राष्ट्रीय खेल दिवस :
29 अगस्त को आने वाला उनका जन्मदिन भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस – National Sports Day के रूप में मनाया जाता है और भारत के राष्ट्रपति ने भी उन्होंने राजीव गाँधी खेल रत्न, अर्जुन और द्रोणाचार्य अवार्ड से इस दिन सम्मानित भी किया गया है।
हॉकी फील्ड में तीन ओलिंपिक मैडल जीतने वाला, भारतीय हॉकी खिलाडी ध्यानचंद बेशक हॉकी के सबसे बेहतरीन और हराफनौला खिलाडी थे। वे उस समय भारतीय अंतरराष्ट्रीय हॉकी टीम के सदस्य थे, जिस समय भारतीय हॉकी टीम ने पूरी दुनिया में अपना दबदबा बनाया हुआ था। एक खिलाडी के रूप में गोल करने की उनकी शैली और कला दुसरे सभी खिलाडियों से बिल्कुल अलग और अद्भुत थी। इसीलिए उन्हें “हॉकी के जादूगर” के नाम से भी जाना जाता है।
हर मैच में हॉकी की गेंद पर उनकी अद्भुत पकड़ होती थी और गेंद को घसीटने में भी वे बेहतर थे। बल्कि गेंद को घसीटने की उनकी कला अविश्वसनीय थी। लोग उन्हें हॉकी की स्टिक से खेलने वाला जादूगर कहकर ही बुलाते थे। कई बार विरोधी टीम ने उनकी स्टिक को भीतर से देखने के लिए मैच के दौरान तोड़ने की भी कोशिश की थी।
आर्मी ने दिया हॉकी खेलने का मौका :
हॉकी के प्रति उनका प्रेम तब बढ़ने लगा था जब किशोरावस्था में ही वे आर्मी में शामिल हो चुके थे। शुरू-शुरू में आर्मी टीम की तरफ से खेलते थे, जहाँ उन्होंने अच्छा खेलकर अपना नाम भी कमाया। जिस भारतीय टीम ने 1928 के एम्स्टर्डम ओलिंपिक और 1932 के लोंस एंजेल्स ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीता था, उस भारतीय टीम के कप्तान ध्यान चंद ही थे।
वे उन तीनो भारतीय टीम के सदस्य थे जिन्होंने 1928, 1932 और 1936 के ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीता था। अपने पुरे हॉकी करियर में उन्होंने तक़रीबन 1000 से भी ज्यादा गोल किये थे, जिनमे से 400 उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किये थे।
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1956 में हॉकी फील्ड में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें भारत के तीसरे सर्वोच्च अवार्ड पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
होलैंड में क्यों तोड़ी गयी थी उनकी हॉकी :
किसी भी खिलाडी की महानता को गिनने का सबसे का पैमाना यही है की उस खिलाडी के साथ कितनी घटनाये जुडी हुई है। उस हिसाब से तो मेजर ध्यान चंद का कोई जवाब ही नही। हौलेंड में तो लोगो ने उनकी हॉकी स्टिक तुडवा कर भी देख ली थी के कही उसमे चुम्बक तो नही। यही घटना हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी लोकप्रियता को दर्शाती है।
वक्त अगर किसी चीज को लौटाना चाहे तो बेशक भारतीय खेल जगत मेजर ध्यानचंद को मांगना चाहेगा। उनसा न कोई हुआ और हो सकता है और ना भविष्य में कोई होंगा। खेल से खिलाड़ी की पहचान बनती है लेकिन ध्यानचंद तो हॉकी का आइना बन गए।