यह दिन भी उसके लिए दूसरे दिनों की तरह ही व्यस्त था, जब वह अपने काम के लिए उस दिन घर से निकली. उसने सोचा भी नहीं था कि कुछ मिनट बाद ही उसकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी.
दरअसल सॉफ्टवेयर इंजीनियर मानसी जोशी को एक ट्रक वाले ने टक्कर मार दी थी. इस दुर्घटना ने उनसे उनका एक पैर छीन लिया. उन्होंने उस समय यह सोच लिया था कि वह आगे कभी भी एक नॉर्मल जीवन नहीं जी पाएंगी. मगर हौसलों की बुलंद मानसी जोशी का सफर यहां खत्म नहीं हुआ था. उन्होंने आगे अपने लिए एक ऐसा सफर चुना जिसके बारे में कम ही लोग सोच पाते हैं.
अपने हाल ही के एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘मैं जब अपने दोपहिये वाली गाड़ी से ऑफिस जा रही थी, तभी एक ट्रक ने धक्का मार दिया. ट्रक मेरे पैर के ऊपर से निकल गया. यह उस ट्रक ड्राइवर की गलती नहीं थी, दरअसल, एक पिलर की वजह से वह मुझे देख ही नहीं पाया. डॉक्टरों ने मेरे पैर को बचाने की काफी कोशिश की लेकिन कुछ दिनों के बाद इंफेक्शन के कारण उसे काटना ही पड़ा.’
डॉक्टर ने जब उनसे पैर काटने के बारे में पूछा था तो उनका सीधा सा जवाब यह था कि यह तो मुझे उस हादसे के समय ही पता लग गया था कि ऐसा कुछ जरूर होगा.
वह बताती हैं कि उनके पास उसके बाद दो ही रास्ते थे, पहला यह कि वे इसे अपना दुर्भाग्य मानें और बैठकर इस पर रोएं. और दूसरा यह कि वह इस स्थिति को स्वीकार करके आगे बढ़ें.
जब कभी हॉस्पिटल में उनसे कोई मिलने आता तो वह उसे चुटकुले सुनातीं क्योंकि वह नहीं चाहती थीं कि उनकी वजह से कोई रोए. लेकिन इस घटना के बाद उनका सबसे बड़ा डर यह था कि वह अपने सबसे प्रिय खेल बैडमिंटन शायद ही कभी खेल पाएंगी.
इसके बाद इन्होंने फिजियोथेरेपी और अपने नकली पैर की मदद से चलना सीखने की कोशिश की. उसके बाद उन पैरों के सहारे ही बैडमिंटन खेलना भी शुरू कर दिया. इस दौरान उन्होंने मैच खेलते हुए कई सारे मेडल भी जीते. उसके बाद उन्होंने नेशनल लेवल की बैंडमिटन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया और वहां भी कई मैच जीते.
मानसी बताती हैं कि लोग जब उनसे यह सवाल पूछते हैं कि वह इतना सारा कुछ कैसे कर लेती हैं तो उनका सीधा सा जवाब होता है कि आपको कुछ करने से कौन रोक रहा है.
मानसी ने पैरा-बैडमिंटन इंटरनेशनल में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सिल्वर मेडल जीता. यह टूर्नामेंट इंग्लैंड में आयोजित किया गया था.