मुगलों ने भारत पर जब तक शासन किया, हमारी कई सांस्कृतिक धरोहरों को नुकसान पहुंचाया। इतना ही नहीं इस दौरान कई हिंदू मंदिर भी मस्जिदों में बदल दिए गए। अब ऐसे ही सबूत कुतुब मीनार को लेकर सामने आ चुके हैं। कुतुब मीनार के सबूत ZEE NEWS के पास मौजूद है।अंग्रेजों के जमाने की ASI की 150 साल पुरानी एक्सक्लूसिव रिपोर्ट, कुतुब मीनार के इस्लामिक साम्रज्य स्थापित होने से पहले मौजूद होने का अब तक का सबसे बड़ा सबूत है।
#DNA: क्या कुतुब मीनार के नीचे भी मन्दिर है?
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— Zee News (@ZeeNews) May 26, 2022
कई अहम सबूत करते हैं इशारा:
1. कुतुब मीनार के बाईं तरफ़ जो प्रवेश द्वार है, उस पर संवत 259 लिखा हुआ है। संस्कृत में संवत का अर्थ होता है साल। यानी कुतुब मीनार पर अंकित ये अक्षर बताते हैं कि इस स्मारक का निर्माण हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से वर्ष 259 में हुआ।
2. कुतुब मीनार की दीवारों पर अलग अलग आकृतियों वाले पत्थर लगे हैं, जिन पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ है। 1871 की इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़, ये पत्थर और आकृतियां जिस दीवार पर इस्तेमाल हुईं, उस पर घंटियां, कमल और त्रिभुज के आकार के निशान बने हुए थे, जो गुप्त राजवंश के समय के हो सकते हैं। इसलिए हो सकता है कि मुस्लिम शासकों ने इन निशानों को छिपाने के लिए ऐसा किया हो।
3. 1871 में कुतुब मीनार के पास खुदाई के दौरान ASI को हिन्दू देवी लक्ष्मी की दो मूर्तियां मिली थीं। चौथा- अरब के खोजी यात्री इब्न-बतूता ने खुद माना था कि कुतुब मीनार के परिसर में पहले 27 हिन्दू और जैन मन्दिर हुआ करते थे और इसका ज़िक्र इस रिपोर्ट में भी है।
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5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के राजा विक्रमादित्य ने बनवाया:
अगर आप कुतुब मीनार गए हैं तो आपने भी इसके बारे में जरूर वहां पढ़ा होगा। इस मस्जिद का निर्माण वर्ष 1192 में शुरू हुआ था और 1198 तक ये मस्जिद बन कर तैयार हो गई थी। यानी ये मस्जिद कुतुब मीनार से पहले बनाई गई थी।मोहम्मद गौरी के अफगानिस्तान लौटने के बाद जब दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और कुतुबुद्दीन ऐबक ने खुद को स्वतंत्र सुल्तान घोषित किया, तब कुतुब मीनार का निर्माण शुरू हुआ। ये मीनार उसी जगह पर बनाई गई, जहां पहले मन्दिर हुआ करते थे।
भारत सरकार के मुताबिक़, ये मीनार वर्ष 1202 में बननी शुरू हुई थी और कुतुबद्दीन ऐबक के समय में इस मीनार का केवल निचला हिस्सा ही बन पाया था। इसके बाद जब इल्तु-तमिश दिल्ली सल्तनत का बादशाह बना तो उसने इस मीनार की तीन और मंज़िलों का निर्माण कराया। बाद में जब फिरोजशाह तुगलक दिल्ली का बादशाह बना तो उसने भी 15वीं शताब्दी में इसकी पांचवीं और आखिरी मंज़िल का निर्माण कराया। हालांकि, ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा का कहना है कि कुतुब मीनार पहले विष्णु स्तंभ हुआ करता था, जिसे 5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था।
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क्या पहले विष्णु स्तंभ था ये स्मारक?
इस बात के कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी मौजूद हैं। माना जाता है कि विष्णु स्तम्भ, सूर्य और नक्षत्रों का अध्ययन करने के लिए बनाया गया था। इसी वजह से कुतुब मीनार में 25 इंच का झुकाव है और ये मीनार 73 मीटर ऊंची है।
एक और बात, ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से ये बात भी स्पष्ट होती है कि आज कुतुब Complex में जितने भी स्मारक और मस्जिद हैं, वो मन्दिरों को तोड़ कर बनाए गए हैं।
भारत का इतिहास हमें उस चश्मे से दिखाया गया जिससे मुस्लिम शासक महान नजर आते हैं:
जब हम स्कूल में पढ़ते थे तो कई बार कुतुब मीनार घूमने गए। हमें बताया जाता था कि ये मीनार कितनी अद्भुत है। इसे दिल्ली सल्तनत के बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। हम भी सोचते थे कि कुतुबुद्दीन ऐबक कितना महान बादशाह था कि उसने इतनी विशाल मीनार का निर्माण कराया।
यानी बचपन से ही हमारे मन में ये बातें भर दी गईं और हमने भी मानसिक रूप से इन बातों और विचारों को स्वीकार कर लिया। हम इसी जानकारी के साथ बड़े हुए। लेकिन आज आपको पता चलेगा कि हमें मध्यकालीन भारत का इतिहास उस चश्मे से दिखाया गया, जिस चश्मे से मुस्लिम शासक महान नजर आते हैं।
साभार : जी न्यूज़
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