ऊंचे पहाड़ों पर बने देवी मंदिरों की बात होती है तो सबसे पहला नाम कश्मीर की वैष्णो देवी फिर हिमाचल की ज्वाला देवी, नयना देवी, मध्य प्रदेश की मैहरवाली मां शारदा, छत्तीसगढ़ डोँगरगढ़ की बम्लेश्वरी मां,पावागढ़ वाली माता का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
पहाड़ों पर क्यों बने हैं ये मंदिर ? पहाड़ों पर ऐसा क्या है जो समतल जमीन पर नहीं है? इस संबंध में जानकार लोग कहते हैं कि पहले और आज भी इन स्थानों को साधना केंद्र के रूप में जाना जाता था। पहले ऋषि-मुनि ऐसे स्थानों पर सालों तपस्या करके सिद्धि प्राप्त करते थे और उसका उपयोग मनुष्य के कल्याण के लिए करते थे। पहाड़ों पर एकांत होता है।
धरती पर इंसान ज्यादातर समतल भूमि पर ही बसना पसंद करते हैं। लोगों ने घर बनाने के लिए पहाड़ी इलाकों की बजाय मैदानी क्षेत्रों को ही प्राथमिकता दी है। एकांत ने ही देवी मंदिरों के लिए पहाड़ों को महत्व दिया है। कार्य चाहे सांसारिक हो या आध्यात्मिक, उसकी सफलता मन की एकाग्रता (concentration of mind) पर ही निर्भर रहती है।पहाड़ों पर मन एकाग्र आसानी से हो जाता है। मौन, ध्यान एवं जप आदि कार्यों के लिए एकांत की जरूरत होती है और इसके लिए पहाड़ों से अच्छा कोई स्थान नहीं हो सकता।
प्राकृतिक सौन्दर्य- पहाड़ी क्षेत्रों पर इंसानों का आना-जाना कम ही रहता है, जिससे वहां का प्राकृतिक सौन्दर्य अपने असली रुप में जीवित रह पाता है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि सौन्दर्य इंसान को स्फूर्ति और ताजगी प्रदान करता है।
इनका कहना है- भोपाल के प्रख्यात ज्योतिषि पंडित प्रहलाद पंड्या का कहना है कि पहाड़ों पर दैवीय स्थल होने की वजह यह है कि देवी राजा हिमाचल की पुत्री हैं। इन्ही के नाम पर अब हिमाचल प्रदेश है। इस स्थान को देवभूमि भी कहा जाता है। देवी का जन्म यहीं हुआ इसी कारण से इन्हें पहाड़ों वाली माता कहा जाता है। देखा जाए तो देवी राक्षसों के नाश के लिए अवतरित हुईं थीं। राक्षस मैदानी इलाके से आते थे और देवी पहाड़ों से उनको देख उनका वध कर देती थीं। इसलिए भी देव स्थान ऊंचे पहाड़ों पर हैं।
Source- Dainikbhaskar.com