भगवान शिव त्रिमूर्ति में से एक हैं। अन्य दो भगवान विश्व रचयिता बह्मा तथा संरक्षक देवता विष्णु हैं। शिव को विनाशक माना जाता है। उन्हें देवों का देव कहा जाता है। उन्हें असीम, निराकार और तीनों देवताओं में सबसे बड़ा माना जाता है। शिव के कई डरावने रूप हैं जो भयानक रूप से शक्तिशाली हैं। त्रिमूर्ति में उन्हें प्रभावित करना सबसे आसान है। तथा इनके क्रोध की तीव्रता भी सबसे अधिक है। पढ़िए, यहाँ हम आपको भगवान शिव के बारे में कुछ ऐसे तथ्य बता रहे हैं जिनके बारे में आप लोग बहुत कम जानते हैं।
शिव जी का जन्म
इस बारे में एक कहानी है जो बहुत ही मनोहर और मंत्रमुग्ध कर देने वाली है। एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु में बहस हो रही थी कि उन दोनों में कौन अधिक शक्तिशाली है। तभी अचानक ब्रह्मांड से प्रकाश के एक जबरदस्त स्तंभ ने प्रवेश किया और उस प्रकाश की जड़ें तथा शाखाएं क्रमशः धरती और आकाश से भी आगे निकल गयी। ब्रह्मा हंस बन गए तथा उन शाखाओं का अंत ढूँढने के लिए शाखों पर चढ़ गए। उसी समय विष्णु जंगली वराह (सूअर) बन गए तथा उस स्तंभ की जड़ें ढूँढने के लिए धरती की गहराई में खोदने लगे। 5000 वर्षों बाद वे दोनों मिले।
सबसे अलग भगवान
भगवान शिव ऐसे देवता हैं जिन्होनें भगवान होने की पारंपरिक मान्यताओं को तोडा। वे बाघ की खाल पहनने, शमशान की राख को अपने शरीर पर लगाने, खोपड़ियों से बनी माला पहनने तथा अपने गले के चारों ओर सांप पहनने के लिए जाने जाते हैं। वे भांग पीने और उन्मत्त व्यक्ति की तरह नृत्य करने के लिए भी जाने जाते हैं। वे एक ऐसे भगवान हैं जो यह मानते हैं कि व्यक्ति के कर्म ही उसे बनाते हैं ना कि उसकी जाति।
नृत्य के देवता
शिव को नटराज भी कहा जाता है जिसका अर्थ है नृत्य के देवता। वे एक उत्कृष्ट नर्तक के रूप में भी जाने जाते है तथा उनकी मुद्रा पूरे विश्व में जानी जाती है। उनके दाहिने हाथ में एक डमरू (छोटा ड्रम) है जो सृष्टि का प्रतिनिधित्व करता है तथा उनका नृत्य ब्रह्मांडके विनाश का संकेत करता है। इसे तांडव कहा जाता है। इसके अलावा यह ब्रह्मा को यह संकेत भी देता है कि यह प्रकृति के पुनर्निर्माण का समय है।
वानर अवतार
भगवान विष्णु के बाद एक अन्य सर्वशक्तिशाली भगवान हनुमान हैं। इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है कि वे बहुत शांत हैं! उन्हें भगवान शिव का 11वां अवतार कहा जाता है। हनुमान को भगवान राम के प्रति उनकी महान भक्ति के लिए जाना जाता है।भगवान राम भगवान विष्णु का ही अवतार थे। उनके बीच का बंधन भगवान शिव की भगवान विष्णु के प्रति भक्ति को प्रदर्शित करता है।
नीलकंठ
उत्कृष्ट पौराणिक हिंदू कथाओं में से एक कथा समुद्र मंथन की भी है। अमरता प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन से मिलने वाले अमृत को बांटने के लिए देवताओं और असुरों ने आपस में गठबंधन किया। मंदार पर्वत को मथनी बनाया गया और भगवान शिव के सर्प वासुकी को रस्सी बनाया गया। इसके बहुत विनाशकारी परिणाम हुए क्योंकि पूरे समुद्र का मंथन किया गया। इसके उप उत्पाद के रूप में हलाहल निकला जो संभवत: पूरे ब्रह्मांड में विष फैला सकता था। तभी भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने विष का सेवन कर लिया। ज़हर को फैलने से बचाने के लिए पार्वती ने भगवान शिव के गले को पकड़कर रखा। इससे भगवान शिव का गला नीले रंग का हो गया और उनका नाम नीलकंठ पड़ा।
भगवान गणपति के पीछे कारण
भगवान गणेश तब अस्तित्व में आए जब पार्वती ने अपने शरीर के मैल से उनका निर्माण किया। पार्वती ने उनमें प्राण डाले तथा ऐसी इच्छा की कि वे उनके प्रति वैसे ही वफादार रहे जैसा नंदी शिव के प्रति वफादार हैं। जब शिव घर आए तो गणपति ने उन्हें रोक दिया क्योंकि उनकी माता पार्वती स्नान कर रही थी तथा पार्वती ने गणेश को द्वारपाल बनाकर खड़ा किया था। शिव जी को गुस्सा आ गया और बिना जाने कि वह कौन थे गणेश जी का सिर काट दिया। इस बात से पार्वती को अपमान महसूस हुआ और उन्होंने सृष्टि को नष्ट करने की कसम खाई। तब शिव को अपनी मूर्खता का एहसास हुआ। अत: उन्होंने गणेश के सिर पर हाथी का सिर लगाकर उसमें प्राण डाल दिए। इस प्रकार गणेश जी का जन्म हुआ।
भूतेश्वर
जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि शिव अपरंपरागत हैं। वे शमशानों में घूमते हैं तथा अपने शरीर पर राख लगाते हैं। उनके कई नामों में से भूतेश्वर भी एक नाम है। इसका अर्थ है भूतों और बुरी शक्तियों के देवता। इसके बारे में हमें अभी कुछ जानकारी नहीं है।
मृत्यु को हराने वाले
शिव की दस वर्ष उपासना करने के पश्चात मृकंदु और मरुद्मति को मार्कंडेय नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। परन्तु उसके भाग्य में केवल 16 वर्ष तक की आयु ही लिखी थी। मार्कंडेय भगवान शिव का परम भक्त था तथा यम का दूत उसका जीवन लेने में असफल था। जब मृत्यु के देवता यम स्वयं मार्कंडेय के प्राण लेने आए तो अंततः भगवान शिव के साथ उनका युद्ध हुआ। भगवान शिव ने यम को केवल इस शर्त पर जीवित किया कि मार्कंडेय हमेशा जीवित रहेगा। इस घटना से उनका नाम कालांतक पड़ा जिसका अर्थ है “काल (मृत्यु) को हरने वाला”।
त्र्यंबक देव
भगवान शिव को प्रबुद्ध माना जाता है। त्र्यंबक देव का अर्थ है तीन आँखों वाले देवता। शिव की तीसरी आँख है जो केवल तभी खुलती है जब किसी कि मारना हो या विनाश करना हो। कहा जाता है कि भगवान शिव ने अपनी तीसरी आँख से कामदेवता को जलाकर भस्म तीसरी आँख से कामदेवता को जलाकर भस्म कर दिया था
लैंगिक समानता के प्रचारक
भगवान शिव का दूसरा नाम अर्धनारीश्वर है। उन्हें आधे पुरुष और आधी स्त्री के रूप में दिखाया गया है। भगवान शिव यहाँ यह बताते हैं कि किस प्रकार पुरुष और स्त्री रूप एक दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते। वे यह बताते हैं कि भगवान न तो स्त्री है न पुरुष।बल्कि वह दोनों है। उन्होंने पार्वती को हमेशा बराबर का सम्मान दिया। शिव अपने समय से काफी आगे थे तथा यह भी जानते थे कि प्रत्येक मनुष्य को समान सम्मान प्राप्त करने का अधिकार है।