पितृपक्ष के बाद त्योहारों का समय शुरू :
देशभर में पर्व का सीजन शुरू हो गया है। पितृपक्ष के बाद त्योहारों का समय शुरू होता है।नवरात्रि और दशहरा के समाप्ति के बाद अब करवा चौथ इसके बाद दिवाली का समय नजदीक आ रहा है। इस साल करवा चौथ 8 अक्टूबर को पड़ रहा है। हिंदू कैलेंडर की मानें तो यह पर्व कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।
बात करते है करवा चौथ की करवा चौथ व्रत सुहागिनों का महत्वपूर्ण त्यौहार माना गया है। करवा चौथ व्रत कार्तिक मास के चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को आमतौर महिलाओं द्वारा किया जाता है। महिलाएं करवा चौथ व्रत पति की दीर्घायु की कामना के लिए करती है।
हम आपको व्रत की विधि बताते है : व्रत के दिन सुबह स्नान करने के बाद इस संकल्प को करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’ पूरे दिन बिना पानी के सेवन के साथ रहना चाहिए। इस साल करवा चौथ का व्रत 8 अक्टूबर (रविवार) को है।
- तारीख-8 अक्टूबर, दिन- रविवार, करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 17:55 से 19:09
- चंद्रोदय- 20:14
- चतुर्थी तिथि आरंभ- 16:58 (8 अक्टूबर )
- चतुर्थी तिथि समाप्त- 14:16 (9 अक्टूबर)
महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले उठकर सर्गी खाती हैं। यह खाना आमतौर पर उनकी सास बनाती हैं। इसे खाने के बाद महिलाएं पूरे दिन भूखी-प्यासी रहती हैं। इसके बाद महिलाएं इस दिन शिव, पावर्ती और कार्तिक की पूजा-अर्चना करती हैं।
इसके बाद वे शाम को छलनी से चंद्रमा और पति को देखते हुए पूजा करती हैं। चांद का दीदार करने के बाद महिलाएं पति के हाथों पानी पीकर अपना व्रत तोड़ती हैं। ऐसी मान्यता है कि छलनी से चंद्रमा देखते हुए पति की चेहरा देखना शुभ माना जाता है।
व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार :
यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक द्विज नामक ब्राह्मण के सात बेटे व वीरावती नाम की एक कन्या थी। वीरावती ने पहली बार मायके में करवा चौथ का व्रत रखा। निर्जला व्रत होने के कारण वीरावती भूख के मारे परेशान हो रही थी तो उसके भाइयों से रहा न गया। उन्होंने नगर के बाहर वट के वृक्ष पर एक लालटेन जला दी व अपनी बहन को चंदा मामा को अर्घ्य देने के लिए कहा।
वीरावती जैसे ही अर्घ्य देकर भोजन करने के लिए बैठी तो पहले कौर में बाल निकला, दूसरे कौर में छींक आई। वहीं तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया। वीरावती जैसे ही ससुराल पहुँची तो वहाँ पर उसका पति की मृत्यु हो चुकी थी। पति को देखकर वीरावती विलाप करने लगी। तभी इंद्राणी आईं और वीरावती को बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत करने को कहा।
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वीरावती ने पूर्ण श्रद्धाभक्ति से बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके प्रताप से उसके पति को पुन: जीवन मिल गया। अत: पति की दीर्घायु के लिए ही महिलाएं पुरातनकाल से करवा चौथ का व्रत करती चली आ रही हैं।