भोपाल कांड देश के इतिहास पर सबसे बड़ा बदनुमा दाग है जिसकी वजह से आज भी भोपाल की हवा में जहर का अनुभव होता है. भोपाल गैस त्रासदी के 27 साल गुजरने के बाद भी जख्म अभी ताजे हैं. जब भी इस घटना की बरसी आती है तो इस दुर्घटना में मरने वाले और प्रभावित होने वाले हजारों मासूमों की याद जेहन में बरबस ताजा हो जाती है.
नयी पीढियों को शायद इसके के बारे में ज्यादा जानकारी न हो परन्तु अपने समय में इस घटना ने देश की राजनीति और समाज को प्रत्यक्षतः बुरी तरह प्रभावित किया था।
2-3 दिसंबर की रात जानलेवा गैस मिथाइल आइसोसायनाइड (MIC) के रिसाव से भोपाल के हॉस्पिटल लाशों से पट गए थे। उसके बाद बिना गिरफ्तारी के लाखों लोगों के गुनाहगार यूनियन कार्बाइड के सीईओ वारेन एंडरसन को ससम्मान मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अमेरिका वापस भेज दिया ? यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है.
तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आखिर किस दबाव में अर्जुन सिंह को आदेशित किया ,कि भोपाल गैस त्रासदी के बाद घटना स्थल पर पहुंचे वारेन एंडरसन को सकुशल वापस भेज दिया जाए। भोपाल गैस त्रासदी का इतिहास देखेंगे तो पायेंगे कि इस त्रासदी की पृष्ठभूमि जान बूझकर रची गयी।
इस घटना को लेकर सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए शपथ पत्र में मरने वालों की संख्या 5295 है जबकि राज्य सरकार ने एक अन्य याचिका में मरने वाले लोगों की संख्या 15248 बताई है. इस तरह उक्त आंकड़ों को देखें तो विरोधाभास झलक रहा है. यही नहीं इस हादसे में बीमार होने वाले लोगों के आंकड़ों की संख्या में भी संशय के बादल हैं. 2004 तक साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोग इस गैस रिसाव के कारण बीमारी की चपेट में आये जिनका इलाज जारी है.दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी और 15 हजार से ज्यादा जानें छीनने वाली व पांच लाख से ज्यादा लोगों को अपने घातक जद में लेने वाली इस नरसंहारक घटना की मुआवजा राशि मात्र 713 करोड़ रुपये.
भोपाल गैस कांड के मुख्य आरोपी का किया राजीव गाँधी ने एक सजायाफ्ता दोस्त के लिए सौदा। वो कोई और नहीं बल्की नेहरू के करीबी सहयोगी मोहम्मद यूनुस के बेटे – दोषी करार दोस्त आदिल शहरयार था। शहरयार अमेरिकी अधिकारियों द्वारा अगस्त 1981 में गिरफ्तार किया गया था, धोखाधड़ी के मामलों और एक होटल के कमरेमें आग के लिए 35 साल की सजा काट रहा था ।
सुभाष चंद्र बोस के इतिहासकार अनुज धार ने कहा की युनुस ने राजीव गाँधी को धमकी दी थी की अगर राजीव गाँधी ने उनके बेटे की रिहाई में उसे मदद नहीं की तो वो नेताजी मामले में नेहरू की भूमिका प्रकट कर देगा।
इसलिए हमारी सरकार ने यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को उस समय देश से निकलने में पूरी मदद की जिसक वजह से हजारों जानें गईं. जानकार मानते हैं कि मध्य प्रदेश पुलिस की कैद से यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को‘दिल्ली’ के दबाव से 8 दिसंबर, 1984 को रिहा किया गया. और यह दिल्ली का दबाव किसी और का नहीं उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का था।.