हिन्दुओं के पावन पर्व चैत्र नवरात्रि और भारतीय नव वर्ष की शुरुआत 18 मार्च यानि आज से हो रही है। नवरात्रि के इन नौ दिनों में मां दुर्गा के 9 रूपों को पूजा जाता है. इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। नौ दिनों तक घरों में व्रत, पूजा-पाठ और हर दिन अलग-अलग देवी मां की आराधना होती है। नवरात्रि में मां के दरबारों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जा सकती है. आज हम आपको नवरात्रि के दौरान पूजी जाने वाली इन नौ देवियों के बारे में विस्तार से बताते हैं…
1. शैलपुत्री–
शैलपुत्री माता दुर्गा के पहले रूप का नाम है . शैल का मतलब होता है शिखर और पुत्री का अर्थ होता है बेटी. हिमालय यानी शिखर पर पुत्री के रूप में जन्म लेने की वजह से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा. पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं. इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।
मंत्र:
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
2. ब्रह्मचारिणी
मांदुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
मंत्र:
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
3. चंद्रघंटा
दुर्गा माता के तीसरे रूप का नाम है चंद्रघंटा. नवरात्रि में तीसरे दिन इनकी पूजा की जाती है. माता चंद्रघंटा को वीरता की देवी माना जाता है. मान्यता है कि मन में भय या अशांति होने पर इनकी पूजा करनी चाहिए.
मंत्र:
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
4. कूष्माण्डा
नवरात्रि के चौथे दिन कूष्माण्डा माता को पूजा जाता है. मान्यता है कि इन माता ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी, इसी वजह से इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति भी कहा जाता है। देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं अत: इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है।देवी अपने इन हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा व माला लिए हुए हैं। माता की वर मुद्रा भक्तों को सभी प्रकार की ‘ऋद्धि-सिद्धि’ प्रदान करने वाली होती है। भक्त श्रद्धा पूर्वक चौथे दिन मां कूष्मांडा की उपासना करते हैं। माता के पूजन से भक्तों के समस्त प्रकार के कष्ट रोग, शोक संतापों का अंत होता है तथा दिर्घायु एवं यश की प्राप्ति होती है।
मंत्र :
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।।
5. स्कंदमाता
पांचवे दिन पूजी जाती हैं स्कंदमाता. इन्हें मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता के रूप में पूजा जाता है. इन माता की चार भुजाएं होती हैं, उनकी गोद में बालरूप भगवान स्कंद विराजमान होते हैं. इनके हाथ में कमल होता है इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है.
मंत्र:
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
6. कात्यायनी
छठवीं देवी हैं कात्यायनी. मान्यता है कि इनके पूजन से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं.
मंत्र:
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
7. कालरात्रि
मां दुर्गा का सातवां स्वरूप मां कालरात्रि है. इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा गया और असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था. इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें ‘शुभंकारी’ भी कहते हैं. आपने यह नाम माता के इन गाने में सुना होगा रुकी जहां पर काल रात्रि चण्ड मुण्ड को मारकर घनन घनन घन घंटा वाजे…! मान्यता है कि इनके नाम से सभी असुरी शक्तियां थरथर कांपती हैं. इसी वजह से इनकी आराधना से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है.
मंत्र:
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
8. महागौरी
नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा के रूप महागौरी को पूजा जाता है. मान्यता के अनुसार इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
मंत्र :
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
9. सिद्धिदात्री
नवदुर्गा के सिद्धि और मोक्ष देने वाले स्वरूप को सिद्धिदात्री कहते हैं। सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र के नौवें दिन की जाती है। देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक और गृहस्थ आश्रम में जीवनयापन करने वाले भक्त सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। इससे उन्हें यश, बल और धन की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी उन सभी भक्तों को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां प्रदान करती हैं, जो सच्चे मन से उनके लिए आराधना करते हैं। मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं को भी मां सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों की प्राप्ति हुई है। हिमाचल के नंदापर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ मौजूद हैं. प्रचलित कथा के अनुसार इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था. इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।
मंत्र:
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयाात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।