बीजेपी द्वारा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में 2017 में लड़ा गया ये चुनाव स्वतंत्रता के बाद का सबसे नाटकीय चुनाव है, जिसमें करोड़ों लोगों ने अपने भाग्य को बदलने के लिए हिस्सा लिया! 11 मार्च 2017 को उनके भाग्य की पेटी खुली और जो निर्णय बाहर आया उसने स्वयं को चुनाव पंडित समझने वालों और मंडल-कमंडल के आधार पर विश्लेषण करने वालों को नासमझ साबित कर दिया !
जातिपाति से इतर विकास के मुद्दे पर लड़ा गया चुनाव
जो लोग ये समझते थे कि लोगों को केवल धर्मपंथ, जातपात और चुनावी तामझाम दिखा कर बहकाया जा सकता है और अधूरे कामों और असंख्य उद्घाटनों के आधार पर उनसे वोट लिया जा सकता है उन्हें अब दुबारा सोचने पर मजबूर होना पड़ा है!
भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार 2014 में सभी राजनितिक दलों को विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर किया था, उस उपलब्धी से आगे बढ़ते हुए इसबार विकास कार्य करने और रिपोर्ट दिखाने पर मजबूर कर दिया है! आलम ये हुआ की सत्ता पक्ष ने आखरी दिनों में कई कार्यों के उद्घाटन कर उन्हें अपना काम दिखाने की कोशिश की और फिर भी अपनी साख बचाना मुश्किल हो गयी!
यूपी चुनाव में दांव पर थी मोदी की साख
इन राज्यों के पांच विधानसभा चुनावों के परिणाम जो पिछले दो महीने में हुए थे, वे भारत में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बिंदु का प्रतीक हैं। भारतीय जनता पार्टी की एक स्पष्ट प्रवृत्ति उभरकर सामने आई है, जिसने कांग्रेस को अखिल भारतीय राजनीतिक दल के रूप में विस्थापित कर दिया गया है, जिसमें अधिकतर राजनीतिक केन्द्रों पर कब्जा कर लिया गया है, जबकि चुनाव से पूर्व राष्ट्रिय मुद्दे छाये रहे जिन्होंने केंद्र की बीजेपी के राज्यों में उपस्थित वोटरों को चुनाव लड़ने के लिए मैदान में खड़ा कर दिया ! जिससे उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में पार्टियों का असली वोट शेयर उनकी विचारधारा के अधर पर उभर आया है। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने मान लिया है कि मोदी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति जाति से हट कर वर्ग पर सफलतापूर्वक बदल दी है।
सभी चुनावी पंडित मानते हैं कि जातिगत समीकरण के बिना राजनितिक सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है परन्तु इस बार ध्रुवीकरण आर्थिक वर्ग के आधार पर हुआ जिसे राजनीति में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है ! आज मध्यम वर्ग और नव-मध्यम वर्ग में एक आकांक्षा जागृत की जा रही है जिससे आर्थिक आत्मनिर्भरता और आर्थिक गतिशीलता आर्थिक सीढ़ी चढ़ने में सहायता कर सके और जीवन में सकारात्मक बदलाव आये !
कैसे बदल गयी भारतीय राजनीति की तस्वीर नम्बर
प्रधान मंत्री ने ऊपरी और मध्यम वर्ग को गरीबों को एलपीजी सब्सिडी देने के लिए सब्सिडी छोड़ने की जो सफलतापूर्वक अपील की ताकि उसे उपलब्ध नव-माध्यम और निम्न वर्ग को उपलब्ध कराया जा सके, अपने आप में एक अनूठी और जनता में भेदभव मिटने वाला कदम है जिससे कई जीवन में सुधर आया और इसमें सरकार और लोगों के बीच एक साझेदारी भी बनी !
दूसरी ओर विमुद्रीकरण(Demonetisation) के निर्णय को जनता ने एक बार फिर अमीर-गरीब की खाई कम करने वाला समझा और उनका हक मारने वालों पर हुई एक कार्यवाही के रूप में देखा, साथ ही इस निर्णय पर सारे विपक्ष के विरोध के बाद भी सरकार का अडिग रहना जनता में एक सरकार की ठोस छवि बना गया !
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से सर्वांगीण विकास की शुरुवात
मोदी द्वारा चालित इस नयी राजनीति में एक और पक्ष ग्रामीण और शहरी भारत का भी है, दोनों को अब तक एक दुसरे से बहुत अलग और विपरीत मन जाता रहा है ! परन्तु पहली बार समाज की बदलती छवि स्पष्ट हुई जिसमें ये दिखा कि कैसे दोनों एक दुसरे के पूरक है और एक दुसरे पर निर्भर है! बदलता समाज इस बात को अब मान रहा है कि नए बसते महा नगरों का आधार वहां आकर बसे ग्रामीण ही हैं जो उसे आकर दे रहे हैं! उनकी आवश्यकतायें ग्रामीण और शहरी दोनों ही तरह की हैं और ये लोग इन दो तरह के समाजों में एक पुल का कार्य कर रहे हैं! साथ ही ये राजनीति के बदलाव को शहरों से गाँव में ले जाकर एक जनजागृति लाने का काम कर रहे हैं!
शहर में रहने वाला ग्रामीण समझदार है, आधुनिक है, तकनीक और कानून की जानकारी भी रखता है और अपने क्षेत्र के हो रहे कार्यों और स्तिथि पर चिंतन भी करता है! इसी वर्ग ने इस बार ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव के समय लोगों से मिल उन्हें बदलाव लाने के लिए और बेहतर राजनीति चुनने के लिए तैयर किया, जो मीडिया में प्रचार से संभव नहीं था !