जिसमें शामिल हैंः

  • रक्तचाप व वजन – प्रेग्नेंसी के 8 महीने में माँ व शिशु का स्वास्थ्य कितना संतुलित है, इसके लिए गर्भवती महिला का रक्तचाप व वजन की जांच की जा सकती है।
  • सोनोग्राफी – यह गर्भ में शिशु की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए की जा सकती है।

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  • ग्रोथ स्कैन– ग्रोथ स्कैन एक तरह का अल्ट्रासाउंड ही होता है, जो गर्भ में शिशु की हलचलों, स्थिति व एमनियोटिक द्रव की मात्रा के साथ ही, गर्भनाल की स्थिति भी बता सकती है।
  • नॉन-स्ट्रेस टेस्ट– 8 महीने की प्रेग्नेंसी में नॉन-स्ट्रेस टेस्ट भी शामिल हैं। इस टेस्ट के जरिए गर्भ में शिशु के दिल की धड़कन को सुनने व अन्य शारीरिक हलचलों की पुष्टि करने के लिए की जाती है।

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