बचपन में खोई कहीं गुडिया सी कभी बड़ी हो जाती माँ
फिर छोड़ एक दिन मात पिता दुल्हन सी विदा हो जाती माँ
सब छोड़ मीत रिश्ते नाते नए घर को बसाने जाती माँ
एक दिन गोदी में फूल खिला जग में फिर माँ बन जाती माँ
अंधेरों में हमको यूं लपेट नौ माह छुपा रखती है माँ
दुनिया के उजाले देती है फिर दिल में छुपा लेती है माँ
भगवान नजर आता है नहीं पर पास नजर आती है माँ
नन्ही अखियाँ ना खोजें खुदा वो खोज रहीं कैसी है माँ
रोते हैं कभी दिल के टुकड़े तो आँख भिगो लेती है माँ
हँसते हैं कभी उसके बच्चे तो दर्द भुला देती है माँ
मन पे पत्थर रख कर जो कभी हलके से डपट देती है माँ
बच्चों की खुशी की खातिर पर दुनिया से टकरा जाती माँ
दुनिया कहती है बावरिया पर फ़िक्र कहाँ करती है माँ
दुनिया है चलती ज्ञान अकल से दिल से बस चलती है माँ
तुतलाते होठों की तरंग में खुद भी तुतलाती है माँ
हाथों को थामकर नन्हे पग धरती पे चलवाती है माँ
उस तुतलाते लड़खाते बचपन को मजबूत बनाती माँ
गिरने से पहले बाँह फैला सीने से लगा लेती है माँ
चोट लगी बालक तन पर लतपथ लेकिन हो जाती माँ
दवा हो जाते उसके आंसू दुआ वो खुद हो जाती माँ
नहीं है कोई पीर पैगम्बर नहीं कोई योगी बिन माँ
मूरत भगवान की क्या देखूं जब पास खड़ी हो मेरी माँ
दुनिया ने कहा अबला उसको ये क्या समझेंगे क्या है माँ
कंसों का काल रण की गुंजार कहीं कृष्ण बना देती हैं माँ
अभिमन्यु कटा चहुँ ओर घिरा उस वीर का आदि अंत है माँ
महाराणा की तलवार शिवाजी की टंकार में जीजा माँ
बलियों के बलों में रमती माँ शूरों के खून में बहती माँ
अग्नि की धधक में रहती माँ वीरों की जीत में बसती माँ
मेरी भी नहीं तेरी भी नहीं वो तो होती सबकी सांझी माँ
ना हिंदू की ना मुस्लिम की माँ तो बस एक होती है माँ
मानव! तू न यूं घूर उसे, वो कभी बनेगी एक दिन माँ
तेरे जैसे एक बालक को फिर बड़ा करेगी एक दिन माँ
है वो भी तन मन से वैसी जैसी है तेरी प्यारी माँ
उसकी इज्जत भी वैसी है जैसी है तेरी प्यारी माँ
सम्मान तू कर इतना उसका हर चेहरा याद दिलाए माँ
कह गैर को माँ, कि याद रखे तुझे मरने पर भी तेरी माँ
Source-agniveer.com