नरेंद्र ने अपनी बाइक की सर्विस कराने के लिए उसे सर्विस सेंटर में छोड़ा हुआ था। जब वे बाइक लेने गए तो देखा बाइक में अभी भी कई खामियां थीं। जिसे देख वे भड़क गए और चिल्लाने लगे। बात चल ही रही थी कि एक छोटा लड़का जोकि काफी डरा, सहमा हुआ था सामने आकर खड़ा हो गया। यह वही लड़का था जिसे बाइक ठीक करने की जिम्मेदारी दी गई थी। उसके चेहरे के हावभाव और डर ने नरेंद्र को झकजोर दिया। घटना के कुछ समय बाद नरेंद्र और उनके मित्र गोमतेश जोकि एक अच्छी आईटी कंपनी में नौकरी करते थे, उन्होंने नौकरी को छोड़ दिया और सिम्फनी फिल्म्स नाम से एक फिल्म कंपनी बनाई।
हाल ही मेें इस कंपनी की फिल्म आई है, फिल्म का नाम है, “चिल्ड्रन ऑफ टुमारो”। अंग्रेजी भाषा में बनी इस फिल्म का मकसद भारत के साथ-साथ दुनिभा भर में बाल मजदूरी के प्रति लोगों को सचेत करना है।
फिल्म का कथानक उन बच्चों की जिंदगी पर केंद्रित है जो सड़क पर जिंदगी जी रहे हैं और खुद को जिंदा रखने के लिए कठोर मेहनत कर रहे हैं। फिल्म में दिखा गया है कि किस प्रकार यह बच्चे दिन रात विपरीत परिस्थितियों में भी अपना नरकीय जीवन जी रहे हैं। इनका भरपूर शोषण होता है और किस प्रकार वे आज के हमारे सभ्य समाज के बीच जी रहे हैं लेकिन उनकी व्यथा सबके सामने होते हुए भी किसी को दिखाई नहीं देती।
प्रस्तुत हैं चिल्ड्रन ऑफ टुमारो और सिम्फनी फिल्म कंपनी के बारे में नरेंद्र से हुई बातचीत के मुख्य अंश –
सिम्फनी फिल्म्स की शुरुआत कैसे हुई?
जब मैं बैंगलोर में आईटी कंपनी में काम करता था तो अक्सर मैं और गोमतेश उपाध्याय ऑफिस साथ ही आया जाया करते थे। बैंगलोर में हमारे घर से ऑफिस जानेआने में हमें लगभग तीन घंटे का समय लगता था। इस दौरान मैं और गोमतेश साथ रहते और हमारी कई विषयों पर बातचीत होती थी। चूंकि मैं प्ले राइटिंग और थिएटर से जुड़ा था और गोमतेश फोटोग्राफी करते थे। हमारे बातचीत में सबसे ज्यादा चर्चा फिल्मों को लेकर ही होती थी। हम दोनों ही अच्छी कंपनी में काम करते थे और अच्छा कमा भी रहे थे लेकिन दिल में कहीं न कहीं यह बात भी थी कि हम रचनात्मक लोग हैं और अपनी रचनात्मकता का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। काफी सोचने के बाद मैंने तय किया कि अब समय आ गया है कि मैं जॉब छोड़ दूं और अपने दिन की बात सुनूं। यह फैसला जोखिम भरा था लेकिन मैं मन का काम करने की ठान चुका था। कुछ समय बाद गोमतेश ने भी नौकरी छोड़ दी और उसके बाद हम दोनों फिर साथ आ गए और उसके बाद हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
क्या चिल्ड्रन ऑफ टुमारो किसी सत्य घटना से प्रेरित फिल्म है?
कुछ साल पहले की बात है मैं अपनी बाइक ठीक कराने गया था वहां जिस लड़के ने मेरी बाइक ठीक की थी वह बहुत छोटा था। उसे इस विषय का ज्ञान भी कम ही था इसलिए वह बाइक ठीक नहीं कर पाया था। जिस वजह से वह बहुत ज्यादा डरा सहमा हुआ था। जब मैंने उसे देखा तो मुझे उसकी इस हालत को देखकर बहुत दुख हुआ। मैंने महसूस किया कि इस बच्चे की इस हालत के लिए हम सभी लोग जिम्मेदार हैं। यह घटना मेरे दिमाग में छा गई और इस घटना ने मुझे झकजोर कर रख दिया था। उस समय मैंने तय किया था कि इस विषय पर कुछ करना चाहिए। लेकिन क्या करना चाहिए? यह मैं उस समय नहीं जानता था लेकिन मन में था कि कुछ करना है। जब मैंने फिल्म बनाने की सोची तो सबसे पहले यही विषय मेरे दिमाग में आया।
फिल्म बनाने के दौरान क्या किसी प्रकार की कोई समस्या आपको फेस करनी पड़ी?
फिल्म बनाने के लिए पैसे की जरूरत होती है। फंड जुटाना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती रही और आज भी यही सबसे बड़ी चुनौती हमारे सामने है। चूंकि यह इस प्रकार की फिल्म है कि इसमें न तो कोई आइटम नम्बर है न बड़ी स्टार कास्ट है। ऐसे में निर्माताओं को डर रहता है कि कहीं उनका पैसा डूब न जाए।
सोशल मीडिया में फिल्म को किस प्रकार की प्रतिक्रिया मिल रही है। क्या किसी फिल्म समीक्षक ने फिल्म को लेकर कुछ कहा है?
चूंकि हम किसी बड़े बैनर से नहीं जुड़े हैं इसलिए हमारे पास पैसे की कमी है। इस फिल्म के प्रमोशन के लिए हमारे पास पैसा नहीं है। लेकिन हमें सोशल मीडिया में लोगों से बहुत प्रोत्साहन और प्यार मिल रहा है। हम उन सभी लोगों के शुक्रगुजार हैं। कन्नड़ के प्रख्यात फिल्म निर्देशक पवन कुमार ने हमें बहुत सहयोग दिया। उन्होंने हमें अपनी लोकेशन में शूट करने दिया। साथ ही उन्होंने अपनी सोशल मीडिया साइट पर भी हमारी फिल्म का प्रमोशन किया। श्रुति हरिहरण जोकि कन्नड़ फिल्म की जानीमानी अभिनेत्री हैं इन्होंने भी सोशल मीडिया में हमारा प्रमोशन किया। अगर कोई फिल्म समीक्षक हमारी फिल्म को देखना चाहेगा तो हम उसका दिल से स्वागत करते हैं।
क्या कोई ऐसा लक्ष्य आप लोगों ने बनाया है जिसे आप इस फिल्म के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं?
इस फिल्म के माध्यम से हम समाज को बाल मजदूरी के प्रति जागरूक करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि इस विषय पर सार्थक बहस हो। लोग समझें कि बाल मजदूरी ठीक नहीं है। साथ ही हम युवाओं को यह भी बताना चाहते हैं कि हर वह युवा फिल्म बना सकता है जिसमें कुछ करने का हौसला हो। फिल्म बनाना केवल स्थापित निर्देशक का ही काम नहीं है यदि आपके पास कोई ठोस विषय है तो आप भी फिल्म बना सकते हैं। चूंकि फिल्म एक बहुत ही सशक्त माध्यम है अपनी बात कहने का।
फिल्म अंग्रेजी भाषा में ही क्यों बनाई?
बाल मजदूरी एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है इसलिए हम चाहते थे कि हमारी बात अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे। यह भी हमने देखा है कि यदि कोई फिल्म स्थानीय भाषा में बनाई जाती है तो उस पर कला फिल्म का टैग लगा कर उसे अलग थलग कर दिया जाता है। हमें विश्वास है कि इस फिल्म को भारत के साथ-साथ विश्व भर में लोग देखेंगे और सराहेंगे।
अगर आपका कैंपेन अधिक सफल नहीं हो पाता तो क्या आपके पास कोई अन्य योजना भी है?
क्योंकि हमारी फिल्म का कोई एक निर्माता नहीं है जिसने फिल्म बनाने के लिए पैसा लगाया हो। इसलिए हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि हम ज्यादा से ज्यादा फंड जुटाएं और फिल्म के प्रमोशन के लिए काम करें। हमें पूरा विश्वास है कि हमारा यह कैंपेन सफल होगा।
चिल्ड्रन ऑफ टुमारो के अलावा सिम्फनी फिल्म के पास और क्या प्रोजेक्ट हैं?
हम विभिन्न सामाजिक विषयों पर फिल्म बनाना चाहते हैं। ऐसी फिल्में जो सत्य के करीब हो। चाहे वह किसी के जीवन पर आधारित हों या फिर किसी सामाजिक मुद्दे पर।
फिल्म निर्माण के दौरान कोई रोचक किस्सा जिसे आप शेयर करना चाहते हैं?
चिल्ड्रन ऑफ टुमारो बनाते वक्त सबसे अच्छी चीज़ रही लोगों का सहयोग। विभिन्न क्षेत्रों से आए लोगों ने हमारा स्वागत किया और हमारा मनोबल बढ़ाया। सबने अपने-अपने तरीके से फिल्म में सहयोग दिया। यह जानते हुए भी कि इस फिल्म से उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं होने वाला। इससे साफ होता है कि यदि ईमानदारी से कोई काम किया जाए तो सब आपके साथ होते हैं।
Source – Yourstory