डॉ़क्टर मोहम्मद ने कहा कि मंदिर मामले में देश के मुसलमानों को कुछ वामपंथी चिंतकों ने गुमराह किया था. अगर ऐसा न हुआ होता तो ये मुद्दा कब का सुलझ चुका होता.
मोहम्मद ने कहा कि ये खुदाई भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक प्रोफेसर बीबी लाल के नेतत्व में की गई थी. उस टीम में मैं भी एक सदस्य था.
ये सब मुस्लिमों को ये समझाने में कामयाब हो गए कि 19वीं शताब्दी से पहले मंदिर में तोड़फोड़ करने और वहां बौद्ध और जैन धर्म का केंद्र होने का कहीं कोई जिक्र नहीं है. इस बात का आरएस शर्मा, डीएन झा, सूरज बेन और अख्तर अली जैसे कई वामपंथी इतिहासकारों ने समर्थन किया था.
डॉ. मोहम्मद ने आरोप लगाते हुए कहा- ”इन लोगों ने अयोध्या मामले को शांति से निपटने नहीं दिया. इन लोगों ने चरमपंथी मुस्लिमों से मिलकर इसका सौहार्दपूर्ण हल निकालने की कोशिशों को पटरी से उतार दिया. इनमें से कईयों ने सरकारी बैठकों में हिस्सा लिया और बाबरी मस्जिद कमेटी की बैठक में भी हिस्सा लिया.”
उन्होंने कहा, “अयोध्या मामला बहुत पहले हल हो जाता, यदि मुस्लिम बुद्धिजीवी, वामपंथी इतिहासकारों के ब्रेन-वाश का शिकार न हुए होते। रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा और एस गोपाल सहित इतिहासकारों के एक वर्ग ने तर्क दिया था कि 19वीं शताब्दी से पहले मंदिर की तोड़फोड़ और अयोध्या में बौद्ध जैन केंद्र होने का कोई जिक्र नहीं है। इसका इतिहासकार इरफान हबीब, आरएस शर्मा, डीएन झा, सूरज बेन और अख्तर अली ने भी समर्थन किया था।”
डॉ. मुहम्मद कहते हैं, “ये वे लोग थे, जिन्होंने चरमपंथी मुस्लिम समूहों के साथ मिलकर अयोध्या मामले का एक सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने के प्रयासों को पटरी से उतार दिया। इनमें से कइयों ने सरकारी बैठकों में हिस्सा लिया और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का खुला समर्थन किया।”
पुरातत्व वैज्ञानिक डॉ. केके मोहम्मद ने लिखा है कि ‘जो कुछ मैंने जाना और कहा है, वो ऐतिहासिक सच है. हमें विवादित स्थल से 14 स्तंभ मिले थे. सभी स्तंभों में गुंबद खुदे हुए थे. ये 11वीं और 12वीं शताब्दी के मंदिरों में मिलने वाले गुंबद जैसे थे. गुंबद में ऐसे 9 प्रतीक मिले हैं, जो मंदिर में मिलते हैं.
खुदाई से ये भी साफ हो गया था कि मस्जिद एक मंदिर के मलबे पर खड़ी की गई. उन दिनों मैंने इस बारे में कई अंग्रेजी अखबारों में भी लिखा था, लेकिन उन्हें ‘लेटर टू एडिटर वाले कॉलम’ (अखबार में बहुत छोटी जगह) जगह दी गई थी.