सुनने में थोड़ा अजीब अवश्य लगे लेकिन जोधपुर शहर में असत्य का प्रतीक माने जाने वाले लंकाधिपति रावण का न केवल मंदिर है बल्कि इसकी रोजाना पूजा की जाती है। इस मंदिर में लंकेश की यहां पर आदमकद प्रतिमा को शिव की आराधना करते हुए दर्शाया गया है। स्वयं को लंकेश का वंशज बताने वाले गोधा दवे ब्राह्मण परिवार के लोग नियमित रूप से इसकी पूजा-अर्चना करते है। इस मंदिर में ही जोधपुर निवासी मानी जाने वाली रावण की पत्नी मंदोदरी की प्रतिमा भी स्थापित है।
आए थे बाराती बन, यहीं बस गए
जोधपुर में लंकेश की पूजा करने वाले पुजारी पंडित कमलेश दवे का दावा है कि विवाह के समय रावण दईजर की गुफा से जोधपुर आया था। वापसी में वह यहां से पुष्पक विमान से गया था। उस समय रावण के वंशज दवे गोधा जाति के कुछ लोग यहीं पर रह गए। कालांतर में उन्होंने लंकेश की पूजा अर्चना शुरू कर दी। पहले प्रतीकात्मक रूप से उनके चित्र की पूजा की जाती थी। बाद में विशेष रूप से उनकी प्रतिमा का निर्माण करवा कर पूजा शुरू कर दी गई। पंडित दवे का दावा है कि रावण बहुत ही ज्ञानी और शिव भक्त थे। उनकी शिव भक्ति के बारे में शास्त्रों में भी उल्लेख है। इसे ध्यान में रख उनकी प्रतिमा को भी विशेष रूप से शिव भक्ति करते हुए दर्शाया गया है।
बाकायदा मनाते है शोक
दशहरा पर प्रतिवर्ष रावण दहन के दौरान गोधा दवे गोत्र के लोग बाकायदा शोक मनाते है। ये लोग शाम को दहन के पश्चात हिन्दू धर्म के अनुसार, किसी के दाह संस्कार के पश्चात किए जाने वाले स्नान इत्यादि कर्म करने के बाद ही अपने घर में प्रवेश करते है।
मंडोर की थी मंदोदरी
ऐसी मान्यता है कि रावण की पत्नी मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मंडोर की रहने वाली थी। मंडोर निवासी होने के कारण उसका नाम मंदोदरी पड़ा। मंडोर के प्राचीन किले के अवशेषों में एक स्थान को रावण की चंवरी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि चंवरी में मंदोदरी के साथ सात फेरे ले रावण विवाह बंधन में बंधा था।
Source- dainikbhaskar.com