आधुनिक भारत के शिल्पी सरदार वल्लभ भाई पटेल के विचार, कर्म और उनकी स्मृतियां मन को रोमांच और गौरव से भर देती हैं। वे ऐसे राष्ट्रभक्त महापुरुष थे जिनके लिए ‘राष्ट्र सबसे पहले’ था। सरदार सही मायने में राष्ट्रीय एकता के प्रतीक थे और हैं। उनकी जयंती को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लेने के लिए भाजपानीत राजग सरकार की सराहना की जानी चाहिए। भारत की संप्रभुता, एकता और अखण्डता के लिए जीने-मरने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल की सूझबूझ का ही नतीजा है कि आज हम एक शक्तिशाली राष्ट्र के नागरिक हैं। दुनिया में भारत एक महाशक्ति है। वरना तो हम अपने महान राष्ट्र के टुकड़े-टुकड़े पकड़कर रो रहे होते।
तथाकथित बुद्धिजीवियों की बुद्धि पर कई दफा तरस आता है जो यह स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं कि भारत को एक देश और राजनीतिक इकाई का रूप देने का श्रेय अंग्रेजों को है। कांग्रेस के ही नेता एवं पूर्व मंत्री पी. चिदम्बरम किसी कार्यक्रम में इंदौर आए हुए थे, तब उन्होंने कहा था कि भला हो अंगे्रजों का जो वे भारत आए और हमें बेहतर बना दिया। वरना हम तो अंधेरे में ही जी रहे थे। लगभग यही बातें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तब कहीं थीं जब वे इंग्लैण्ड गए थे, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट की उपाधि लेने के लिए।
तमाम वामपंथी विद्वान भी यही सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं कि भारत को सभ्य और एक तो अंग्रेजों ने बनाया। अंग्रेज न आते तो भारत होता ही नहीं। जबकि वास्तविकता यह है कि अंग्रेजों को भारतीयों से कोई मोहब्बत नहीं थी, न ही वे मानवता में विश्वास करते थे, जो वे भारतीयों के हित की चिन्ता करते। वे लुटेरे थे, लूटने के लिए आए थे।
जब वीर प्रसूता मां भारती के लड़ाकों ने अंग्रेजों को ललकारा तब आखिरकर उन्हें यहां से जाना पड़ा। लेकिन, जाते-जाते भारत का सर्वनाश करने के लिए वे अपनी कुटिल चाल चल गए थे। उन्होंने भारत को एक राजनीतिक इकाई नहीं बनाया था बल्कि उन्होंने तो भारत को कई टुकड़ों में बांट दिया था। देशभक्त सरदार वल्लभ भाई पटेल न होते तो आज भारत 562 से भी अधिक टुकड़ों में बंटा होता। वे सरदार पटेल ही थे जिन्होंने भारत को एक किया। अपनी सूझबूझ और नेतृत्व क्षमता के बल पर ही सरदार अलग-अलग झण्डा थामे 562 रियासतों को तिरंगे के नीचे ला सके। यह आसान काम नहीं था। सरदार पटेल के हाथ में यह काम न होता तो शायद यह संभव भी न हो पाता।
सरदार के दृढ़ के आगे, उनकी लौह पुरुष की छवि के आगे भोपाल, जूनागढ़ और हैदराबाद के निजामों की भी एक न चली। सरदार पटेल के कारण ही ये सब आज भारत का अभिन्न अंग हैं और यहां कोई विवाद नहीं। वहीं, जम्मू-कश्मीर मसले में जवाहरलाल नेहरू के हस्तक्षेप के कारण आज तक विवाद की स्थितियां बनी हुई हैं। अगर जम्मू-कश्मीर के मामले में नेहरू ने टांग न फंसाई होती, सरदार पटेल को अपने तरीके से समस्या को हल करने दिया गया होता तो आज जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन होता। वह अपने नाम के अनुरूप वाकई ‘धरती पर स्वर्ग’ होता।
भारत-पाकिस्तान अलगाव के कारण उपजीं विषम परिस्थितियों के बीच कठोर अनुशासन प्रिय और मितभाषी सरदार वल्लभ भाई पटेल के लिए राष्ट्रीय एकता स्थापित करना चुनौतीपूर्ण कार्य था। लेकिन, तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने देश जोड़कर अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवा दिया। दरअसल, निर्णय लेते वक्त उनके दिमाग में किसी प्रकार की कोई दुविधा नहीं रहती थी। उनकी सोच एकदम स्पष्ट थी- राष्ट्र सबसे पहले। किसी भी कीमत पर देश की एकता जरूरी है।
राष्ट्र को एकजुट करने के लिए उन्हें कितनी ही तोहमत झेलनी पड़ी। सरदार सांप्रदायिक हैं, असमझौतावादी हैं, पूंजीपतियों के समर्थक हैं, मुस्लिम विरोधी हैं, वामपक्ष के विरोधी हैं। इस तरह के तमाम आरोप उन पर लगाए गए। लेकिन, आरोपों की परवाह न करते हुए सरदार पूरी तल्लीनता के साथ अपने काम में लगे रहे। निश्चित ही वे अपनी छवि और आरोपों की फिक्र करते तो देश कहीं पीछे छूट जाता। राष्ट्रीय एकता को हम पा नहीं सकते थे। भारत एक देश नहीं बन पाता। सरदार पटेल का ऋण हमेशा भारतीयों के माथे पर रहेगा। उस ऋण से उऋण होना संभव नहीं है। हां, एक तरीका है सरदार पटेल के विचारों और कर्मों को सार्थकता प्रदान करने का।
राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए हम ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के मौके पर शपथ लें कि हमारे मन-वचन-कर्म से कभी भी, किसी तरह भी राष्ट्रीय एकता, अखण्डता और संप्रभुता को क्षति न पहुंचे। राज्यों के आपसी विवाद खत्म करने के लिए हमें आगे आएं। भाषाई विवाद से पार पाएं। इन्सानों में धर्म-जाति के आधार पर कोई भेद न करें। सब स्तर पर एकजुट हों। देश की आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने में अपना योगदान थे। राष्ट्र विरोधी विचारों और कार्यों से दूर रहें। राष्ट्र विरोधी तत्वों का पुरजोर विरोध करें। भारत के गौरव को बढ़ाने के लिए अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वाहन करें।
भारत सरकार ने सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लेकर एकता की भावना के महत्व का भी प्रतिपादन किया है। स्वयं सरदार पटेल एकता को सबसे बड़ी ताकत मानते थे। उनका स्पष्ट कहना था- ‘एकता के बिना जनशक्ति शक्ति नहीं है।’ उनका यह भी मानना था कि कोई भी विश्वास तब तक मजबूत नहीं होता जब तक उसके पीछे एकता की ताकत न हो। वे कहते थे- ‘शक्ति के अभाव में विश्वास किसी काम का नहीं है। विश्वास और शक्ति, दोनों ही किसी भी महान कार्य को करने के लिए अनिवार्य हैं।’ उन्होंने भाषणों से ही नहीं बल्कि अपने व्यवहार से भी इन बातों को आगे बढ़ाया था।
कई मसलों को लेकर जवाहरलाल नेहरू से उनकी मतभिन्नता थी लेकिन अपनी ओर से उन्होंने यह कभी भी जाहिर नहीं होने दिया। वे अच्छी तरह समझते थे कि महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आपसी एकता और सामंजस्य जरूरी है। व्यक्तिगत हित, मन-मुटाव और मतभिन्नता को उन्होंने कभी अपने पास फटकने नहीं दिया। वे तो देश के लिए सर्वस्व समर्पित करने को निकले थे। उनके लिए बड़े से बड़ा पद प्राप्त करना उद्देश्य नहीं था। देश का मानस उन्हें प्रधानमंत्री बनाना चाहता था लेकिन महात्मा गांधी ने अपने प्रिय जवाहरलाल नेहरू का नाम आगे बढ़ाया।
सरदार पटेल ने पद-प्रतिष्ठा की दौड़ से खुद को बाहर रखकर गांधी के सम्मान को बढ़ाया और किसी मौन तपस्वी की तरह वे राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने में लगे रहे। आज के राजनीतिक दलों को सरदार पटेल से यह सीख लेनी चाहिए कि वे राष्ट्रीय एकता के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आगे आएं। एकजुट हों। देश के सम्मान पर आंच आए तो मिलकर आवाज बुलंद करें।
भारत की सुरक्षा के लिए नासूर बन चुकी अवैध घुसपैठ की समस्या पर राजनीति बंद करें। घटनाओं और समस्याओं को अलग-अलग चश्मे से देखना बंद करें। खुली आंखों से स्थितियों को एक समान रूप से देखें। समस्या का समाधान करते समय राजनीतिक स्वार्थ छोड़कर राष्ट्र को पहले रखकर देखें। स्वतंत्र भारत के समस्त नागरिकों की भी जिम्मेदारी है कि सरदार पटेल के काम को आगे बढ़ाने का संकल्प लें। उनकी जयंती को सार्थक बनाएं, इसे कर्मकाण्ड तक सीमित न करें। भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के सरदार पटेल के स्वप्र को हम साकार करें।
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