हम सभी ऐसे किसी न किसी व्यक्ति को तो जानते ही होंगे, जिसने पैसे, शोहरत और कैरियर के लिए दूसरे देश जाने का निर्णय लिया होगा। पर हम में से ऐसे कितने हैं जो किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं, जो अपने उज्जवल भविष्य और पैसे को अहमियत न देकर, अपने लोगों के लिए कुछ करने की तमन्ना लेकर भारत लौट आया हो। ऐसे ही एक व्यक्ति से हम आपको मिलवाते हैं, जिनका नाम है, हरी बालाजी।
हमारा देश ही नहीं,बल्कि दुनिया भर के कई देश आज अनेक तरह की आपदा का सामना कर रहे हैं । हम उनके बारे मैं पढ़ते तो हैं और किसी न किसी तरह मदद करने की सोचते भी हैं। पर अगर ऐसी कोई घटना हमारे साथ हो, तो हम उसके लिए कितने तैयार हैं, यह सोचने का विषय है ।
ऐसी ही कई आपदाओं के लिए आम जनता को तैयार करना और उस स्थिति में खुद को और दूसरो को सँभालने के तरीके से अवगत कराते हैं हरी बालाजी।
हरी बालाजी, मुख्य रूप से चेन्नई के रहने वाले हैं। उन्होने स्विस होटल मैनेजमेंट स्कूल, स्विट्ज़रलैंड से होटल मैनेजमेंट की पढाई २००१ में पूरी कर स्विट्ज़रलैंड, युएस और कुवैत की कई बड़ी कंपनियों के साथ काम किया है।
इतना उज्जवल कैरियर छोड़ कर बालाजी ने भारत लौटने का निर्णय क्यों लिया?
इसके जवाब में बालाजी हमें बताते हैं कि विदेश में रह कर उन्हें दो बार अप्रतक्ष्य रूप से आपदाओं का सामना करना पड़ा। पहला अनुभव उन्हें ११ सितम्बर २००१ में हुआ, जब वह ज्यूरिक से एटलांटा जा रहे थे। उसी दिन आतंकवादियों ने न्यू यॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया जिसमे करीब ३००० हज़ार लोगों ने अपनी जाने गंवा दी। हरी के विमान को वापस ज्यूरिक लौटने का निर्देश दिया गया तथा US से विमानों के सभी रास्ते मिनटों में बंद करवा दिए गए।
इसके एक साल बाद हरी ने एटलांटा में हो रहे एक वर्कशॉप ‘ Get Motivated’ में हिस्सा लिया। यहाँ उनकी मुलाक़ात ट्विन टावर अटैक के समय, न्यू यॉर्क के मेयर रहे, रूडी गिउल्लानी से हुई । उन्होंने हरी को बताया कि किस प्रकार उस घटना के कुछ घंटो के भीतर ही US ने पूरी स्थिति को अपने नियंत्रण में कर लिया था।
हरी बालाजी को US की इस आपदा से निपटने की काबिलियत ने बहुत प्रभावित किया।
इस घटना के कुछ साल बाद हरी का सामना एक दूसरी आपदा से हुआ, इस बार ये एक प्राकृतिक आपदा थी। हरी बालाजी विभिन्न होटलों का प्रोजेक्ट मैनेजमेंट का कार्य सँभालते थे और लुसिआना के एक होटल का प्रोजेक्ट वो संभाल रहे थे जब हरिकेन कटरीना का संकट वहां आ पड़ा। इसमें बालाजी का होटल भी बुरी तरह प्रभावित हुआ था।
इन दो उदाहरणों ने हरी बालाजी के सामने ये बात साफ़ कर दी कि US हर रूप मैं किसी भी आपदा का सामना करने को तैयार रहता है। सामाजिक स्तर पर भी लोग आपदा की स्थिति के लिए बेहद जागरूक हैं।
हरी, अच्छी तरह जानते थे कि भारत अभी तक उस स्तर पर नहीं पहुँच पाया है। जबकि ऐसी आपदा प्रबंधन प्रणाली की जरूरत भारत को ज्यादा है। हरी ने निश्चय किया कि वो भारत में रहकर इस स्थिति को सुधारंगे। इसके लिए उन्होंने अपने परिवार के सहयोग और अनुमति से २०११ मैं भारत लौटने का निर्णय लिया।
जहाँ कई लोग ग्रीन कार्ड पाने के लिए कई पापड बेलते है वहीँ भारत लौटने के लिए, हरी ने अपना ग्रीन कार्ड कैंसिल करवा दिया।
आपदा प्रणाली से जुड़ने के लिए उन्होंने चेन्नई के श्री रामचंद्र यूनिवर्सिटी से Hospital And Health System Management में MBA किया। इसी दौरान उन्होंने Chennai Emergency Management Exercise, २०११ में हिस्सा लिया और अपने इसी अनुभव के आधार पर, MBA की पढाई पूरी करने के बाद NDMA भारत सरकार द्वारा उन्हें Guwahati Emergency Management Exercise २०१२ में समन्वय करने के लिए चुना गया।
इसके बाद हरी ने स्वतंत्र रूप से आपदा प्रबंधन (disaster management) पर कई वर्कशॉप का आयोजन किया।
हरी कहते हैं,
“एक साधारण व्यक्ति को यह पता होना चाहिए कि आपदा क्या है? मेरे क्षेत्र में किस प्रकार की आपदा आ सकती है? हमें ऐसे में किसे संपर्क करना चाहिए? और खुद की और अपने परिवार की सुरक्षा कैसे करनी चाहिए?”
हरी के वर्कशॉप में यह कार्य बड़े समन्वय के साथ किया जाता है, जिसमे रोल प्ले द्वारा लोगों को पीड़ित की दृष्टि से स्थिति से अवगत कराया जाता है। तथा वालंटियर को भी उनकी जिम्मेदारी समझाया जाता है।
इस ट्रेनिंग में आपातकालीन स्थिति से जूझने वाले विभाग, जैसे हेल्थकेयेर , पुलिस ,फायर ,रेवेन्यु ,एम्बुलेंस ,मूनिसिपलिटी को साथ मिल कर काम करने की भी ट्रेनिंग दी जाती है । अपने अपने क्षेत्र में यह सभी प्रशिक्षित रहते हैं, किन्तु आपातकाल में यह आवश्यक हो जाता है कि इस सबके बीच एक समन्वय स्थापित रहे।
आपात की स्थिति में गर्भवती महिलाएं भी होती है जिनकी डिलीवरी की व्यवस्था स्वास्थ्य विभाग को रखनी पड़ती है। अपने परिवार से बिछुड़ी हुई किशोरावस्था की लड़कियों की सुरक्षा भी अहम् हो जाती है क्योंकि असामाजिक तत्व इस समय सक्रिय रहते हैं और अपराध की सम्भावना बढ़ जाती है। पुलिस को इसके लिए भी तैयार रहना जरूरी है और ऐसे मैं उनके लिए सुरक्षित स्थान मुहैया करवाना , बिजली, पानी, शौचालय की व्यवस्था एक बड़ी चुनौती होती है।
अलग विभागों द्वारा अलग वक्तव्य देने पर भी आम जनता में खलबली और भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है । अतः इन विभागों द्वारा सामंजस्य स्थापित कर मीडिया को एक संगठित प्रेस मीट द्वारा स्थिति की जानकारी देकर उनका सहयोग लेना भी आवश्यक हो जाता है । हरी अपने सेशन में ऐसे हर एक पहलू पर प्रकाश डालते हैं ।
हरी बताते हैं कि आपात की स्थिति केवल तब नहीं मानी जानी चाहिए जब कोई प्राकृतिक आपदा या आतंकवादी हमला हो। किसी व्यक्ति विशेष के साथ हुई छोटी बड़ी घटना भी ऐसी स्थिति के अन्दर आती है। उदाहरण के तौर पर, सडक दुर्घटना ,बलात्कार आदि जैसी घटनाओ को हम ले सकते हैं।
हरी समझते हैं कि इन स्थितियों के लिए भी हर व्यक्ति का जागरूक रहना बेहद जरूरी है।
ऐसी दो घटनाओं के बारे में ज़िक्र करते हुए हरी हमें बताते हैं कि सड़क दुर्घटना में पीड़ित की मदद को पहुँचने वाला व्यक्ति कोई भी आम इंसान हो सकता है। अतः हमारी कोशिश रहती है कि हम अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करें कि ऐसी हालत में क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए। अधिकतर लोगों को पता नहीं होता कि ऐसे में पीड़ित को पानी देने से बचना चाहिए या उसे उठाने में भी क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए।
दुसरे उदाहरण के बारे में हरी बताते हैं – अगर कोई गाँव ऐसी जगह प हो जहाँ रेडियो एक्टिव प्लांट हो तब आम लोगो को आपदा की स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए । कई लोग नहीं जानते कि रिसाव होने पर सरकार द्वारा पोटैशियम आयोडाइड के टेबलेट बांटे जाते हैं जिसे खाना कितना आवश्यक है। असल में रिसाव के दौरान रेडियोएक्टिव आयरन हमारे खाने में मिलने की सम्भावना बहुत अधिक होती है। और यदि हमारा शरीर इस टेबलेट से आयोडीन ले ले, तो वह खाने से आयोडीन नहीं लेगा जिससे कैंसर का खतरा टल जाता है ।
भारत में ये कोशिशे कितना बदलाव ला रही हैं?
इस पर बालाजी कहते हैं कि पहले से स्थिति बदल रही है। अब पहले के मुकाबले लोग अधिक जागरूक हैं। सरकार द्वारा भी अब आपदा के दौरान काफी सावधानियाँ बरती जाती हैं। पहले आपदा ग्रसित क्षेत्र में किसी भी संस्था के लोग जा सकते थे और ऐसा देखा गया था कि उनकी रूचि फोटो खीचने में अधिक होती थी। कुछ असामाजिक तत्त्व भी NGO का नाम ले कर सक्रिय हो जाते थे जो असल में मानव तस्करी का काम करते थे। अब यह सुनिश्चित किया जाता है कि सिर्फ पंजीकृत संस्था के सदस्यों को प्रवेश मिले।
ऐसा भी देखा गया था कि लोग संस्था द्वारा कपडे या खाना ही भिजवाते थे । अब यह तय किया जाता है कि पीड़ितों को किन किन चीजों की आवश्यकता है । ऐसी एक चेकलिस्ट बना कर, मदद के इच्छुक पंजीकृत संस्थाओ को दी जाती है जो उन चीजों को पीडितो के लिए उपलब्ध करवाते हैं।
हरी ने हाल ही में तमिल नाडू के ३२ जिलों में “ Strengthening Emergency Response System in Hospitals” वर्कशॉप करवाया है।
हरी का लक्ष्य है भारत के हर नागरिक को शारीरिक एवं मानसिक रूप से किसी भी आपात की स्थिति के लिए तैयार करना।
हरी के शब्दों में –
“अगर हमें फल बदलना है, तो जड़ों पर ध्यान देना होगा । अगर हम किसी स्थिति के लिए तैयार नहीं है , तो हम उस पर प्रतिक्रिया देंगे और अगर तैयार हैं तो प्रत्युत्तर देंगे । जीवन बचाने के लिए सक्रियता की आवश्यकता होती है न कि प्रतिक्रिया की।”
हरी बालाजी, स्कूल तथा कॉलेज में आपदा प्रबंधन को स्थापित करने में मदद भी करते हैं और ऐसी संस्थाओं के लिए आपदा प्रबंधन कोर्सेस का भी आयोजन करते हैं। उनका मानना है कि बचपन से ही हर किसीको आपदाओं के वक़्त तैयार रहने की और उससे जूझने की ट्रेनिंग मिलनी चाहिए।
इनका सपना है कि यह भारत को इस क्षेत्र में सुरक्षित स्थिति में देखें। हम कामना करते हैं कि उनका ये सपना जल्दी हकीकत का रूप ले ले।