ये दौर ऐसा है, जब लोग अपनी जिम्मेदारियां भी कंधे से झटक देते हैं। और इसी दौर में 21 साल की यह लड़की बीते 14 साल से अपने बराबर की एक पूरी शख्सियत को पीठ पर संभाले हुए है। और बाकी बची पूरी जिंदगी उसे संभाले रखने का जज्बा संजाेए हुए है। टीचर अपनी प्रिंसिपल फ्रेंड को गोद में उठाए घूमती है। बचपन से ही दोनों इस तरह एक-दूसरे को सहारा दे रही हैं।
हर रोज सहेली को पीठ पर उठाकर स्कूल लाती है
यह कहानी है, झारखंड की रीना और उसकी सहेली मीना की। रांची से करीब 28 किमी की दूरी पर है उरुगुटू। यहीं गुड़गुड़चुमां के जंगलों के बीच है डिवाइन ओंकार मिशन स्कूल। दोनों सहेलियां इस स्कूल में पढ़ाती हैं। मीना प्रिंसिपल हैं, जन्म से विकलांग। रीना टीचर है, मीना का सहारा भी। हर रोज अपनी सहेली को पीठ पर उठाकर स्कूल लाती है। इसी तरह पहले मीना बच्चों को पढ़ाती है। फिर रीना क्लास लेती है। और यह कोई आज का सिलसिला नहीं है। जब दोनों सात-आठ साल की थीं, तब से चल रहा है। इस बीच न कभी रीना थकी, न मीना हारी।
कहां है स्कूल, कैसे हुई शुरुआत
– रामगढ़ कैंट में डिवाइन अाेंकार मिशन स्कूल की ब्रांच है। दोनों सहेलियों की पहली मुलाकात वहीं हुई थी।
– उस रोज मीना बार-बार स्कूल की सीढ़ियां चढ़ने की कोशिश कर रही थी। ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए। लेकिन चढ़ नहीं पा रही थी।
– पास में खड़ी रीना से यह देखा नहीं गया। मीना को पीठ पर उठाया और ऊपर चढ़ गई। और फिर दोनों चढ़ती चली गईं।
मिसाल हैं दोनों
पहले रामगढ़ से स्कूली पढ़ाई पूरी की। फिर रांची के संजय गांधी मेमोरियल कॉलेज से हायर एजुकेशन। इस बीच तमाम मुश्किलें आईं। मीना के दो भाइयों और इकलौती बहन की मौत। रीना के पिता की हत्या और मां की दूसरी शादी। रीना को उसकी दो छोटी बहनों ने माली मदद दी। दूसरों के घरों में चौका-बर्तन करके। और ऐसे ही सफर चलता रहा, जो आज ऐसे मुकाम पर है, जहां इसकी मिसाल दी जा सकती है।