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जिद्दी बच्चे को कैसे सुधारें और उसकी हर बात को कैसे समझें, आओ जाने…

हर पैरंट्स चाहते है कि वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें। वे कोशिश भी करते हैं, फिर भी ज्यादातर पैरंट्स बच्चों के परफॉर्मेंस से खुश नहीं होते। उन्हें अक्सर शिकायत करते सुना जा सकता है कि बच्चा पढ़ाई में मन नही लगाता।

इसके लिए काफी हद तक पैरंट्स ही जिम्मेदार होते हैं। क्योंकि अक्सर किस हालात में क्या कदम उठाना है, यह वे तय ही नहीं कर पाते। किस स्थिति में पैरंट्स को क्या करना चाहिए।stubborn-child

1. बच्चा पढ़ाई न करेअक्सर पैरंट्स बच्चे पर गुस्सा करते हैं। मां कहती हैं कि तुमसे बात नहीं करूंगी। थोड़ा बड़ा बच्चा है तो पैरंट्स उससे कहते हैं कि तुम बेवकूफ हो। अपने भाई/बहन को देखो, वह पढ़ने में कितना अच्छा है और तुम डफर ।

कभी-कभार थप्पड़ भी मार देते हैं। ऐसे में आपको वजह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि वह पढ़ने से क्यों बच रहा है? कई वजहें हो सकती हैं जैसे समझने में दिक्कत आ रही हो, कोई टीचर नापसंद हो सकता है, वह उस वक्त नहीं बाद में पढ़ना चाहता हो आदि। Children's studies

अगर स्कूल से उदास लौटता है तो प्यार से पूछें कि क्या बात है? क्या टीचर ने डांटा या साथियों से लड़ाई हुई। अगर बच्चा बताए कि टीचर या बच्चा परेशान करता है तो उससे कहें कि हम स्कूल जाकर बात करेंगे। स्कूल जाकर बात करें भी लेकिन सीधे टीचर को दोष न दें। 

जो बच्चे ऐक्टिव होते हैं, उन्हें अक्सर टीचर शैतान मानकर इग्नोर करने लगती हैं। ऐसे में टीचर से रिक्वेस्ट करें कि बच्चे को ऐक्टिविटीज में शामिल करें और उसे मॉनिटर जैसी जिम्मेदारी दें। इससे वह जिम्मेदार बनता है। 

जिस वक्त वह नहीं पढ़ना चाहता, उस वक्त उसे मजबूर न करें, वरना वह जिद्दी हो जाएगा और पढ़ाई से बचने लगेगा। थोड़ी देर बाद फिर से पढ़ने को कहें।

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उसके पास बैठें और उसकी पढ़ाई में खुद को शामिल करें। उससे पूछें कि आज क्लास में क्या हुआ? बच्चा थोड़ा बड़ा है तो आप उससे कह सकते हैं कि तुम मुझे यह चीज सिखाओ क्योंकि यह तुम्हें अच्छी तरह आता है। वह खुश होकर सिखाएगा और साथ ही साथ खुद भी सीखेगा। 

छोटे बच्चों को किस्से-कहानियों के रूप में काफी कुछ सिखा सकते हैं। उसे बातों-बातों और खेल-खेल में सिखाएं जैसे बिंदी से डिजाइन बनवाएं आदि। पढ़ाई को थोड़ा दिलचस्प तरीके से पेश करें। हर बच्चे की पसंद-नापसंद होती है।

2. ठीक-ढंग से बात न करें : अक्सर पैरंट्स बुरी तरह रिएक्ट करते हैं। बच्चे को उलटा-सीधा बोलने लगते हैं। उस पर चिल्लाते हैं कि फिर से बोलकर दिखा। कई मांएं तो रोने लगती हैं, बातचीत बंद कर देती हैं या फिर ताने मार देती कि मैं तो बुरी हूं, अब क्यों आए मेरे पास? 

बच्चा आप पर चीखे-चिल्लाए तो भी आप उस पर चिल्लाएं नहीं। उस वक्त छोड़ दें, लेकिन खुद को पूरी तरह नॉर्मल भी न दिखाएं, वरना वह सोचेगा कि वह कुछ भी करेगा, आप पर कोई फर्क नहीं पड़ा।  

उसे टाल दें। इसे लेकर बार-बार कुरेदे नहीं। अगर बार-बार बोलेंगे तो उसकी ईगो हर्ट होगी। हां, कहानी के जरिए बता सकते हैं कि एक बच्चा था, जो गंदी बातें करता था। सबने उससे दोस्ती खत्म कर ली आदि। 

बच्चे के सामने गाली या खराब भाषा का इस्तेमाल न करें। वह जो सुनेगा, वही सीखेगा। उसे बताएं कि ऐसी भाषा तो गलत लोग बोलते हैं। उनका बैकग्राउंड और वर्क कल्चर बिल्कुल अलग है और तुम्हारा बिल्कुल अलग। 

पांच-छह साल से बड़ा बच्चा जान-बूझकर पैरंटस को हर्ट करते है कि आप अच्छे नहीं हैं। पैरंट्स भी बहुत आसानी से हर्ट हो जाते हैं। इसके बजाय आप कह सकते हैं कि तुम इतने अनलकी हो कि तुम्हारी मां गंदी है। 

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3. चोरी करे या किसी की चीजें उठा लाए : पैरंट्स बच्चे को पीटने या डांटने लगते हैं। भाई बहनों के आगे उसे जलील करते हैं कि अपनी चीजें संभालकर रखना क्योंकि यह चोर है।

 अगर कोई दूसरा ऐसी शिकायत लाता है तो वे मानने को तैयार नहीं होते कि हमारा बच्चा ऐसा कर सकता है। वे पर्दा डालने की कोशिश करने लगते हैं। चोरी करने पर सजा जरूर दें, लेकिन सजा मार-पीट के रूप में नहीं बल्कि बच्चे को पसंदीदा प्रोग्राम नहीं देखने देना, खेलने नहीं देना जैसी सजा दे सकते हैं। जो चीज उसे पसंद है, उसे कुछ देर के लिए उससे दूर कर दें। 

बच्चे का बैग रेग्युलर चेक करें, लेकिन ऐसा उसके सामने न करें। उसमें कोई भी नई चीज नजर आए तो पूछें कि कहां से आई? बच्चा झूठ बोले तो प्यार से पूछें। उसकी बेइज्जती न करें, न ही उसके साथ मारपीट करें। चीज लौटाने को कहें लेकिन पूरी क्लास के सामने माफी न मंगवाएं। 

उसे अकेले में सख्ती से जरूर समझाएं कि उसने गलत किया। चोरी बुरी बात है। अगली बार ऐसा नहीं होना चाहिए। झूठी पनाह नहीं देनी चाहिए। अगर कोई कहता है कि आपके बच्चे ने चोरी की है तो यह न कहें कि वह ऐसा नहीं कर सकता। इससे उसे शह मिलती है। कहें कि हम अकेले में पूछेंगे। सबके सामने न पूछें लेकिन अकेले में पूरी इंक्वायरी करें। 

बच्चे को बताएं कि आप कोई चीज उठाकर लाएंगे तो आप टेंशन में रहेंगे कि कोई देख न ले। इस टेंशन से बचने का अच्छा तरीका है कि चोरी न की जाए। पैरंट्स की जिम्मेदारी है कि वे बच्चे को जरूरत की सारी चीजें उपलब्ध कराएं। इससे उसका झुकाव चोरी की ओर नहीं होगा।

4. बच्चा झूठ बोलने लगे: बच्चा झूठ बोले तो ओवर-रिएक्ट न करें और सबसे सामने न डांटें। न ही उसे सही-गलत का पाठ पढ़ाएं। इसके बजाय उसे उदाहरण देकर उस काम के नेगेटिव पक्ष बताएं। अक्सर मारपीट पर उतारू हो जाते हैं।

जब दूसरा कोई शिकायत करता है तो बिना सच जाने बच्चे की ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं कि हमारा बच्चा ऐसा नहीं कर सकता। वे दूसरों के सामने अपनी ईगो को हर्ट नहीं होने देना चाहते।

खुद में सच सुनने की हिम्मत पैदा करें। हालात का सामना करें। घर में ऐसा माहौल रखें कि बच्चा बड़ी से बड़ी गलती के बारे में बताने से डरे नहीं। बच्चा झूठ तभी बोलता है, जब उसे मालूम होता है कि सच कोई सुनेगा नहीं। उसके भरोसा दिलाएं कि उसकी गलती माफ हो सकती है। 

बच्चा झूठ बोलना मां-बाप से ही सीखता है, जबकि 95 फीसदी मामलों में झूठ बोले बिना काम चल सकता है। 

5. आपका बच्चा जिद्द लगे करने : बच्चे को हमेशा रोकें-टोकें नहीं। हर बात के लिए हां करना गलत है तो न करना भी सही नहीं है।जो बात मानने वाली है, उसे मान लेना चाहिए। अगर उसकी कुछ बातें मान ली जाएंगी तो वह जिद कम करेगा कभी-कभी खिलौना दिलाना, उसकी पसंद की चीजें खिलाना जैसी बातें मान सकते हैं। 

 एक बार इनकार कर दिया तो फिर बच्चे की जिद के सामने झुककर हां न करें। बच्चे को अगर यह मालूम हो कि मां या पापा की ‘हां’ का मतलब ‘हां’ और ‘ना’ का मतलब ‘ना’ है तो वह जिद नहीं करेगा। 

किसी भी मसले पर मां-पापा दोनों की सहमति होनी जरूरी है। ऐसा न हो कि एक इनकार करे और दूसरा उस बात के लिए मान जाए। अगर एक सख्त है और दूसरा नरम है तो बच्चा फायदा उठाता है।

जो बात नहीं माननी, उसके लिए बिल्कुल साफ इनकार करें, जोर देकर करें और दोनों मिलकर करें। अगर घर में बाकी लोग हैं तो वे भी बच्चे की तरफदारी न करें। 

उसे कमजोर बनकर न दिखाएं, न ही उसके सामने रोएं। इससे बच्चा ब्लैकमेलिंग सीख लेता है और बार-बार इस हथियार का इस्तेमाल करने लगता है। 

यह न कहें कि अगर तुम यह काम करोगे तो हम तुम्हारी बात मानेंगे, अगर तुम होमवर्क पूरा करोगे तो आइसक्रीम खाने चलेंगे। उससे कहें कि पहले होमवर्क पूरा कर लो, फिर आइसक्रीम खाने चलेंगे या चलो तुम थोड़ी देर कंप्यूटर पर गेम्स खेल लो और फिर थोड़ी देर पढ़ाई कर लेना। हालांकि ऐसा हर बार न हो, वरना बच्चे में ज्यादा चालाकी आ जाती है। 

6. टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर पर ही समय बेकार करे: कई पैरंट्स सीधे टीवी या कंप्यूटर ऑफ कर देते हैं। कई रिमोट छीनकर अपना सीरियल या न्यूज देखने लगते हैं। इसी तरह कुछ मोबाइल छीनने लगते हैं।

कुछ इतने बेपरवाह होते हैं कि ध्यान ही नहीं देते कि बच्चा कितनी देर से टीवी देख रहा है या गेम्स खेल रहा है। कई बार मां अपनी बातचीत या काम में दखलंदाजी से बचने से लिए बच्चों से खुद ही बेवक्त टीवी देखने को कह देती हैं।

बच्चे से रिमोट छीनकर बंद न करें और न ही अपनी पसंद का प्रोग्राम लगाकर देखने बैठ जाएं। अपना टीवी देखना कम करें। अक्सर बच्चे स्कूल से आते हैं तो मां टीवी देखती मिलती है। 

बच्चे की पसंद के हर प्रोग्राम में कमी न निकालें कि यह खराब है। उससे पूछें कि वह जो देख रहा है, उससे उसने क्या सीखा और हम भी वह प्रोग्राम देखेंगे । 

उसके कमरे में टाइम टेबल लगा दें कि वह किस वक्त टीवी देखेगा और कब गेम्स खेलेगा? अगर वह एक दिन ज्यादा देखता है तो निशान लगा दें और अगले दिन देखने ही न दें । 

विडियो गेम्स आदि के लिए हफ्ते में कोई खास दिन या वक्त तय करें। 

आप खुद भी हर वक्त फोन पर बिजी न रहें, वरना बच्चे से इनकार करना मुश्किल होगा। हां, उसे मोबाइल देते वक्त ही मोबाइल बिल की लिमिट तय करें कि महीने में उसे इतने रुपए का ही मोबाइल खर्च मिलेगा। दूसरों को दिखाने के लिए उसे महंगा फोन न दिलाएं। 

उसे बताएं कि ज्यादा लंबी बातचीत से शरीर को क्या नुकसान हो सकते हैं? इतना वक्त खराब करने से पढ़ाई का नुकसान हो सकता है आदि। इसी तरह बताएं कि चैटिंग करें लेकिन बाद में।

अकेले में बच्चे का मोबाइल चेक करें। उसमें गलत एमएमएस नजर आएं या ज्यादातर मेसेज डिलीट मिलें तो कुछ गड़बड़ हो सकती है। 

कंप्यूटर ऐसी जगह पर रखें, जहां से उस पर सबकी निगाह पड़ती हो। इससे पता चलता रहेगा कि वह किस वेबसाइट पर क्या कर रहा है। इंटरनेट की हिस्ट्री चेक करें। कंप्यूटर पर बच्चे को फोटोशॉप या पेंट आदि सिखाएं। इससे वह कंप्यूटर का रचनात्मक इस्तेमाल कर सकेगा। 

अगर पता लग जाए कि बच्चे में बुरी आदतें पड़ गई हैं तो उसे एकदम डांटें नहीं लेकिन अपने बर्ताव में सख्ती जरूर ले आएं और उसे साफ-साफ बताएं कि आगे से ऐसा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ध्यान रहे कि उसकी गलती का बार-बार जिक्र न करें। 

7. दूसरे बच्चों से मारपीट करे :कई पैरंट्स इस बात पर बहुत खुश होते हैं कि उनका बच्चा मार खाकर नहीं आता, बल्कि दूसरे बच्चों को मारकर आता है और वे इसके लिए अपने बच्चे की तारीफ भी करते हैं। दूसरे लोग शिकायत करते हैं तो उलटा पैरंट्स उनसे लड़ने को उतारू हो जाते हैं कि हमारा बच्चा ऐसा नहीं कर सकता।

कुछ मांए कहती हैं कि तुम दूसरे बच्चों को मारोगे तो, टीचर से डांट पड़वा दूंगी या बच्चे पकडनेवाला ले जाएगा। थोड़े दिन बाद बच्चा जान जाता है ये सारी बातें झूठ हैं। तब वह और ज्यादा शरारत करने लगता है ।

कोई दूसरा शिकायत लेकर आएं तो सुनें। उनसे कह सकते हैं कि मैं बच्चे को समझाऊंगी वैसे, बच्चे तो आपस में लड़ते ही रहते हैं। उनकी बातों में न आएं। इससे लड़ने के बावजूद बच्चों में दोस्ती बनी रहती है। 

बच्चे को सामने बिठाकर समझाएं कि अगर आप मारपीट करोगे तो कोई आपसे बात नहीं करेगा। कोई आपसे दोस्ती नहीं करेगा। आप उसे गलती के नतीजे बताएं। 

इसके लिए उसे सजा जरूर दें, लेकिन सजा मारपीट या डांट के बजाय दूसरी तरह से दी जाए जैसे कि खेलने नही दिया जाएगा,पसंद का खाना नहीं मिलेगा आदि।

इस तरह आप अपने बच्चे को समझा सकते है हर बच्चे perfect नही होते उन्हें बनाना पड़ता है  अपने प्रयास से अपने बच्चे को सुधार सकते हैं उन्हें अच्छा future दे सकते हैं ।

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