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टी.बी. के रोग से होगी पूरी तरह छुट्टी, पढिये डॉक्टर की सलाह : 2

टी.बी. के रोग से होगी पूरी तरह छुट्टी, पढिये डॉक्टर की सलाह :

टीबी के बारे में लोगो को जागरूक :

ट्यूबरक्लोसिस यानी क्षय रोग पर मैं  बहुत दिन से लिखना चाह रही थी ,क्यों की अभी 24 मार्च विश्व क्षय रोग दिवस था  भारत सरकार ने 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। सरकार की कोशिश मेडिटेशन प्रोग्राम के साथ ही टीबी के बारे में लोगो को जागरूक करने का भी प्रोग्राम बनाया है। मुझे लगता है की फेसबुक भी जागरूकता का एक विशेष माध्यम बन सकता है। जिसमे मै अपना योगदान दे रही हूँ ,आशा है की इस पोस्ट को कॉपी पेस्ट कर के आप इस जागरूकता फ़ैलाने में अपना योगदान करेंगे।

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टीबी जिसे आयुर्वेद में राजयक्ष्मा मतलब रोगो का राजा कहा जाता है। हम इसे infectious disease कहते है ,ये Mycobacterium tuberculosis नामक बैक्टेरिया से होता है। वैसे तो इसका मुख्य निशाना फेफड़ा (लंग्स ) होता है ,लेकिन ये जानकार आश्चर्य होगा की ये शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। सामान्यतः लंग्स टीबी और बोन टीबी , ब्रेन टीबी होती है। आंतो में होने वाली टीबी भी भारत में अच्छी खासी संख्या में पायी जाती है।

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टीबी का बैक्टेरिया बहुत जिद्दी स्वभाव का होता है और ये लम्बी चलने वाली दवाओं से मिटाया जा सकता है। एक आंकड़ा ये है की 2016 में भारत में 28 लाख लोग टीबी से ग्रसित थे जिसमे से ४.5 लाख लोगो की मौत टीबी से हुई।

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टीबी का बैक्टीरिया शरीर के जिस भी हिस्से में होता है, उसके टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देता है और इससे उस अंग का काम प्रभावित होता है। और इस तरह फेफड़ों में टीबी है तो फेफड़ों को धीरे-धीरे बेकार कर देती है, यूटरस में हो तो बांझपन की समस्या हो सकती है, हड्डी में होने पर हड्डी को गला देती है, ब्रेन में होने पर तो मरीज को दौरे पड़ सकते हैं, और लिवर में होने पर पेट में पानी भर सकता है।

चूँकि टीबी का बैक्टीरिया हवा के जरिए फैलता है इसलिए खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदों से यह संक्रमण फैलता है। मरीज ना भी खांसे तो भी उसके बहुत ज्यादा करीब बैठने या लेटने से भी इसके इन्फेक्शन का खतरा हो रहता है। हालांकि फेफड़ों के अलावा बाकी टीबी एक से दूसरे में फैलनेवाली नहीं होती और जैसा की इसे लोग जेनेटिक कहते पर यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में नहीं होती। लंग्स के अलावा और कोई टीबी खांसने छींकने बलगम आदि से नहीं होती है।

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अब आप को ये बताऊ की टीबी के बैक्टेरिया हमारे शरीर में हो सकते है ,लेकिन शरीर की मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली उसे विकसित होने नहीं देती , इसे हम लेटेंट टीबी कहते है और अगर प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हुई तो हम एक्टिव टीबी कहते है।

टीबी के कुछ ख़ास सिम्टम्स है
1- लगातार बुखार का रहना
2- लम्बे समय तक खांसी का रहना
3- बलगम में खून आना
4- सीने में दर्द होना ,सांस लेने में तकलीफ होना
5- भूख न लगना और वजन कम होना
6- लगातार थकान का होना

टीबी की जाँच के लिए सबसे पहले क्या जरुरी :

टीबी के जाँच के लिए पहले X Ray होता है , बलगम की जाँच , रक्त की जाँच और त्वचा पर पी पी डी टेस्ट से होती है। एक बात ये क्लियर समझ लीजिये की बहुत बार जांच कराने में की गयी लापरवाही जानलेवा बन जाती है। कभी कभार डाक्टर भी बीमारी नहीं पकड़ पाते ,इसलिए अगर आप को रहत महसूस न हो तो दूसरे डाक्टर से जरूर संपर्क करे।

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जैसा की मैंने बताया की टीबी का बैक्टेरिया बहुत जिद्दी स्वभाव का होता है , इसलिए दवाइयां बहुत लम्बी चलती है। बहुत से लोग बीच में दवाई छोड़ देते है या लापरवाही कर जाते है , इससे बैक्टेरिया और स्ट्रांग हो जाता है और मल्टी ड्रग रजिस्टेंस बन जाता है। भारत में ये बहुत ज्यादा होता है।

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टीबी हमेशा कमजोर लोगो को पकड़ता है ,जिनमे प्रोटीन की कमी पायी जाती है , आश्चर्य की बात ये है की इस रोग को गरीबो औरतो का रोग माना जाता था अब ये शहरी समाज में भी फ़ैल रहा है। कमजोर पाचन शक्ति , प्रोटीन की कमी , विटामिन्स और मिनरल्स की कमी से ये रोग आसानी से पकड़ता है।

सरकारी अस्पतालों में जांच, इलाज़ दवाइयाँ  मुफ्त :

इस रोग से लड़ने के लिए सरकार ने कमर कस ली है , सरकारी अस्पतालों में जांच मुफ्त में है , दवाइयों का कोर्स मुफ्त में है। दवाई रोज एक ही टाइम पर खानी होती है , जिसे याद दिलाने का टेबल बना है ,रोगी को दवाई खाने के बाद एक सरकारी नंबर पर मिस काल देनी होती है ,जिससे ये पता चल जाए की दवाई का उस दिन का डोज पूरा हो गया ,अगर फोन नहीं आया तो सम्बंधित स्वास्थ्य कर्मचारी घर जाकर याद दिलाता है। सरकार हर महीने 500 रु आहार भत्ता भी देती है।

पापा के साथ बचपन की छोटी सी कहानी :

मुझे अपने बचपन का याद है जब पापा घर आते थे तो किसी के बुलाने पर गाँव में किसी गरीब मजदूर को देखने जाते थे। मुँह पर मास्क लगाए और हाथ में ग्लव्स पहन के जाँच करते थे ,शहर के टीबी हॉस्पिटल में जाँच कराते थे और अपने घर से उस मरीज के यहाँ दाल खाने को देते थे। दाल प्रोटीन का अच्छा स्रोत है लेकिन गरीब को कहाँ मयस्सर होती है। मेरे सामने कितने गरीब लोगो की जान उन्होंने बचायी है।

मुझे याद है एक मजदूर का जिसके घर मै भी गयी थी , इतना कमजोर हो गया था की शरीर पर हड्डियों का ढांचा बचा था , उसे देखने के बाद पापा ने चाचा से कहा की ये बच नहीं पायेगा अगर खुराक नहीं मिली , मेरे घर से दाल , मठा दही पनीर भी ले जाकर दिया गया तब उसकी जान बची और रोग खत्म हुआ। वो एक डाक्टर के कर्तव्य से अधिक इंसानियत का फर्ज निभाते थे ,जो आज कल डाक्टरी पेशे से ख़त्म हो गयी है।

खैर आप सभी अपने आस पास हर उस आदमी को ,जिसे ये लक्षण है उसे सरकारी हॉस्पिटल ले जाए , पूरा इलाज मुफ्त में है और बहुत ही अच्छा है। रोगी का रजिस्ट्रेशन कराये , काम करने वाली बाई , मजदूर नौकर ड्राइवर आदि को जागरूक करे। जागरूकता से ही इस बीमारी को जड़मूल से खत्म किया जा सकता है।

डॉक्टर  Kavita Singh की कलम से ……….

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