पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम के निधन के बाद खबर आयी कि वे आईआईएम में लेक्चर देने गये थे, जहां अचानक हार्ट अटैक पड़ा और वे बेहोश होकर गिर पड़े और मृत्यु को प्राप्त हो गये। क्या आप यह जानना चाहेंगे कि आखिर सुबह से लेकर शाम तक उनका आखिरी दिन कैसे बीता? अगर हां, तो सुनिये कलाम के सलाहकार सृजन पाल सिंह की जुबानी।
सृजन पाल लिखते हैं- मेरे दिन (27 जुलाई 2015) की शुरुआत दोपहर 12 बजे हुई, जब गुवाहाटी के लिये वे कलाम साहब के साथ विमान में बैठा। वे डार्क रंग का सूट पहने हुए थे, मैंने उनसे कहा “नाइस कलर”! लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह उनकी जिंदगी का अंतिम रंग होगा।
मॉनसून के खराब मौसम के बीच करीब ढाई घंटे की उड़ान में मैं परेशान हो गया, लेकिन कलाम साहब को जैसे विमान में लगने वाले झटकों की आदत सी थी, वे कूल होकर बैठे रहे। विमान की लैंडिंग के वक्त मुझे परेशान देख वो बोले “अब तुम्हें कोई डर नहीं लगेगा!” उसके बाद ढाई घंटे का गुवाहाटी से शिलॉन्ग तक का सफर।
करीब छह घंटे में मैं कलाम साहब से बात करता रहा। बातों में मुझे समझ आ गया कि वे चिंतित हैं। उन्हें सबसे बड़ी चिंता थी पंजाब में हुए आतंकी हमले की। वे शिलॉन्ग जाते वक्त अपनी स्पीच मुझसे डिसकस कर रहे थे। उन्हें “क्रिएटिंग ए लिवेबल प्लैनेट अर्थ” पर लेक्चर देना था। वो बोलते जा रहे थे और मैं नोट कर रहा था। उन्होंने कहा, “ऐसा लग रहा है कि इंसानों द्वारा बनायी गई सेनाएं हीं जीने योग्य पृथ्वी के लिये सबसे बड़ा खतरा है, ठीक वैसे ही जैसे प्रदूषण है।”
कलाम साहब को चिंता थी बार-बार संसद के सत्र में हंगामों की वजह से होने वाली हानि की। उन्होंने कहा, “मैंने अपने कार्यकाल में दो सरकारें देखीं। उसके बाद और भी जिस तरह से संसद चल रही है, वो सही नहीं है। हमें उसे चलाने का सही तरीका खोजना होगा . विकास की राजनीति पर बात करनी होगी।”
अंत में उन्होंने मुझसे कहा कि आईआईएम शिलॉन्ग के छात्रों के लिये सरप्राइज प्रश्न तैयार करूं, जो कि लेक्चर के बाद उन्हें देंगे। वो चाहते थे कि लेक्चर के अंत में छात्रों से पूछें कि वे संसद को और ज्यादा प्रोडक्टिव बनाने के लिये तीन इनोवेटिव आईडिया सुझायें। फिर मुस्कुराये और बोले, “मैं छात्रों से सुझाव देने के लिये कैसे कह सकता हूं, जब खुद मेरे पास कोई हल नहीं है।”
सैनिक से मिले कलाम
हमारे काफिले में छह-सात कारें थीं। मैं और कलाम साहब दूसरी कार में थे। हमारे आगे एक जिप्सी थी, जिसमें तीन सैनिक थे, जिनमें दो बैठे थे और एक अपनी बंदूक ताने खड़ा हुआ था। काफिला चल रहा था, तभी कलाम साहब ने पूछा “ये सैनिक खड़ा क्यों है?” मैंने कहा, बेहतर सुरक्षा के लिये उसे ऐसे आदेश दिये गये हैं। उसे कोई पनिशमेंट नहीं मिली है। कलाम साहब बोले, “वायरलेस पर मैसेज करके कह दो कि वो बैठ सकता है।” हमने रेडियो मैसेजिंग के जरिये कलाम साहब का संदेश पहुंचाने के प्रयास किये, लेकिन संदेश नहीं पहुंचा।
अगले डेढ़ घंटे की यात्रा के दौरान उन्होंने मुझे तीन बार कहा कि अगर मैं हाथ से इशारा करके उसे बैठने को बोल सकूं। जैसे ही आईआईएम पहुंचे, तो कलाम साहब ने कहा, मैं उस सैनिक से मिलना चाहता हूं। मैं दौड़ कर सुरक्षाकर्मियों के पास गया और उसे लेकर अंदर कलाम साहब से मिलवाने पहुंचा। कलाम सर ने उससे हाथ मिलाया और कहा, “तुम थक गये होगे? कुछ खाना चाहोगे? मैं माफी चाहता हूं कि मेरी वजह से इतनी देर तक तुम्हें खड़े रहना पड़ा।” वह सैनिक सर को देखता रह गया और बोला, “सर आपके लिये छह घंटे भी खड़े रहेंगे।”
जल्दी-जल्दी थोड़ा सा नाश्ता करके मुझसे बोले, “छात्रों को मेरी वजह से इंतजार नहीं करना चाहिये।” इतना कहते हुए वे मेरे साथ लेक्चर हॉल में पहुंचे। मैंने उनके कॉलर में माइक लगा दिया। वे मुस्कुराये और बोले “Funny guy! Are you doing Well?”। जब कलाम साहब कहते थे “Funny Guy” तो उसके कई सारे मतलब होते थे। इसका मतलब आपने अच्छा किया है, आपने सबकुछ घलमेल कर दिया, आप मुझे सुनिये, या फिर जो सामने है, वो बेहद फनी है, कुछ भी जो चेहरे पर मुस्कान ले आये!
कलाम साहब के अंतिम शब्द
मैंने उनकी तरफ देखा और कहा “Yes”। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि “Funny guy! Are you doing Well?” कलाम साहब के अंतिम शब्द होंगे। इतना कहते ही वे अचानक मंच पर गिर पड़े। हमने उन्हें उठाया और तुरंत अस्पताल ले गये। उनकी आंखें बंद थीं और मैं उनका सिर और एक हाथ पकड़े हुआ था। उनके चेहरे पर स्थिरता नजर आ रही थी। सब कुछ रुक सा रहा था। वे शांत थे लेकिन मेरे दिल की धड़कने बहुत तेजी से चल रही थीं। उन्होंने किसी भी दर्द की शिकायत नहीं की। वे शांत चित होकर मेरे पास एम्बुलेंस में लेटे रहे।
पांच मिनट में हम करीबी अस्पताल में पहुंच गये। अगले पांच मिनट में डॉक्टरों ने संकेत दे दिये कि मिसाइल मैन इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। मैंने अंतिम बार उनके पैर छुए। बस इसी के साथ मैंने एक दोस्त, एक शिक्षक, एक अभिभावक को खो दिया।
मैं पीछे मुड़ा तो मेरे कानों में कलाम सर के शब्द गूंजे, “You are young, decide what will like to be remembered for??” इसका अर्थ है “तुम जवान हो, तुम तय करो कि तुम्हें किसे यादगार बनाना है।” अब शायद इस सवाल का मेरे पास एक ही जवाब रह गया है, वो है 27 जुलाई 2015 जो मैं कभी नहीं भूल पाउंगा।
Note:सृजन पाल सिंह सिंह ने कलाम साहब के साथ बिताये अंतिम दिन का विवरण अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा है, जिसका अनुवाद वनइंडिया ने किया है।