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जानिए क्या है-लोहड़ी की ऐतिहासिक दुल्ला भट्टी की कहानी 2

जानिए क्या है-लोहड़ी की ऐतिहासिक दुल्ला भट्टी की कहानी

पंजाब प्रांत का पर्व है लोहड़ी:

मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाने वाला पंजाब प्रांत का पर्व है लोहड़ी। जिसका अर्थ है- ल (लकड़ी)+ ओह (गोहा यानी सूखे उपले)+ ड़ी (रेवड़ी)। इस पर्व के कुछ दिन पहले ही बच्चे ‘लोहड़ी’ के लोकगीत गा-गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। फिर इकट्‍ठी की गई सामग्री को ‍चौराहे के किसी खुले स्थान पर आग जलाते हैं।

मुहल्ले या गांव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है। रेवड़ी और मक्की के भुने दाने अग्नि को  भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बांटी जाती हैं। घर लौटते समय ‘लोहड़ी’ में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में घर पर लाने की प्रथा भी है।

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सूर्य उत्तरायन होने का दिन:

इस उत्सव को पंजाबी समाज बहुत ही जोश से मनाता है। इस पर्व की तैयारी कई दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। इसका संबंध मन्नत से जोड़ा गया है अर्थात जिस घर में नई बहू आई होती है या घर में संतान का जन्म हुआ होता है, तो उस परिवार की ओर से खुशी बांटते हुए लोहड़ी मनाई जाती है। सगे-संबंधी और रिश्तेदार उन्हें इस दिन विशेष सौगात के साथ बधाइयां भी देते हैं।

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लोहड़ी एवं मकर संक्रांति एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण सांस्कृतिक उत्सव और धार्मिक पर्व का एक अद्भुत त्योहार है। लोहड़ी के दिन जहां शाम के वक्त लकड़ियों की ढेरी पर विशेष पूजा के साथ लोहड़ी जलाई जाएगी, वहीं अगले दिन प्रात: मकर संक्रांति का स्नान करने के बाद त्योहार का लुत्फ़ उठाते हैं। इस प्रकार लोहड़ी पर जलाई जाने वाली आग सूर्य के उत्तरायन होने के दिन का पहला विराट एवं सार्वजनिक यज्ञ कहलाता है।

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लोहड़ी की ऐतिहासिक कहानीः

बादशाह अकबर के शासन काल में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न कर के एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय दुल्ला भट्टी नाम का एक नेक दिल डाकू था।

उसने दोनों लड़कियों सुंदरी एवं मुंदरी को उनके चाचा से छुड़ा कर उनकी शादियां कीं। इस मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लड़के वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर दोनों लड़कियों का विवाह करवाया।

दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया।जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का इंतजाम भी न हो सका इसलिए दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डाल कर ही उनको विदा किया। डाकू होकर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों की मदद की ।

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