देश भर में श्री गणेशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। श्रीगणेश माता पार्वती और शिवजी के बेटे हैं। इनके जन्म को लेकर कई तरह की कथाएं हैं। वराहपुराण और शिवपुराण में विनायक के जन्म को लेकर अलग-अलग कथाएं हैं।
वराहपुराण के मुताबिक भगवान शिव ने गणेशजी को पचंतत्वों से बनाया है। जब भगवान शिव गणेश जी को बना रहे थे तो उन्होंने विशिष्ट और अत्यंत रुपवान रूप पाया। इसके बाद यह खबर देवताओं को मिली। देवताओं को जब गणेश के रूप और विशिष्टता के बारे में पता लगा तो उन्हें डर सताने लगा कि कहीं ये सबके आकर्षण का केंद्र ना बन जाए। इस डर को भगवान शिव भी भांप गए थे, जिसके बाद उन्होंने उनके पेट को बड़ा कर दिया और मुंह हाथी का लगा दिया।
वहीं शिवपुराण में कथा इससे अलग है। इसके मुताबिक माता पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी लगाई थी, इसके बाद जब उन्होंने अपने शरीर से हल्दी उबटन उतारी तो उससे उन्होंने एक पुतला बना दिया। पुतले में बाद में उन्होंने प्राण डाल दिए। इस तरह से विनायक पैदा हुए थे। इसके बाद माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिए कि तुम मेरे द्वार पर बैठ जाओ और उसकी रक्षा करो, किसी को भी अंदर नहीं आने देना।
उन्होंने माता के कथन को बखूबी निभाया यहाँ तक कि अपने पिता देवों के देव महादेव को भी नही जाने दिया इस घटना के उपरान्त सभी देवतागण गणेश जी को समझाने लगे ,लेकिन गणेश जी ने एक न सुनी और देवताओं को अपमानित किया और महादेव को खरा खोटा सुनाया जिससे गौरीनाथ ने क्रोध में आकर उनका सर धड़ से अलग कर दिया
तब माता पार्वती ने उनमे जान डालने के लिए आग्रह किया तब महादेव ने कहा की में इसमें प्राण नही डाल सकता मगर हाँ जिस माँ का बच्चा उत्तर की तरफ मुंह कर सोया और उसकी माँ की पीठ उसके मुंह की तरफ हो,उस बच्चे का मुख लगा कर जीवन दे सकता हूँ
तभी से इस कथन को माना जाता है माँ बच्चे की तरफ पीठ कर नही सोती देवी देवताओं ने अपनी शक्ति का अंश गणपति को दिया और वरदान दिया कि कोई भी शुभ कार्य करने से पहले तुम्हे ही पूजा जाएगा तभीसे किसी नये कार्य की शुरुआत से पहले श्री गणेश करना शुभ माना जाता है
पहले उत्सव को साथ मिलकर या एक जगह इकट्ठा होकर नहीं मना सकते थे। पहले लोग घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे और गणेश विसर्जन करने का कोई रिवाज नहीं था।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। आज गणेशोत्सव एक विराट रूप ले चुका है।
पूजा में गणेश गायत्री का जाप करें। इसके साथ ही पूजा के दौरान रुद्राक्ष की जगह हल्दी की माला का इस्तेमाल करें। हल्दी की माला गणेश जी को बहुत पसंद है। इन सब के अलावा यह गौर करने वाली बात है कि शिवजी की तरह गणेश जी को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती। ऐसे में पूजा सामग्री में तुलसी नहीं होनी चाहिए। घर में भगवान गणेश की तीन मूर्तियां भी नहीं होनी चाहिए।
ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः. निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा
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