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भारत-पाक 1965 युद्ध : जब चार पाकिस्तानी विमानों से घिरा हिन्दुस्तानी पायलट बना हीरो 2

भारत-पाक 1965 युद्ध : जब चार पाकिस्तानी विमानों से घिरा हिन्दुस्तानी पायलट बना हीरो

दुश्मन और वह, दोनों ही अपनी-अपनी जान हथेली पर लिए लड़ रहे थे, इसलिए हमारे 25-वर्षीय पायलट को 740 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से धरती से सिर्फ 50 फुट ऊपर उड़ना पड़ रहा था, और उस वक्त उसके साथ सिर्फ उसका विन्गमैन था।

पश्चिम बंगाल के कलाईकुंडा एयरबेस के आकाश में चल रही इस लड़ाई में दो विमानों में सवार हमारे दोनों जांबाज़ों का मुकाबला पाकिस्तानी वायुसेना के अमेरिका में बने चार सेबर लड़ाकू विमानों से था। हमारी वायुसेना के ये दो जांबाज़ गिनती में देखने पर दुश्मन के सामने नहीं ठहर सकते थे, इसलिए वे जी-जान से लड़ रहे थे।

लेकिन दुश्मनों के साथ सिर्फ 12 ही मिनट की लड़ाई में यह साफ हो गया था कि सितंबर, 1965 में हमारी वायुसेना को एक नया हीरो मिल गया। दो विमानों के फॉरमेशन (two aircraft formation) में उड़ रहे जांबाज़ों में लीड पायलट थे भारतीय वायुसेना की 14 स्क्वाड्रन के एंग्लो-इंडियन फ्लाइट लेफ्टिनेंट अल्फ्रेड कुक।

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उनके विन्गमैन थे फ्लाइंग ऑफिसर एससी ममगईं, जिन्होंने बेहद कुशलता से कुक का साथ दिया, और इसी दम पर कुक सीधे पाकिस्तानियों की तरफ बढ़ गए, और ऐसी लड़ाई लड़े, जिसे जेट युग के इतिहास की बेहतरीन डॉगफाइटों में शुमार किया जाता है। उनका पहला दुश्मन था फ्लाइट लेफ्टिनेंट अफज़ल खान, और यह युवा पाकिस्तानी पायलट बिल्कुल कुक की टक्कर का था।

अब दोनों ही पायलट एक-दूसरे को निशाने पर लेने की कोशिश कर रहे थे, जिसके दौरान वे इतना नीचे उड़ने लगे कि देखकर सांसें रुक जाएं, और कुक का विमान तो एक बार उस झाड़ी से छू भी गया, जिसके ऊपर वह उड़ रहे थे।

75-वर्षीय कुक के मुताबिक, “मैं काफी नीचे उड़ रहा था, और जब मैंने उसे देखा, उसे अपनी गन के निशाने पर लिया और बटन दबा दिया… उस वक्त मुझे यह भी पता नहीं चला कि मेरे विमान के पंख का किनारा ज़मीन से सिर्फ चार-पांच फुट ऊपर झाड़ी से छू रहा है… मैं उसके इतना करीब था कि जब मैंने उस पर वार किया और गोलियां चलानी बंद कीं, उसके विमान में विस्फोट हुआ, और मेरे पास आग के गोले के बीच से गुज़रने के अलावा कोई चारा नहीं था…”

पाकिस्तानी सेबर विमान के टुकड़े खड़गपुर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) के बाहर मिले, और बहुत-से विद्यार्थियों ने इस लड़ाई को आखिर तक देखा।

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लेकिन लड़ाई अभी खत्म कहां हुई थी… कुक इसके तुरंत बाद के वाकयात याद करते हैं, “खुशी महसूस करने का तो वक्त ही नहीं था, क्योंकि मैं जानता था, कोई और भी मेरी जान के पीछे है… सो, तुरंत ऊपर गया, तीखा दायां मोड़ लिया, रुका और दूसरे विमान से भिड़ गया…”

दूसरे विमान से हुई डॉगफाइट को कुक ‘इन्टेंस’ (जोरदार) बताते हैं। दरअसल, इस विमान से जो युद्ध हुआ, उसके दौरान कुक पाकिस्तानी विमान के इतना करीब जा रहे थे कि हवा में दोनों विमानों की टक्कर होने का खतरा बार-बार साने आ रहा था। 1965 की लड़ाई के चार साल बाद ऑस्ट्रेलिया जाकर बस चुके कुक ने अपनी हाल ही की दिल्ली यात्रा के दौरान याद किया, “हम दोनों एक-दूसरे के इतना करीब से गुज़र रहे थे कि हम एक-दूसरे का चेहरा देख सकते थे…”

“मैं उसका चेहरा देख सकता था, और वह मेरा… मुझे उसका हेल्मेट दिख रहा था, सफेद हेल्मेट, जिस पर उसका नाम लिखा था… मेरे सिर पर भी सफेद हेल्मेट था, जिस पर मेरा नाम लिखा था… मैं अचानक बहुत नीचे गया, और अच्छी पोज़ीशन में पहुंच जाने का फायदा उठाते हुए उसके निशाने पर आते ही गोलियां चलानी शुरू कर दीं… मैं जानता था, उसे गोलियां लग रही हैं, और मुझे उम्मीद थी कि उसका विमान अब फट जाएगा…”

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुक का सारा हाई-एक्सप्लोसिव असला खत्म हो गया, और अब उनके पास सिर्फ बॉल-एम्युनिशन बचा था, जो आमतौर पर ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है। सो, कुक के वार करने और पाकिस्तानी जेट को हमले से नुकसान होने के बावजूद वह अभी तक उड़ रहा था।

अब कुक ने तय किया कि इस दूसरे सेबर विमान का पीछा करना बेकार है, जो आखिरकार ऐसी हालत में अपने बेस की तरफ भाग गया, जिसके बाद वह दोबारा शायद कभी नहीं उड़ पाया होगा।

“वह लगातार मुझसे दूर भागने की कोशिश कर रहा था, और अचानक मैंने देखा, वह पहले की तुलना में ज़्यादा नीचे डाइव करने लगा है, सो, सबसे पहले मेरे दिमाग में आया कि शायद किसी ने उसे चेताया है, और मेरे पीछे कोई और है…”

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गौरतलब है कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से हवाई लड़ाइयां काफी दुर्लभ हैं, और बहुत कम पायलटों के ही करियर में किसी एक डॉगफाइट में शामिल होने का मौका आता है, जबकि हमारे अल्फ्रेड कुक एक ही दिन में अपनी तीसरी डॉगफाइट में शामिल होने जा रहे थे, और दिलचस्प तथ्य यह है कि यह तूसरी डॉगफाइट भी आखिरी नहीं थी।

पश्चिम बंगाल के आकाश में अब तीसरा सेबर विमान कुक के पीछे था, सो, उन्होंने सही पोज़ीशन में आने के लिए गोता लगाया। उन्हें उसके लिए तीखा मोड़ लेने थे, और अपने हॉकर हंटर विमान के इंजन की ताकत का इस्तेमाल करना था, ताकि दुश्मन के पीछे आ सकें।

कुक के अनुसार, “मैं उस पर गोलियां बरसाता हुआ ऊपर से नीचे की ओर आ रहा था, और सोच रहा था, निशाना लग क्यों नहीं रहा है, उसके विमान में विस्फोट क्यों नहीं हो रहा है…? उसका विमान दूर हो गया, और मुझे इस बात की चिंता थी कि उसे गोलियां लगी क्यों नहीं… तभी मुझे एहसास हुआ कि ज़मीन काफी नज़दीक आ चुकी है… मेरी अंगुलियां तब भी ट्रिगर पर थीं, सो, मैंने तुरंत जॉयस्टिक को वापस खींचा, लेकिन दुर्भाग्य से तब तक मेरे पास मौजूद सारा असला खत्म हो गया था, क्योंकि हंटर विमानों पर हमारा फायरिंग टाइम लगभग पांच सेकंड का ही होता है… आप चूंकि 100 गोलियां प्रति सेकंड की रफ्तार से फायरिंग कर रहे होते हैं, सो, उस गोते से बाहर आते-आते ही मेरा असला खत्म हो गया, और मैं ज़मीन से टकराते-टकराते बचा…”

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तीसरा पाकिस्तानी सेबर विमान भागने में कामयाब हो गया, और कुक को भी इस बात से पूरी तसल्ली थी, क्योंकि उनके पास असला खत्म हो चुका था, लेकिन हवाई लड़ाई में अपने विन्गमैन का ध्यान रखना ही खास गुर है।

फ्लाइंग ऑफिसर एससी ममगईं की जान पूरी तरह खतरे में थी, क्योंकि एक सेबर विमान ठीक उनके पीछे पहुंच चुका था, लेकिन कुक हालात की तरफ पूरी तरह चौकन्ने थे। उन्होंने बताया, “मैंने ममगईं को चेतावनी दी… मैंने कहा ‘Mam break port’ (बाईं तरफ तीखा मोड़ काटो)… और फिर मैंने उसे (दुश्मन को) उलझा लिया और हम यह सब एयरफील्ड पर बने फ्लाइंग कन्ट्रोल के ठीक ऊपर कर रहे थे… उसने मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए लूप और कलाबाज़ियां शुरू कर दीं, लेकिन उस वक्त मेरा विमान हल्का था, और चूंकि ऐसी कलाबाज़ियां हम मस्ती के लिए करते ही रहते थे, सो, मुझे उसके पीछे लगे रहने में कोई दिक्कत नहीं हुई…”

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लेकिन कुक उस पाकिस्तानी विमान पर वार नहीं कर पाए, क्योंकि एक भी गोली बची ही नहीं थी। इसके बजाए वह उसके ठीक पीछे लगे रहे, और लगातार निशाने पर रखकर उसे भारतीय सीमा के बाहर खदेड़ दिया।

1965 युद्ध के 50 साल पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने हिन्दुस्तान आए कुक अपनी आखिरी लड़ाई की यादों में खोए हुए मुस्कुराते दिखे, और उस पाकिस्तानी पायलट के बारे में बोले, “उसे पक्का पता चल गया होगा कि उस दिन उसका भाग्य बहुत अच्छा था…”

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कुक और ममगईं, दोनों को वीर चक्र प्रदान किया गया। कुक ने इसके बाद कुछ ही साल लड़ाकू विमान उड़ाए, और फिर ऑस्ट्रेलिया चले गए। हालांकि उन्होंने बाद में छोटे नागरिक विमान उड़ाए, लेकिन 740 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ज़मीन से सिर्फ 10 फुट ऊपर हॉकर हंटर विमान उड़ाने जैसा तजुर्बा फिर नहीं मिल सकता…

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