माँ के कुछ बोल एस तरह थे आज अपनी बेटी को बहुत याद कर रो रही है :- मेरी निर्भया जो हर दिन कि तरह उस दिन भी सुबह से ही चहक रही थी। रोजाना कि तरह ही सामान्य थी हमारी ज़िन्दगी हमेशा की ही तरह वह भी अपने कॉलेज के लिए घर से हंसी खुशी निकली थी। काश वो हादसा न हुआ होता तो आज उसकी 28 वा जन्मदिन मानते हम , लेकिन सुबह उसने कहा कॉलेज जा रही हूँ अगर हुआ तो आज फिल्म भी देखने जाउंगी। उस वक्त मुझे नहीं पता था कि वो दोबारा घर नहीं लौटेगी वरना उसे कभी जाने नहीं देती ।
माँ कहती यह सब पता होता तो मैं अपने दिल के टुकड़े को रोक लेती। हम आज इसलिए यह कहानी दोहरा रहे हैं, क्योंकि यदि आज वह जिंदा होती तो अपना 28 वां जन्मदिन मना रही होती।
जी हां, हम बात कर रहे हैं 16 दिसंबर 2012 की सर्द रात को हुए उस जघन्य कांड को सहने वाली निर्भया की, जिसके दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है।
जिस पीड़ा से वह गुजरी दुआ करनी चाहिए कि अन्य किसी को उससे न गुजरना पड़े। 16 दिसंबर से 26 दिसंबर तक वह दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रही थी। इस दौरान उसने अपनी मां को अपना दर्द कागज पर लिख कर बयां किया था, क्योकि वह कुछ भी कह पाने में असमर्थ थी। इन्हे पढ़कर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे।
“मां मुझे बहुत दर्द हो रहा है। मुझे याद आ रहा है कि आपने और पापा ने मुझसे बचपन में पूछा था कि मुझे क्या बनना है। तब मैंने आपसे कहा था कि मुझे फिजियोथेरेपिस्ट बनना है। मेरे मन में एक बात थी कि मैं किस तरह से लोगों के दर्द को कम कर सकूं। आज मुझे खुद इतनी पीड़ा हो रही है कि डाॅक्टर या दवाई भी इसे कम नहीं कर पा रही है। डाॅक्टर पांच बार मेरे छोटे बड़े ऑपरेशन कर चुके हैं लेकिन दर्द कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है।”
मां, मैं सांस भी नहीं ले पा रही हूं। डाॅक्टरों से कहो की मुझे एनेस्थीसिया न दें। जब भी मैं आंखें बंद करती हूं तो लगता है कि मैं बहुत सारे दरिंदों के बीच फंसी हूं। जानवर रूपी ये दरिंदे मेरे शरीर को नोच रहे हैं। मां, ये लोग बहुत डरावने हैं। भूखे जानवर की तरह ये लोग मुझपर टूट पड़े हैं। ये मुझे बुरी तरह से रौंद डालना चाहते हैं। मां, मैं अब अपनी आंखें बंद नहीं करना चाहती हूं। मुझे बहुत डर लग रहा है। मैं अब अपना चेहरा भी नहीं देखना चाहती हूं।
मां मुझे नेहला दो, मैं नाहना चाहती हूं। मैं सालों तक शावर के नीचे बैठे रहना चाहती हूं। मैं उन जानवरों की गंदी छुअन को धो देना चाहती हूं, जिनकी वजह से मैं अपने शरीर से नफरत करने लगी हूं। मैंने कई बार बाथरूम जाने की कोशिश की लेकिन पेट मे दर्द की वजह से उठ नहीं पाई। मेरे शरीर में इतनी शक्ति नहीं है की मैं सिर उठाकर आईसीयू से बाहर खड़े अपनों को देख सकूं। मां आप मुझे छोड़कर मत जाना। अकेले में मुझे बहुत डर लगता है। मैं आपको तलाशने लगती हूं।
मां, आपने मुझे हमेशा से ही मुश्किलों से लड़ने की सीख दी है। मैं इन जानवरों को सजा दिलाना चाहती हूं। इन दरिंदों को ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता है। ये लोग वहशी हैं। इनके लिए माफी की भूल कर भी मत सोचना। इन्होंने मेरे दोस्त को भी बुरी तरह से मारा पीटा था, जब वह मुझे बचाने की कोशिश कर रहा था। उसने मुझे बचाने की बहुत कोशिश की और उसको भी बहुत बुरी तरह से मारा-पीटा गया। अब वो कैसा है।
मां, मैं अब बहुत थक गई हूं। मेरा हाथ अपने हाथ में ले लो। मैं अब सोना चाहती हूं। मां, मेरा सिर अपने पैरों मे रख लो। मेरा शरीर साफ कर दो। डॉक्टरों से कहकर मेरे इस दर्द को कम करने की दवाई दिलवा दो, बहुत दर्द हो रहा है। मेरे पेट मे दर्द लगातार बढ़ता जा रहा है। डाक्टरों से कहना की अब मेरे शरीर का कोई अंग न काटें, इससे मुझे बहुत दर्द होता है। मां, मुझे माफ कर देना, अब मैं ज़िंदगी से और नहीं लड़ सकती हूं।