16वीं शताब्दी में हुआ था मंदिर का निर्माण
रामायण काल से जुड़ा है मंदिर
लेपाक्षी गांव के साथ रामायण की एक कथा भी प्रचलित है। कथा के अनुसार, सीता हरण के समय पक्षिराज जटायु ने रावण से युद्ध किया था। उस समय युद्ध में घायल होकर जटायु यहीं गिर थे। जब भगवान राम सीता जी को खोजते हुए यहां पहुंचे तो उन्होंने जटायु से देख कर कहा उठो पक्षी, जिसे तेलुगु ‘ले पक्षी’ कहा जाता है। तभी से इस जगह का नाम लेपाक्षी पड़ गया। मंदिर परिसर के पास ही एक विशाल पैर की आकृति धरती पर अंकित है, जिसे भगवान राम के पैर का निशान मान कर पूजा जाता है।
यहां पर है नंदी की सबसे विशाल मूर्ति
मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी की एक विशाल प्रतिमा बनी हुई है। यह एक ही पत्थर से बनी देश की सबसे विशाल मूर्तियों में से एक मानी जाती है। मंदिर की दीवारों पर कई देवी-देवताओं और महाभारत-रामायण की कहानियां अंकित हैं।
ब्रिटिश इंजीनियर भी नहीं सुलझा पाया यहां का रहस्य
यह मंदिर अपने झूलते खंभों के रहस्य की वजह से इतना प्रसिद्ध हो गया कि इसका रहस्य जानने के लिए एक ब्रिटिश इंजीनियर तक भारत आया था। इंजीनियर ने बहुत कोशिश की, लेकिन इस चमत्कार का रहस्य जान नहीं पाया और वह भी इस रहस्य को बिना सुलझाए वापिस चला गया।