हिमालय में साधुओं के सैकड़ों साल जीने, टैलीपैथी से बात करने जैसे चमत्कारिक किस्से तो आपने भी सुने होंगे. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे साधु के बारे में बता रहे हैं जो न सिर्फ़ गंगोत्री में साधना में लीन रहा बल्कि साठ बरस से हिमालय में रहने के दौरान उसका इस पर्वतमाला से ऐसा रिश्ता बना कि वह पर्वतारोही, फ़ोटोग्राफ़र, घुमक्कड़ बन गया. और घुमक्कड़ ऐसा कि 62 की जंग में भारतीय सेना ने उससे मदद मांगी, फ़ोटोग्राफ़र ऐसा कि खींची तस्वीरें का वजन आठ क्विंटल से ज़्यादा हो गया है और पर्वतारोही ऐसा कि 25 चोटियों पर शौकिया आरोहण कर लिया.
आज 92 साल के सुंदरानंद को हिंदी के साहित्यकार विष्णु प्रभाकर ने अपनी पुस्तक हिमालय पुंज समर्पित की तो पूर्व प्रधानमंत्री और कवि अटल बिहारी वाजपेयी ने एक कविता उनके नाम लिख दी. हालांकि हिमालय और साहित्य से उनका नाता 62 साल पहले शुरू हुआ था जब तपोवन महाराज की लिखी किताब हिमगिरी विहार उन्होंने पढ़ी थी.
आंध्र प्रदेश के नेल्लोर ज़िले के निवासी सुंदरानंद इस किताब को पढ़कर इतने प्रभावित हुए कि सीधे ऋषिकेश तपोवन महाराज के आश्रम पहुंच गए. वह फिर तपोवन महाराज के चरणों में बैठकर उन्होंने हिमालय और भक्ति, योग की साधना शुरू की.
आज उन्हें 300 से ज़्यादा आसन जानने वाले, 25 से अधिक चोटियों पर शौकिया तौर पर आरोहण करने वाले, शेरपा तेनिजंग नोरगे, एडमंड हैलरी के साथ रोहतांग ग्लेशियर में हाईएल्टीटयूड कैंप में प्रशिक्षण लेने वाले योगी और गंगोत्री हिमालय के चलते-फिरते विकीपीडिया के रूप में लोग जानते हैं.
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62 साल के हिमालय प्रवास के दौरान सुंदरानंद न सिर्फ़ हिमालय के प्राकृतिक, भौगोलिक, सामाजिक बदलाव के गवाह बने बल्कि यहां के उतार-चढ़ावों का दस्तावेज़ीकरण भी किया.
हिमालय की अलौकिक छटा से अभिभूत होकर उसकी तस्वीरें उतारने की चाह मन में जागी तो 1956 में उन्होंने बेल्जियम के पर्यटकों से 25 रुपये में एक कैमरा ख़रीदा और फिर शुरू हुआ हिमालय की बेपनाह खूबसूरती को कैमरे में कैद करने का सिलसिला.
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स्वामी सुंदरानंद के पास करीब आठ कुंतल फ़ोटोग्राफ़्स हैं, जो उत्तर से लेकर पूर्वोतर हिमालय के जीवंत रिकॉर्ड हैं. इसमें अकेले गंगोत्री हिमालय की पचास हजार से अधिक तस्वीरें हैं. ये कोई आम फ़ोटोग्राफ़्स नहीं बल्कि पिछले साठ सालों की हिमालयी उथल-पुथल के जीवंत दस्तावेज हैं. ये फ़ोटोग्राफ़्स बताते हैं कि गाय के मुख वाला गोमुख कभी जहां था, आज वहां से दो किलोमीटर पीछे खिसक गया है.
पांच बार ऑल इंडिया फोटोग्राफी फेडरेशन कनवेंशन में मेडल जीतने वाले सुंदरानंद अपनी फ़ोटोग्राफ़ी को मां गंगा का आशीर्वाद कहते हैं. वह कहते हैं कि अब गंगा के ऋण से उऋण होने का समय आ गया है. उनकी इन तस्वीरों को अब आम लोग भी देख पाएंगे. गंगोत्री में गंगा के तट पर बनाई गई हिमालयन आर्ट गैलरी में इन्हें प्रदर्शन के लिए रखा जाएगा. करीब 10,310 फीट की ऊंचाई पर यह आर्ट गैलेरी उन्होंने अपने दो करोड़ रुपये लगवाकर बनाई है.
सुंदरानंद को यह यह धनराशि मुख्यतः 2002 में लिखी उनकी किताब, ‘हिमालय: थ्रू अ लेंस ऑफ साधु’ की रॉयल्टी से मिली है. इसका विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था. दरअसल सुंदरानंद सिर्फ़ एक योग साधक, साधु और फ़ोटोग्राफ़र ही नहीं हैं. हिमालय की उनकी यात्राओं ने उन्हें कुशल पर्वतारोही भी बना दिया. वह 19 हज़ार, 510 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ-कालिंदीपास ट्रैक को आठ बार सफलतापूर्वक तय कर चुके हैं और उन्होंने कुल 25 से अधिक चोटियों का आरोहण किया है.
हिमालय के इस यायावार की 1962 के भारत चीन युद्ध के दौरान सेना ने भी मदद ली थी क्योंकि सुंदरानंद हिमालयी दर्रों से चिर परिचित थे और सेना को एक पथ प्रदर्शक की आवश्यकता थी. हिमालय के अध्येता और 62 साल के हमसफ़र सुंदरानंद के फ़ोटोग्राफ़र और यायावर व्यक्तित्व की कुछ झलक तो गंगोत्री में शुरू होने वाली आर्ट गैलेरी से मिलेगी लेकिन उनके जीवन में बहुत कुछ ऐसा है जिसे लोग जानना चाहेंगे.
ओएनजीसी से रिटायर अधिकारी सचिकांत शर्मा उनकी जीवनी लिख रहे हैं जिससे हिमालय में गुंथे हुए उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के बारे में लोग ठीक से जान पाएंगे.
source: news18.com