देश के वीर सपूतों का नाम आता है तो उसमें महाराणा प्रताप का नाम जरूर शामिल किया जाता है। मेवाड़ के 13वें राजा परम वीर और साहसी महाराणा प्रताप का जन्म सोलहवीं शताब्दी में राजस्थान में हुआ था। वहीं हिंदू कैलेंडर के अनुसार, ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि को इस वीर सपूत का जन्म हुआ था। इस आधार पर आज महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जा रही है। उनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह द्वितीय जो मेवाड़ के 12वें राजा थे। मेवाड़ राज्य की राजधानी चित्तौड़ हुआ करती थी। जब लगभग सभी राजाओं ने मुगलों से डर कर हार मान ली तब महाराणा प्रताप अकेले ही उनके खिलाफ खड़े रहे। वह कभी अन्याय के आगे नहीं झुके।
जब देश में मुगलों का राज था तब इस बीच महाराणा प्रताप ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए कभी भी अपने आत्म सम्मान के साथ समझौता नहीं किया। महाराणा प्रताप ने देश की आन के लिए अपना समस्त जीवन लगा दिया। इस महान शासक की जयंती मनाने के लिए देश के कई हिस्से जैसे राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश आदि जैसे राज्यों में छुट्टी रहती है। इस दिन स्कूल, कॉलेज और सरकारी दफ्तरों में छुट्टी रहती है।
हल्दी घाटी का युद्ध:
यह युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड़ तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था।हल्दी घाटी का युद्ध मुगलों के खिलाफ एक अग्रणी युद्ध साबित हुआ उन्हें शक्तिशाली मुगल शासक अकबर को तीन बार हराने का गौरव प्राप्त है।
वह 104 किलो की तलवार आसानी से अपने साथ ले जा सकते थे और उनके कवच का वजन ही 72 किलो था। यूं तो महाराणा प्रताप हल्दी घाटी के युद्ध में हार गए लेकिन उन्होंने आत्मसमर्पण करने से इंकार कर दिया था। उन्होंने दोबारा मुगलों से कब्जा किए गए क्षेत्रों को वापस ले लिया। कई लोग महाराणा प्रताप को पहला स्वतंत्रता सेनानी मानते हैं।
36 महत्वपूर्ण स्थान पर फिर से महाराणा का अधिकार:
पू. 1579 से 1585 तक पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात के मुग़ल अधिकृत प्रदेशों में विद्रोह होने लगे थे और महाराणा भी एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे।अतः परिणामस्वरूप अकबर उस विद्रोह को दबाने में उल्झा रहा और मेवाड़ पर से मुगलो का दबाव कम हो गया।
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इस बात का लाभ उठाकर महाराणा ने 1585ई. में मेवाड़ मुक्ति प्रयत्नों को और भी तेज कर दिया। महाराणा जी की सेना ने मुगल चौकियों पर आक्रमण शुरू कर दिए और तुरन्त ही उदयपुर समेत 36 महत्वपूर्ण स्थान पर फिर से महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया।
महाराणा प्रताप की मृत्यु:
महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण किया, उस समय जितने मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था, पूर्ण रूप से उतने ही भूमि भाग पर अब उनकी सत्ता फिर से स्थापित हो गई थी। बारह वर्ष के संघर्ष के बाद भी अकबर उसमें कोई परिवर्तन न कर सका और इस तरह महाराणा प्रताप समय की लम्बी अवधि के संघर्ष के बाद मेवाड़ को मुक्त करने में सफल रहे।
ये समय मेवाड़ के लिए एक स्वर्ण युग साबित हुआ। मेवाड़ पर लगा हुआ अकबर ग्रहण का अन्त 1585 ई. में हुआ। उसके बाद महाराणा प्रताप उनके राज्य की सुख-सुविधा में जुट गए, परन्तु दुर्भाग्य से उसके ग्यारह वर्ष के बाद ही 19 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड में उनकी मृत्यु हो गई।