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संघ को समझना है तो उसे करीब से देखना होगा 2

संघ को समझना है तो उसे करीब से देखना होगा

रेल का सफ़र स्वयं में एक अदभुत अनुभव होता है, विशेषतः तब जब आपका कोई जानने वाला आपके साथ यात्रा में न हो! बस मैं भी कुछ इसी तरह उमंग को हृदय में संजोए पुणे-पटना से अपने घर आरा(बिहार) के लिए निकल पड़ा, कुछ ही समय में अंजान चेहरे जाने पहचाने हो गए। स्वतः ही चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। देश के भविष्य की खोज के लिए निकला तर्क-वितर्क का दौर अनायास ही आधुनिक युग की पत्रकारिता पर केंद्रित हो गया। एक बुजुर्ग ने कहा आज तो मीडिया की कलम बिकने लगी है, पैसे के लिए किसी बात को भी तिल का ताड़ बना देते हैं और किसी महत्वपूर्ण बात को ऐसा दबाते हैं की किसी को पता ही नहीं चलता! दूसरे महानुभाव ने कहा की कलम तो आज भी वही है बस लिखने वाले के हाथ बिक गए हैं।

मैं इन सब की बात सुनते-सुनते अपने ख्यालो में खो गया जब इसी पत्रकारिता ने मेरे जीवन में एक परिवर्तन ला दिया था, कल्पनाओं के उड़न खटोले से मैं अपने कॉलेज में आ चुका था जहां मैं तृतीय वर्ष का छात्र था। मैं अन्य छात्रों की तरह मस्ती, मनमौजी स्वभाव का था। देश की राजनीति, परिस्थिति का न तो ज्ञान था और न तो जानने की कोई इच्छा थी। बस एक ही धुन लबों पर रहती थी “जिंदगी मौज उड़ाने का नाम है” हां भोजन के समय कुछ मित्रों के साथ समाचार देख लेता था, हर न्यूज़ में नकारात्मक खबरें होती थी घोटाला, बलात्कार, खून जिसे देखकर हर भारतीय की तरह मैं भी दुखी हो जाता था। सोचता था कि पढ़ाई खत्म हो फिर विदेश निकल लूंगा क्या करना है मुझे इनसब का।

New Delhi: Prime Minister Narendra Modi speaks at the launch of DD Kisan Channel at a ceremony at Vigyan Bhawan in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by Shahbaz Khan (PTI5_26_2015_000167B)

एक दिन एक ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी कि किसी ने मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार कर दिया। फिर क्या मैं टीवी के सामने बैठ गया, पता चला गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। हर तरफ उनकी आलोचना हो रही थी, कोई हत्यारा, तो कोई कट्टरपंथी, तो कोई समाज विभाजक कह रहा था, पर एक बात सब बोल रहे थे कि आरएसएस (संघ) के हैं इसलिए उन्होंने ऐसा किया, पर मुझे ये आरएसएस क्या है पता ही नहीं चल रहा था।

मैं ये सोच रहा था कि क्या ये न्यूज़ इतना बड़ा है कि एक हिन्दू ने टोपी नहीं पहनी, इसलिए वो कम्युनल हो गया? तभी फेसबुक पर एक मुस्लिम मित्र ने कमेंट किया कि ये संघ वाले सब ऐसे हीं हैं, समाज को बांटने का काम करते हैं फिर मैंने पूछा भाई तुमने भी तो सरस्वती पूजा में प्रसाद नहीं लिया, सर पे रूमाल रख कर आरती नहीं की पर हमने तो कभी नहीं कहा कि तुम ख़राब हो या फिर समाज में गंदगी फैला रहे हो। फिर वो दोस्त एकदम से व्याकुल हो गया और मैं शांत था कि टोपी न पहनना कोई गलत बात नहीं। अब एक नया प्रश्न मन में था कि आखिर, ये संघ क्या है? ये संगठन करता क्या है? इसमें कौन लोग हैं? मैंने पता किया कि संघ का ऑफिस कहां है तो पता चला कि थोड़ी दूर पर संघ के एक प्रचारक रहते हैं। यह शब्द तो बिलकुल ही नया था मेरे लिए, फिर मैंने निश्चय किया कि वहां जाऊंगा और पता करूंगा |

अनगिनत प्रश्नों को लेकर मैं उस दरवाजे पर पंहुचा, वहां कुछ विशेष नजर नहीं आने पर हताशा होने लगी 4 कमरों का एक घर, ऑफिस जैसा कुछ भी नहीं, सजावट के नाम पर घर के सामने एक तुलसी का पौधा और विवेकानंद जी की एक पंक्ति वहीं दीवार पर लिखी हुई थी।  पूछने पर पता चला तीन कमरों में पास के गांव से पढ़ने आए विद्यार्थी रहते है अंतिम एक छोटे से कमरे में प्रभारी जी। सभी विद्यार्थी गरीब घर से थे उन्हें यहां मुफ्त में रहने और खाने की व्यवस्था थी। यह सब देख के मेरे अन्दर के निराशा के बादल छटने लगे और मैं अंतिम कमरे में गया। एक 6*6 के छोटे से कमरे में 50-55 वर्ष का व्यक्ति खाट पर बैठा कुछ लिख रहा था। कमरे में एक पानी का घड़ा, पुस्तकें और दीवार पर भारत माता की तस्वीर जिस पर लिखा था “तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहे न रहें”  ऐसा लगा की अद्भुत तेज लिए शांत मन एक योगी अपनी उपासना में लीन हो। मैंने अपना परिचय दिया और अपने प्रश्नों और सोच की पूरी गठरी उनके सामने खोल दी। मेरे हर प्रश्न का उत्तर उन्होंने बहुत ही सभ्य और शांत तरीके से दिया। एक लम्बे प्रश्नकाल के बाद जब मैं निकला तो मन गंभीर और भावुक थे। मैं ये यकीन नहीं कर पा रहा था कि आज भी ऐसे लोग हैं जो अपना सबकुछ त्याग कर देश के लिए मातृभूमि के लिए निःस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं। पुरे वार्ता में मुझे कोई भी बात ऐसी नहीं लगी जिससे मैं उन्हें सांप्रदायिक कहूं, मुझे तो बस राष्ट्रप्रेम ही दिखा।

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समय निकलता गया और मैं एक आईटी कंपनी में नौकरी के लिए पुणे आ गया। थोड़ा नए और अनजान जगह के लिए मन में डर था। सुना था कि महाराष्ट्र में ऐसे ही समस्याएं आती हैं। यहां मेरी मित्रता कुछ लोगों से हुई संयोग ऐसा था की वो लोग संघ से जुड़े हुए थे मैं भी उनके साथ सामाजिक कार्यों में भाग लेने लगा परन्तु उनमें से किसी ने भी आजतक न तो मुझसे जाति पूछी न ही कभी बिहारी होने का ताना मारा। एक स्वयंसेवक के नजर में हम सभी मां भारती के पुत्र हैं। पिछले 4 वर्षों में बहुत लोगों से मिला जो संघ से सम्बन्ध रखते हैं पर मुझे कोई व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जो मुस्लिम को मारो, ईसाई को मारो ऐसी बात करता हो, ये तो ऐसे लोग हैं जो भारत की बात करते हैं राष्ट्रीयता की बात करते हैं, राष्ट्रहित, स्वदेशी की बात करते हैं | हां ये हिंदुत्व की बात करते हैं परन्तु अपने धर्म की बात करना गलत तो नहीं है, उसको मानना को अपराध तो नहीं है। ये सभी का सम्मान करते हैं प्राकृतिक आपदा हो या कोई दुर्घटना बिना किसी प्रचार के सेवा के लिए पहुंच जाते हैं।

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अगर संघ को समझना है तो उसको करीब से देखना होगा। लोगों के फैलाए भ्रम जाल में आकर अपने मन में भ्रान्ति स्थापित करने से आप सिर्फ उनके शब्दों का अनुसरण करेंगे, स्वयं निर्णय नहीं। इसलिए संघ को जाने फिर आप अपना मन बनाएं उसके लिए तो आप स्वतंत्र है। मैंने वही किया और आपको कहुंगा की खुद की सुनो न की किसी और की।

आज जब मैं उस दिन को याद करता हूं तो नमन करता हूं आज की पत्रकारिता को जिसके कारण मैं संघ जैसे संगठन से जुड़ सका। अगर मोदी भी बाकि राजनेताओ की तरह वोट के लिए टोपी पहन लेते तो शायद मैं संघ को नहीं जान पाता और अगर ये मिडिया/पत्रकार सही से काम करते तब भी नहीं जान पाता। रेल के डिब्बे में बैठे-बैठे कुछ और सामाजिक कार्य करने के बारे में सोचने लगा और गाने लगा –

“तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहे न रहें”

Source – Newsroom Post

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