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संसद के शोर में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के बलिदान को भूला देश : क्या ऐसा प्रजातंत्र चाहा था हमने .. 2

संसद के शोर में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के बलिदान को भूला देश : क्या ऐसा प्रजातंत्र चाहा था हमने ..

क्रांतिकारी भगत सिंह की जिंदगी :

आज शहीद दिवस के मौके पर क्रांतिकारी भगत सिंह की जिंदगी से हमें कई तरह की प्रेरणाएं मिलती हैं। उनके कई विचार ऐसे हैं, जिनसे किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं। भगत सिंह का मानना था कि जिंदगी तो सिर्फ अपने दम पर ही जी जाती है।

भगत सिंह कहते थे कि आमतौर पर लोग जैसी चीजें हैं, उसी के आदी हो जाते हैं। वे बदलाव में विश्वास नहीं रखते और महज उसका विचार आने से ही कांपने लगते हैं। ऐसे में यदि हमें कुछ करना है तो निष्क्रियता की भावना को बदलना होगा। हमें क्रांतिकारी भावना अपनानी होगी।

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shaheed 2018

सिक्ख परिवार में पंजाब के लायलपुर में 28 सितंबर 1907 को जन्में भगत सिंह भारतीय इतिहास के महान स्वतंत्रता सेनानियों में जाने जाते थे। इनके पिता गदर पार्टी के नाम से प्रसिद्ध एक संगठन के सदस्य थे जो भारत की आजादी के लिये काम करती थी।

भगत सिंह ने अपने साथियों राजगुरु, आजाद, सुखदेव, और जय गोपाल के साथ मिलकर लाला लाजपत राय पर लाठी चार्ज के खिलाफ लड़ाई की थी। शहीद भगत सिंह का साहसिक कार्य आज के युवाओं के लिये एक प्रेरणास्रोत का कार्य कर रहा है।

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“इंकलाब जिंदाबाद” के नारे लगाते हुए :

वर्ष 1929 में, 8 अप्रैल को अपने साथियों के साथ केन्द्रीय विधायी सभा में “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे लगाते हुए बम फेंक दिया था। उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ और 23 मार्च 1931 को लाहौर के जेल में शाम 7:33 बजे फाँसी पर लटका दिया गया था।

उनके शरीर का दाह-संस्कार सतलुज नदी के किनारे हुआ था। वर्तमान में हुसैनवाला (भारत-पाक सीमा) में राष्ट्रीय शहीद स्मारक पर, एक बहुत बड़े शहीदी मेले का आयोजन उनके जन्म स्थान फिरोज़पुर में किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है। बता दें कि भगत सिंह ने मौत की सजा मिलने के बाद भी माफीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था। बाद में 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई थी।

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