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मुस्लिम विद्वानो का झूठ और भविष्य पुराण। 2

मुस्लिम विद्वानो का झूठ और भविष्य पुराण।

क्या है भविष्य पुराण का सच-

 

महाऋषि व्यास के अठारह पुराणों में से एक पुराण भविष्यपुराण में मुहम्मद पैगम्बर साहब की तारीफ बया की गई है। कुछ मुस्लिम विद्वान इस्लाम धर्म को महिमामंडित करने और सनातन धर्म को लेकर भविष्य पुराण का सहारा ले रहे हैं, और लगातार समाज को भ्रमित किया जा रहा है ताकि लोग इस्लाम के करीब आ सकें और ये बताने की कोशिश की जा रही है की पैगम्बर साहब का वर्णन तो आपके वेदों और पुराणों में भी किया गया है।

आइये भविष्य पुराण में महाराजा भोज और मोहम्मद की जिस चर्चा को मुस्लिम विद्वानों द्वारा आधार बनाया जा रहा है उसके कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं। सर्वप्रथम भविष्य पुराण में महाराजा भोज और मोहम्मद की जिस चर्चा का वर्णन मिलता है वो किस तरह झूठ का पुलिंदा है उसके कुछ तथ्य इस प्रकार हैं।
मोहम्मद और महाराज भोज के काल में लगमग 350 वर्षों का अन्तर है ।
मोहम्मद का जन्म मक्का शहर में सन् 570 में हुआ था। और मृत्यु
8 जून 632 में हुई । इस प्रकार ये कवल 62 की आयु पूर्ण किये।

हजरत मुहम्मद का जीवन काल-

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
इस्लाम के पैग़म्बर
अरबी सुलेख में मोहम्मद के नाम

जन्म- मोहम्मद इब्न अ़ब्दु अल्लाह
मक्का (शहर), मक्कः प्रदेश, अरब
(अब सऊदी अरब)

मृत्यु 8 जून 632 (उम्र 62)

यस्रिब, अरब (अब मदीनः, हेजाज़, सऊ़दी अ़रब)

मृत्यु का कारण- बुख़ार

समाधि स्थल-अल-मस्जिद अल-नबावी, मदीन हेजाज़, सऊ़दी अ़रब।

महाराजा भोज के कार्यकाल पर एक नजर-

ईशा की 10वीं सदी के आरम्भ काल में ”महेन्द्रपाल” नामक राजा के दरबार में ”बालरामायण, काव्यमीमांसा“ आदि 5 ग्रन्थों के रचयिता प्रसिद्ध कवि ”राजशेषर” थे।

महाराजा भोज ने इनके “बालरामायण” के 5 पद्यों तथा ”विद्धशालभञ्जिका” के 3 पद्यों को अपने ”सरस्वतीकण्ठाभरणम्” नामक ग्रन्थ में उद्धृत किया है।
अतः ईशा की 10वीं सदी के पूर्व महाराज भोज को कोई नहीं ले जा सकता।

महाराजा भोज के शासन कल में ”कालिदास” नामक विश्रुत विद्वान् थे। एक महाकवि कालिदास को ईशा की 5वी सदी में पाश्चात्य और भारतीय विद्वानों ने अन्तःसाक्ष्य और बाह्य साक्ष्य से माना है।
यही “रघुवंश” जैसे महाकाव्य के प्रणेता माने गये हैं।

अतएव राजशेषर ने 3कालिदासों की चर्चा की है कि श्रृंगार के ललित वर्णन में एक भी कालिदास को कोई नही जीत सकता फिर तीनों कालिदासों से जीतना तो असम्भव ही है।

एकोऽपि जीयते हन्त कालिदासो न केनचित्।
श्रृंगारे ललितोद्गारे कालिदासत्रयी किमु।।

इनमें एक कालिदास महाराज भोज की सभा में थे। अतः राजशेषर के 3 कालिदासों का वर्णन सुनकर यह निश्चित होता है कि वे महाराज भोज के समसामयिक थे। विश्रुतविद्वान् या पहलवान् अपने जीवनकाल में ही चर्चित होने लगते हैं।

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इधर महाराज भोज के पूर्वजों की शासन काल का निर्भ्रान्त वर्णन प्राप्त होता है ।
– उपेन्द्र —800 से 825 ईसवी तक
इनके बाद 9वीं पीढ़ी में महाराज भोज आते हैं जो सन् 1010 से लेकर सन् 1055 तक शासन करते हैं।  इनके बाद इनका उत्तराधिकारी इनका पुत्र जयसिंह होता है जिसने ताम्रदान पत्र सम्वत् 1112 (1112-57= 1055) अर्थात् सन् 1055 में खुदवाकर  उसमें जो लिखा है, वह भी इस विषय में प्रबल प्रमाण है।

इससे सुनिश्चित हुआ कि महाराज भोज –सन् 1010 —1055 ईशा तक हैं।
तथा मोहम्मद का काल सन 570 से सन 632 तक है।

महाराज भोज की पीढ़ी के प्रथम महाराज उपेन्द्र ( सन् 800 से सन् 825 तक शासन काल) से भी 168 वर्ष पूर्व मोहम्मद साहब शरीर त्याग चुके थे।
अतः महाराज भोज या इनके किसी पूर्वज से भी मोहम्मद का कोई सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता।

अतः इन अकाट्य साक्ष्यों के आधार से यही सिद्ध होता है कि पुराणों में मोहम्मद का महाराज भोज से सम्बन्ध किसी ने बाद में लोभ में आकर मिला दिया है ।
अतः भविष्यपुराण या कल्कि उपपुराण में मोहम्मद का नाम लेकर चिल्लपों मचाने वाले जाकिर नाइक जैसे दूसरें मुस्लिम विद्वानों को चाहिए कि वो भविष्य पुराण की आड़ में समाज में झूठ ना फैलाएं।

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