सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जयंती 18 अक्टूबर, को राजस्थान ,गुजरात, उज्जैन, बघेलखण्ड, दिल्ली, मुम्बई, बिहार, हिमाचलप्रदेश ,उत्तर प्रदेश आदि स्थानों पर धूमधाम से मनाई जा रही है। सभी सनातन धर्मावलम्बी बन्धुओं को उत्तर भारत के एकछत्र स्वामी रहे सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं।।
आठवी सदी से दसवी सदी के युग में जब कन्नौज को राजधानी बनाकर सम्पूर्ण उत्तर भारत पर लक्ष्मण के वंशज प्रतिहार राजपूतों का राज्य था,
ठीक उसी समय सम्पूर्ण दक्षिण भारत राठौड़ (राष्ट्रकूट)राजपूतों के अधीन था,जिनकी सीमाए कभी कभी हिमालय पर्वत से भी आ मिलती थी।
और सम्पूर्ण पूर्वी भारत पर उस समय सूर्यवंशी राजपूत वंश (पालवंश) का शासन था।।
ये तीनो क्षत्रिय वंश आपस में एक दूसरे से टकराते भी थे पर जब भी अरब हमलावर सिंध से आगे बढ़ने का प्रयास करते थे तो तीनो एकजुट होकर बाकि सामन्त क्षत्रिय राजवंशो के सहयोग से अरब हमलावरों को मार भगाते थे।।
जब आठवी सदी से दसवी सदी लगभग 250 वर्ष तक प्रतिहार/राष्ट्रकूट/और पाल सूर्यवंशी राजपूतों के बड़े राजवंश भारतवर्ष के तीन अलग अलग हिस्सों पर राज करते थे,
तब चन्देल,तंवर,चौहान, कलचुरी, गुहिलौत, सोलंकी, मौर्य, परमार, भाटी, जादौन,यौधेय,टांक, कच्छवाह,बडगूजर, चावड़ा, पुण्डीर आदि क्षत्रिय राजपूत वंश अलग अलग क्षेत्रों में इनके सामन्तो के रूप में राज्य करते थे।
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सम्पूर्ण राजपूत युग में प्रतिहार/राष्ट्रकूट/पाल सूर्यवंश का शासनकाल स्वर्ण युग है,जिसमे भारतवर्ष में राजपूतों ने बड़े साम्राज्यों की स्थापना कर विदेशी हमलावरों का कई सदी तक सफलतापूर्वक सामना किया।
क्योंकि जिन अरब मुस्लिम हमलावरों ने मौहम्मद साहब की मृत्यु के सिर्फ दो दशक के भीतर ही सारा मध्य पूर्व एशिया,ईरान, इराक, सीरिया, मिस्र, उजेबिकस्तान, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान तक जीत लिया था और जीतते हुए वो स्पेन तक चले गए थे,
उन शक्तिशाली अरब मुस्लिम हमलावरों को भारत के इन राजपूत वंशो ने मिलकर ऐसी करारी मात दी कि वो लगातार अगले 7 वी सदी से 12 वी सदी तक पूरे 500 वर्षों तक भारत में नही घुस पाए थे,
ये बहुत बड़ी सफलता है जिसका जिक्र मुस्लिम इतिहास में आज भी शिकवा के रूप में होता है।।
प्रतिहार/राष्ट्रकूट/पाल साम्राज्यों के पतन के बाद भारत में दुर्भाग्यवश बड़े साम्राज्यों की स्थापना नही हो सकी,और चन्देल, कलचुरी, चौहान, परमार, गुहिलौत, सोलंकी आदि क्षत्रिय राजपूत वंशो के राज्य अलग अलग प्रदेशो में स्वतन्त्र रूप से स्थापित हो गए जो मिलकर इकाई नही बना सके।।
कुछ समय के लिए सम्राट भोज परमार, बीसलदेव चौहान, कर्ण कलचुरी,यशोवर्मन चन्देल आदि महान शासक हुए जिन्होंने बड़े राज्यों की स्थापना की ,पर वो स्थायी नही रह सके।
बड़े साम्राज्य की स्थापना उत्तर भारत को तुर्क हमलावरों से बचाने को आवश्यक थी,इसे भांपकर अजमेर के युवा वीर पृथ्वीराज चौहान ने प्रयास शुरू किया और उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर चौहान साम्राज्य स्थापित हो गया,किन्तु दुर्भाग्यवश पृथ्वीराज चौहान जैसा वीर क्षत्रिय सम्राट मात्र 26 वर्ष की आयु में युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गया।
सन् 1192 ईस्वी में राजपूतों के आपसी मतभेदों से तराईन के दूसरे युद्ध में हार के बाद ही अरब/तुर्क हमलावर भारत में मुस्लिम शासन स्थापित करने में कामयाब हुए।।
गल्लका लेख के अनुसार सातवी सदी में अवन्ति उज्जैनी के लक्षमनवंशी प्रतिहार राजपूत राजा नागभट प्रथम ने गुर्जरत्रा क्षेत्र से उदण्ड गुर्जरो को हराकर भगा दिया था और गुर्जरत्रा प्रदेश पर अधिपत्य जमाया,
गुर्जरत्रा प्रदेश पर शासन करने और कालांतर में वहां से राजौरगढ़ ,कन्नौज इत्यादि स्थानों पर जाकर शासन करने से इन्हें कुछ स्थानों पर गुर्जर प्रतिहार भी कहा गया जो जातिसूचक नही स्थानसूचक संज्ञा थी।
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लक्ष्मण वंशी प्रतिहार राजपूतों के वंशज आज के परिहार, मुंढाढ़, और सम्भवत (शोध आवश्यक) बडगूजर,सिकरवार आदि राजपूत हैं।।
राष्ट्रकूट राजपूतों के वंशज आज के राठौड़ राजपूत हैं,
और पालवंश के वंशज आज बिहार,अवध,कुमायूं,पूर्वांचल में मिलने वाले सूर्यवंशी राजपूत हैं जो आज भी पाल टाइटल अपने नाम के आगे लिखते हैं,सांसद और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री जगदम्बिका पाल सूर्यवंशी राजपूत ही हैं।
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार को कोटि कोटि नमन करते हुए मैं इस अवसर पर उन युवाओं को साधुवाद दूंगा जिन्होंने क्षेत्रवाद गोत्रवाद भूलकर एक महान यौद्धा की स्मृति पुनः जागृत करने में अपना योगदान दिया है।
सनातन धर्म के रक्षक सम्राट मिहिरभोज को कोटि कोटि नमन