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विवेकानंद की 'विवेकवाणी' ने किया युवाओं को प्रेरित 2

विवेकानंद की ‘विवेकवाणी’ ने किया युवाओं को प्रेरित

12 जनवरी 1863 को कोलकाता के एक घर में एक बच्चे की किलकारी से पूरे घर में खुशी की लहर दौड़ गई… यह बच्चा कोई और नहीं बल्कि अध्यात्म के मार्गदर्शक स्वामी विवेकानंद थे…कोलकता के कायस्थ परिवार में जन्मे स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्र दत्त था…पिता दुर्गाचरण कलकत्ता हाईकोर्ट में एक प्रसिद्ध वकील थे और मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थी…उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा अर्चना में व्यतीत होता था…

नरेंद्र की बुद्धि बचपन से काफी तीव्र थी…लेकिन साथ ही वह स्वभाव के काफी नटखट बालक थे..उनकी मां अक्सर कहा करती थी कि मैंने भगवान शिव से एक बेटे की कामना की थी लेकिन उन्होंने राक्षस को मेरे पास भेज दिया…मगर आज उसी शरारती बालक को पूरी दुनिया स्वामी विवेकानंद के नाम से जानती है..जिन्होंने कईयों का मार्गदर्शन किया और आज भी लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं…बारह जनवरी को उसका 152वां जन्मदिन था जिसे राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया गया…

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किताब ‘द कम्प्लीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानंद’ के खंड 1 से 9 के अध्याय में स्वामी जी की कही कुछ ऐसी बातें हैं जो समय समय पर आपको जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगी..मार्गदर्शन करेंगी…नीचे लिखी इन बातों को ज़रा ध्यान से पढ़िए:-

‘कर्मा’ इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘कृ’ अक्षर से हुई है..इसका मतलब है जो कुछ भी किया जाए वो सभी कर्म है..तकनीकी तौर पर इसका मतलब है कार्यों का प्रभाव, तत्तमीमांसा में इसका मतलब होता है पिछले कार्यों का प्रभाव…लेकिन कर्म-योग में इसका सीधा सा अर्थ है ‘कर्म’ स्वामी जी कहते हैं कि मानवजाति का लक्ष्य ज्ञान है जिसे समय समय पर व्यक्ति का मार्गदर्शन होता है..प्रसन्नता मनुष्य का लक्ष्य नहीं है बल्कि ज्ञान है क्योंकि प्रसन्नता का अंत हो जाता है किंतु ज्ञान हमेशा रहता है…

मनुष्य प्रसन्नता को अपना लक्ष्य मान लेता है यह गलत है…मूर्खता है…मगर ज्ञान सर्वोच्च है लेकिन यह बात समझ ने में मनुष्य काफी वक्त लगा देता है..असल में खुशी और गम दोनों ही महान शिक्षक हैं…जैसे जैसे खुशी और गम मनुष्य की आत्मा को छूकर गुजरते हैं तो दिमाग में विभिन्न चित्र छाप छोड़ते हैं फिर चाहे वो अच्छे हो या बुरे उसी से आदमी का चरित्र बनता है… आप किसी भी व्यक्ति का चरित्र लें…आप पाएंगे कि दुख और खुशी चरित्र के गठन में बराबर कारक है…अच्छाई और बुराई का व्यक्ति के चरित्र में बराबर का हिस्सा है..जबकि कुछ मामलों में दुख खुशी की तुलना में अधिक बड़ा शिक्षक होता है..स्वामी विवेकानंद के अनुसार धन की तुलना में गरीबी बहुत कुछ सिखाती है..

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‘ज्ञान’ कहां से मिलता है ? लोग अक्सर यह समझते हैं कि ज्ञान बाहरी वस्तुओं से प्राप्त होता है..लेकिन ज्ञान सभी मनुष्य के अंदर है….वास्तव में आदमी कुछ नहीं सिखता है..कुछ नहीं खोजता बल्कि वो खुद अनंत ज्ञान की एक खदान है..लेकिन जब वो अपनी आत्मा पर पड़े पर्दे को हटाता है तो ज्ञान ही ज्ञान का प्रकाश नज़र आता है..दुनियाभर में फैला ज्ञान व्यक्ति के अपने मन से प्राप्त होता है..ब्रह्मांड के अनंत पुस्तकालय आपके मन में है बाहरी दुनिया आपको आपके ज्ञान तक पहुंचाने का अवसर मात्र है जो आपको सिर्फ सुझाव देती है..एक सेब के गिरने से न्यूटन को सुझाव मिला था..फिर उन्होंने खुद अपने मन को टटोला..और बीती सारी बातें दोबारा से सोचीं और एक नई कड़ी की खोज की जिसे हम गुरूत्वाकर्षण कहते हैं..इसलिए सभी ज्ञान धर्मनिरपेक्ष है या तो आध्यात्मिक है..ज्ञान मनुष्य में निहित है..

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मेरा मानना है कि चकमक पत्थर के एक टुकड़े में आग की तरह ज्ञान भी मन में मौजूद है…सुझाव घर्षण है जो उसी ज्ञान को बाहर लाने में मदद करता है..हमारी सभी भावनाओं और क्रियाओं- हमारे आंसू और हमारी मुस्कान, हमारे सुख और हमारे दुख, हमारा रोना और हमारी हंसी, हमारे शाप और हमारा आशीर्वाद, हमारी प्रशंसा और हमारे दोष…

अगर हम शांति से अपने ही अंतर्मन को टटोलें तो ज्ञान खुद ब खुद बाहर आएगा..हमारी इन्हीं सब भावनाओं का मिश्रण है कर्म…हमारी आत्मा को छूने वाली हर मानसिक और शारीरिक गतिविधि ही कर्म है…कर्म शब्द के इस्तेमाल के कई व्यापक अर्थ हैं..हर समय हम कोई न कोई कर्म करते हैं.. जैसे मैं आप से बात कर रहा हूं यह कर्म है…आप सुन रहे हैं यह कर्म है.. हम सांस लेते हैं यह भी कर्म है..हम चलते हैं यह भी कर्म है…रोज़ हम शारीरिक या मानसिक रूप से बहुत कुछ करते, वह कर्म है, जो हमारे जीवन में छाप छोड़ता है..

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लेकिन कुछ काम होते हैं जो दिखाई कुछ देते हैं लेकिन वास्तव में होते कुछ और हैं…यानि छोटे छोटे कार्यों की संख्या का बड़ा कुल-योग..उदाहरण के तौर पर हम समंदर के किनारे के पास खड़े हैं..तो हमें सामने से आती एक बड़ी लहर का खूब शोर सुनाई देता है.. मगर वास्तव में एक लहर लाखों और करोड़ों छोटी -छोटी लहरों से मिलकर बनी है.. इनमें से प्रत्येक एक एक लहर शोर करती है…लेकिन हम इसे पकड़ नहीं पाते..हमें सिर्फ एक बड़ी लहर का शोर सुनाई देता है..

इसी तरह दिल की हर धड़कन का काम है यानि एक ही समय में, छोटे कार्यों की एक बड़ी संख्या बन जाती है..जो महसूस नही होती….इसलिए अगर आपको सच में किसी मनुष्य के चरित्र को परखना है तो उसके काम को देखें…वरना कोई मूर्ख भी नायक बन सकता है…आदमी के काम करने की छोटी -छोटी बारिकियों को देखो इनसे वास्तव में उस व्यक्ति के असली चरित्र का पता आसानी से चल सकेगा..

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बड़े अवसरों में किसी भी मनुष्य की महानता का पता चलता है.. और चरित्र का अच्छा व्यक्ति भीड़ में अकेला भी हो तो नज़र आता है..स्वामी विवेकानंद के कुछ उदाहरण है जो आज भी ज्ञान के प्रकाश की तरह चमकते हैं.. ‘आज हम जो हैं वह हमारे विचार हमें बनाते हैं इसलिए सोचते समय ख्याल रखें..शब्द माध्यमिक है विचार हमेशा रहते हैं..आप अपने आप को कमजोर समझेंगे तो कमजोर हो जाएंगे..अगर मजूबत समझेंगे तो मजबूत बनेंगे..अपने आप को अशुद्ध मानेंगे तो आप अशुद्ध हो जाएंगे, शुद्ध मानेंगे तो कामयाबी आपके कदमों में होगी..बर्शते आप में जबरदस्त दृढ़ता हो, जबरदस्त इच्छा होनी चाहिए..यह कहो कि ’मैं सागर पी जाउंगा’, यह सोचें कि ‘मैं पहाड़ को उखाड़ लूंगा’ अपने अंदर इस प्रकार की ऊर्जा के साथ अपनी इच्छाशक्ति और मेहनत से आगे बढ़ते जाओ अपने लक्ष्य को ज़रूर पूरा कर पाओगे..

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लोग जो कहते हैं उन्हें कहने दो…अपने इरादों पर कायम रहें फिर देखना यह दुनिया तुम्हारे कदमों में होगी..लोग ऐसा कहते हैं कि इस व्यक्ति पर विश्वास करो उस व्यक्ति की बात मानों लेकिन मैं ये कहता हूं कि पहले खुद पर विश्वास करो…

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अगर आप सच्चे हैं…मजबूत हैं…तो आप अकेले ही इस पूरी दुनिया के बराबर हैं..

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