शहीद राजगुरु की जीवनी :
शहीद राजगुरु का पूरा नाम ‘शिवराम हरि राजगुरु’ था। राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे ज़िले के खेड़ा गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘श्री हरि नारायण’ और माता का नाम ‘पार्वती बाई’ था। राजगुरु सिर्फ सोलह साल की उम्र में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गये। उनका और उनके साथियों का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश अधिकारियों के मन में खौफ पैदा करना था। साथ ही वे घूम-घूम कर लोगों को जागरूक करते थे और जंग-ए-आजादी के लिये जागृत करते थे।
महात्मा गांधी और राजगुरु के विचार :
राजगुरु का मानना था कि अगर कोई एक गाल में मारे तो सामने वाले को दोनों गाल पर मारना चाहिये और किसी भी तरह का अन्याय नहीं सहना चाहिये इसलिए वे महात्मा गांधी के विचार के विरुद्ध रहते थे, महात्मा गांधी और राजगुरु के विचार आपस में मेल नहीं खाते थे। राजगुरु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे।
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पन्द्रह वर्ष की आयु में राजगुरु पैदल बनारस पहुँचे :
1919 में जलियांवाला बाग़ में जनरल डायर के नेतृत्व में किये गये भीषण नरसंहार ने राजगुरु को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बागी और निर्भीक बना दिया तथा उन्होंने उसी समय भारत को विदेशियों के हाथों आज़ाद कराने की प्रतिज्ञा ली। 1924 में पन्द्रह वर्ष की आयु में राजगुरु लगातार छः दिनों तक पैदल चलते हुये बनारस पहुँचे। राजगुरु ने काशी (बनारस) पहुँचकर एक संस्कृत विद्यालय में प्रवेश लिया और वहाँ संस्कृत का अध्ययन करने लगे।
राजगुरु पर ‘लाहौर षड़यंत्र’
राजगुरु ने भगत सिंह के साथ मिलकर 19 दिसंबर 1928 को सांडर्स को गोली मारी थी। राजगुरु ने 28 सितंबर, 1929 को एक गवर्नर को मारने की कोशिश की थी जिसके अगले दिन उन्हें पुणे से गिरफ़्तार कर लिया गया था। राजगुरु पर ‘लाहौर षड़यंत्र’ मामले में शामिल होने का मुक़दमा भी चलाया गया। 1924 में राजगुरु का क्रांतकारी दल से सम्पर्क हुआ और एच एस आर ए के कार्यकारी सदस्य बनें। एक पुलिस ऑफिसर की हत्या करने के बाद राजगुरु नागपुर में जाकर छिप गये। वहां उन्होंने आरएसएस कार्यकर्ता के घर पर शरण ली। वहीं पर उनकी मुलाकात डा केबी हेडगेवर से हुई, जिनके साथ राजगुरु ने आगे की योजना बनायी।
भारत की सैनिक छावनियों में क्रान्ति की योजना :
‘संघ संस्थापक डा. केशव बलिराम हेडगेवार जन्मजात देशभक्त और प्रथम श्रेणी के क्रांतिकारी थे। वे युगांतर और अनुशीलन समिति जैसे प्रमुख विप्लवी संगठनों में डा. पांडुरंग खानखोजे, श्री अरविन्द, वारीन्द्र घोष, त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती आदि के सहयोगी रहे। रासबिहारी बोस और शचीन्द्र सान्याल द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध के समय 1915 में सम्पूर्ण भारत की सैनिक छावनियों में क्रान्ति की योजना में वे मध्यभारत के प्रमुख थे।
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कांग्रेस उस समय स्वतंत्रता आन्दोलन का मंच था। उसमें भी उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई। 1921 और 1930 के सत्याग्रहों में भाग लेकर कारावास का दंड पाया। ‘संघ का वातावरण देशभक्तिपूर्ण था। इसी को मद्देनजर रखते हुए राजगुरु नागपुर की भोंसले वेदशाला में पढ़ते समय स्वयंसेवक बने। इसी समय भगतसिंह ने भी नागपुर में हेडगेवार से भेंट की थी।
दिसम्बर 1928 में ये क्रांतिकारी पुलिस उपकप्तान सांडर्स का वध करके, लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेकर, लाहौर से सुरक्षित आ गये थे। डा. हेडगेवार ने राजगुरु को उमरेड में भैयाजी दाणी के फार्महाउस पर छिपने की व्यवस्था की थी। ‘1928 में साइमन कमीशन के भारत आने पर पूरे देश में उसका बहिष्कार हुआ। नागपुर में हड़ताल और प्रदर्शन करने में संघ के स्वयंसेवक अग्रिम पंक्ति में थे।