नीदरलैंड के एक युवा ने पृथ्वी के महासागरों को प्लास्टिक के मलबे से मुक्त कराने का सपना देखा. उसके खास फिल्टर बनाने के आइडिया को कई समुद्र विज्ञानियों ने प्रेरणादायक माना तो कईयों ने मजाक उड़ाया.
हत्यारा प्लास्टिक!
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने महासागरों में फैले प्रदूषणकारी प्लास्टिक के करीब सात लाख टन कचरे के बारे में एक साल का अध्ययन किया. इसमें पाया गया कि मछली और पक्षियों की खाद्य श्रृंखला में प्लास्टिक ने घुसपैठ कर ली है. इसके छोटे छोटे टुकड़े इन सभी जानवरों के शरीर में पहुंच कर उनकी जान ले रहे हैं.
नए आइडिया का अपमान
नीदरलैंड के एक 20 वर्षीय छात्र बोयान स्लाट ने इस सदी की सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्या से निपटने का एक सरल समाधान सुझाया. उसने आइडिया दिया कि समुद्री पानी पर तैरने वाले प्लास्टिक के कचरे को एक खास फिल्टर से साफ किया जाए. इस विचार को समुद्री विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने ज्यादा पसंद नहीं किया.
वैज्ञानिकों की राय
वैज्ञानिकों ने इसे एक बड़ी समस्या को बेहद हल्का समझने वाला उपाय बताया. फिर भी 16 साल की उम्र से ही इस आइडिया पर काम कर रहे स्लाट ने इसे छोड़ा नहीं और धीरे धीरे उनके दि ओशन क्लीनअप फाउंडेशन के साथ लोग जुड़ते गए. क्राउडफंडिंग के माध्यम से कई लाख डॉलर की राशि जुटाने वाले स्लाट ने अपने प्रोटोटाइप उत्पाद के परीक्षण के लिए 100 विशेषज्ञों को आमंत्रित किया. नतीजे बेहद उत्साहजनक मिले.
सागर प्रवाह, कचरा ब्लाक
स्लाट के कृत्रिम फिल्टर के प्रोटोटाइप का परीक्षण कर वैज्ञानिकों ने माना कि उसके इस्तेमाल से 10 साल के भीतर समुद्र में करीब 100 किलोमीटर की दूरी में लगभग 40 प्रतिशत समुद्री कचरे को निकाला जा सकता है. यह विधि समुद्र की धाराओं के साथ बहकर आए प्लास्टिक को छानने पर आधारित है.
संदेह और आलोचना
इस विधि में सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर हवा के झोंके नहीं चलें तो प्लास्टिक का कचरा बहकर फिल्टर की तरफ नहीं पहुंच पाएगा. ज्यादातर वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने कृत्रिम फिल्टर की प्रभावशीलता पर शक जताया है. फिल्टर हल्का होने के कारण बड़ी आसानी से दूर बह सकता है और क्षतिग्रस्त हो सकता है. फिर भी किसी पक्के उपाय के मिलने तक छोटे छोटे कदम उठाने में स्लाट को कोई हर्ज नहीं लगता.