अठारह पुराणों में से 10वां पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण माना गया है। पुराण का प्रथम खंड 29 अध्यायों से युक्त है। इस खंड का आरंभ सृष्टि के वर्णन से है।
इसमें परब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सृष्टि के उत्पत्ति और उन्हीं के शरीर के विभिन्न भागों से नारायण, शिव, कामदेव, सूर्यदेव, चंद्रदेव, सरस्वती, लक्ष्मी, रति आदि के प्रकट होने का उल्लेख मिलता है।
इस पुराण के 5वें अध्याय में राधाजी के बारे में जानकारी दी गई है। जो भगवान श्रीकृष्ण के वाम भाग से प्रकट हुई थीं। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण के रोमकूपों से गोपों और राधा के रोमकूपों से गोपियों की उत्तपत्ति के प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया गया है।
इसके बाद ब्रह्माजी के शाप से देवर्षि नारद के गंधर्व-योनि में उपबृंहण नाम से उत्पन्न होने, उनके द्वारा पचास गंधर्व कन्याओं करने, ब्रह्मजी द्वारा पुनः उपबृंहण को शाप देने तथा शापवश देवर्षि नारद के शूद्र-योनि में जन्म लेने की कथा वर्णित है।
इसी कथा के संदर्भ में ब्राह्मणवेशधारी भगवान नारायण द्वारा उपबृंहण की पत्नी मालावती के समक्ष वैधसंहिता यानी आयुर्वेद के विभिन्न रहस्यों का विस्तृत वर्णित किया गया है।