क्लास छोड उपन्यास लिखते थे? रांगेय राघव :
रांगेय राघव का जन्म 17 जनवरी, 1923 ई. में आगरा में हुआ था। पिता श्री रंगाचार्य के पूर्वज लगभग तीन सौ वर्ष पहले जयपुरऔर फिर भरतपुर के बयाना कस्बे में आकर रहने लगे थे।
रांगेय राघव का जन्म हिन्दी प्रदेश में हुआ। उन्हें तमिल और कन्नड़ भाषा का भी ज्ञान था। रांगेय की शिक्षा आगरा में हुई थी। ‘सेंट जॉन्स कॉलेज’ से 1944 में स्नातकोत्तर और 1949 में ‘आगरा विश्वविद्यालय’ से गुरु गोरखनाथ पर शोध करके उन्होंने पी.एच.डी. की थी। रांगेय राघव का हिन्दी, अंग्रेज़ी, ब्रज और संस्कृत पर असाधारण अधिकार था।
साहित्य के क्षेत्र में कविता से की शुरुआत:
रांगेय राघव ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी शुरुआत कविता से की। लेकिन उन्हें पहचान गद्य लेखक के रूप में मिली। उनका पहला उपन्यास ‘घरौंदा’ महज 23 साल की उम्र में छपा। इस पर उनकी पत्नी सुलोचना ने लिखा था- “पढ़ने में अच्छे होने के बावजूद भी अर्थशास्त्र में उन्हें कपार्टमेंट आया। इसका पता बाद में चला जब ‘घरौंदा’ तैयार हो गया। अर्थशास्त्र की क्लास जाने के बजाए वह कॉलेज प्रांगन में ‘घरौंदा’ लिखने में व्यस्त रहते थे। यह उनका पहला मौलिक उपन्यास है, जिसे उन्होंने महज 18 साल की उम्र में लिखा था।
रांगेय राधव की प्रमुख कृतियां:
रांगेय राधव ने महज 39 साल की उम्र में कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज के अलावा आलोचना, संस्कृति और सभ्यता पर कुल मिलाकर 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं। रांगेय राघव ने हिंदी कहानी को भारतीय समाज के उन धूल-कांटों भरे रास्तों, भारतीय गांवों की कच्ची और कीचड़-भरी पगडंडियों से परिचित कराया, जिनसे वह भले ही अब तक पूर्ण रूप से अपरिचित न रहे हो पर इस तरह घुले-मिले भी नहीं थे।
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रांगेय राघव को उनके असाधारण कृतियों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1947 में उन्हें हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार, 1954 में डालमिया पुरस्कार, 1957 और 1959 में उत्तर प्रदेश शासन पुरस्कार, 1961 में राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1966 में मरणोपरांत महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
‘जानपील’ के शौकीन:
रांगेय राघव को सिगरेट पीने का बहुत शौक था। वह हमेशा ‘जानपील’ नाम की सिगरेट पीते रहते थे, दूसरी सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाते। उनके लिखने की मेज पर सिगरेट की कई डिब्बियां रखी रहती थीं। उनका कमरा सिगरेट की गंध और धुएं से भरा रहता था। सिगरेट उनकी जरूरत बन गई थी। बिना सिगरेट के वह कुछ भी करने में असमर्थ थे। 1962 में सिगरेट पीने की आदत के कारण ही हिंदी के इस विलक्षण साहित्यकार का निधन हो गया।
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हिंदी साहित्य का यह योद्धा महज 39 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को विरान कर गया। 12 सितंबर, 1962 को मुंबई में रांगेय राघव का निधन हो गया। इनकी अद्भुत रचना ने हिंदी साहित्य में कई कृतिमान स्थापित किए। हिंदी साहित्यकारों की कतार में अपने रचनात्मक वैशिष्ट्य और सृजन विविधता के कारण वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे।
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