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पहाड़ के शिखर पर पहुंचना अब आदत-सी बन गयी है एक भारतीय महिला के लिए 2

पहाड़ के शिखर पर पहुंचना अब आदत-सी बन गयी है एक भारतीय महिला के लिए

जमशेदपुर को सिर्फ टाटा के स्टील प्लांट के लिये ही नहीं जाना जाता है बल्कि एक महिला ने भी इस स्टील नगरी को देश और दुनिया में मशहूर किया है। जमशेदपुर की 52 वर्षीय प्रेमलता अग्रवाल किसी सामान्य भारतीय गृहणी जैसी ही हैं लेकिन उनके कारनामे उन्हें औरों से अलग बना देते हैं। प्रेमलता आज पर्वतारोहण की दुनिया में एक जाना-माना नाम हैं और उन्हें देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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वर्ष 2013 को प्रेमलता अग्रवाल ने 50 वर्ष की उम्र में वह कारनामा कर दिखाया जो हर पर्वतारोही का सबसे बड़ा सपना होता है। 23 मई 2013 को प्रेमलता ने ‘सेवन समिट्स’, यानि कि दुनिया के सातों महाद्वीपों की सबसे ऊँची चोटियों को फतह किया और वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। उन्होंने उत्तर अमेरिका महाद्वीप की अलास्का रेंज के माउंट मैककिनले पर चढ़ाई कर यह रिकॉर्ड अपने नाम किया। दरअसल, सात महाद्वीपों की 7 सबसे ऊंची पर्वत चोटियों को ‘सेवन समिट्स’ कहा जाता है, जिसमें किलिमंजारो, विन्सन मैसिफ, कॉसक्यूजको, कार्सटेन्सज पिरामिड, एवरेस्ट, एलब्रुस और माउंट मैककिनले शामिल है।

इससे पहले प्रेमलता अग्रवाल 20 मई 2011 कों भी देश और दुनिया को चकित कर चुकी थीं जब उन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली सबसे उम्रदराज भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त किया था। उन्होंने यह कारनामा 48 वर्ष की किया था। ऐसा नहीं है कि प्रेमलता ने यह सफलता रातों-रात हासिल की हो। इसके लिये उन्हें कई स्तरों पर खुद को साबित करना पड़ा और कई लिटमस टेस्ट पास करने पड़े।

4दार्जिलिंग के छोटे से कस्बे सुखीपोकरी में जन्मी प्रेमलता का विवाह 1981 में जमशेदपुर के रहने वाले एक मारवाड़ी परिवार में हुआ। शाम के समय वे अपनी दो बेटियों को जेआरडी खेल परिसर में लेकर जातीं और वहीं योग सीखतीं। इसी दौरान उन्होंने मशहूर प्रर्वतारोही बछेंद्री पाल के नेतृत्व में होने वाली ‘डालमा हिल्स वाॅकिंग कंप्टीशन’ में भाग लिया और तीसरा स्थान प्राप्त किया। ईनाम लेते समय उन्होंने बछेंद्री पाल से बेटी को इस एडवेंचर स्पोर्ट में डालने की राय ली तो उन्होंने उल्टा प्रेमलता को ही पर्वतारोहण करने का प्रस्ताव दिया। इस तरह 1999 में 36 साल की उम्र में एक गृहणी के पर्वतारोहण करियर की नींव पड़ी।

सबसे पहले वे अपनी बेटी के साथ उत्तरकाशी पर्वतारोहण का बेसिक कोर्स करने गईं और 13 हजार फुट की हिमालय पहाड़ी श्रंखला पर चढ़कर न केवल ‘ए’ ग्रेड हासिल किया बल्कि ‘बेस्ट ट्रेनी’ का खिताब भी अपने नाम किया। ‘‘हूँ तो मैं दार्जिलिंग की। मेरा बचपन पहाड़ों पर ही बीता था ओर मुझे पहाड़ों पर चलने की आदत थी। लेकिन कभी पर्वतारोहण करने के बारे में नहीं सोचा था।’’

2004 तक प्रेमलता बछेंद्री पाल के साथ लद्दाख और नेपाल में कई पर्वतारोही अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा कर चुकी थीं। अब उनके सामने अगला लक्ष्य था माउंट एवरेस्ट को फतह करना लेकिन परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के कारण उन्होंने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। 2010 आते-आते उनकी दोनों बेटियों का विवाह हो गया और अब उन्होंने अपने लक्ष्य पर फिर से ध्यान केंद्रित किया।

‘‘इस 6 वर्षों में काफी कुछ बदल चुका था और मेरी उम्र भी लगातार बढ़ रही थी लेकिन मैंने हार नहीं मानी और पति के सहयोग और प्रेरणा से दिसंबर में सिक्किम ट्रेनिंग के लिये गईं और जीतोड़ मेहनत की। मेंने एवरेस्ट पर जाने के लिये जरूरी स्टेमिना पाने के लिये कड़ी ट्रेनिंग की।’’

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आखिरकार 25 मई 2011 को वह दिन आ ही गया जब प्रेमलता अपने साथियों के साथ काठमांडू और उसके आगे लूकला जाने के लिये जहाज में बैठीं। इस अभियान के लिये 18 हजार फुट की ऊँचाई पर लगे आधार शिविर और एवरेस्ट चोटी के बीच लगे तीन शिविरों को पारकर टीम को एवरेस्ट को फतह करना था। इसके अलावा 27 हजार फुट की ऊँचाई, माईनस 45 डिग्री से कम का तापमान, शरीर गलाने वाली ठंड से पार पाना भी अपने आप में बड़ी चुनौती था।

‘‘मेरी मेहनत 20 मई 2011 सफल हुई और सुबह 9:30 पर मैंने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराया। मैंने विश्व के अतुलनीय इस शिखर पर लगभग 20 मिनट बिताए ओर अपने साथ लाए कैमरे से कुछ फोटो भी खींचे। वापसी में काठमांडू में मेरे पति और बेटियां मुझे लेने आईं और यह सफलता मेरी अकेली की नहीं है। इसमें मेरे परिवार का पूरा सहयोग है।’’

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इसके बाद प्रेमलता रुकी नहीं और ‘सेवन समिट्स’ को फतेह करने की दिशा में प्रयास करती रहीं और अंततः अपने इस लक्ष्य को उन्होंने मई 2013 में पा लिया। प्रेमलता बताती हें कि अब भी बहुत लोग उनसे पूछते हैं कि एवरेस्ट चढ़ने का क्या फायदा है? उन्हें इस काम को करके कोई ईनाम मिलता है या फिर इतनी ऊँचाई पर उन्हें भगवान मिलते हैं।

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भविष्य में प्रेमलता अपना एक फिटनेस सेंटर खोलना चाहती है जहां वे महिलाओं को योग, एरोबिक्स और प्राणायाम सिखा सकें। इसके अलावा वे मारवाड़ी समुदाय की महिलाओं के लिये एक माह का फिटनेस ट्रेनिंग कैंप भी चलाती हैं।

6माउंट एवरेस्ट से वापस आने के बाद प्रेमलता ने देखा कि लोगों के नजरिये में उनके प्रति काफी बदलाव आया है। ‘‘जब मैं वापस आई तो स्थानीय महिलाओं ने स्टेशन पर आरती की थाली और फूलमाला से मेरा स्वागत किया। शायद उन लोगों की समझ में आ गया था कि मैं क्या कर रही हूँ।’’

प्रेमलता ने अपने साहस और दृढ़ता से दुनिया को दिखा दिया कि कुछ भी हासिल करने के लिये उम्र का कोई बंधन मायने नहीं रखता।

source- Yourstory

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