जल नेति मुख्यत: सिर के अन्दर वायु-मार्ग को साफ करने की क्रिया है। यह एक जल चिकित्सा है जो एलर्जी, अस्थमा, साइनस और आंखों कि बीमारी को ठीक कर देती है। नेति के मुख्यत: दो रूप हैं : जलनेति तथा सूत्रनेति। जलनेति में जल का प्रयोग किया जाता है; सूत्रनेति में धागा या रबड़ का प्रयोग किया जाता है|
जलनेति की विधि
वैसे आम लोग जलनेति से घबराते हैं लेकिन इसको करना बहुत आसान है। आज आपको हम जलनेति कैसे किया जाए इसका सरल तरीका बताएँगे। तो जानिए जलनेति की विधि जिसके मदद से आप अपने घर पर इसका अभ्यास कर सकते हैं।
- सबसे पहले आप वैसा नेति लोटा या नेतिपॉट लें जो आसानी से आपके नाक के छिद्र में घुस सके।
- नेति लोटा में आधा लीटर गुनगुना नमकीन पानी और एक चम्मच नमक भर लें।
- अब आप कागासन में बैठें।
- कमर से आगे की ओर झुकें। नाक का जो छिद्र उस समय अधिक सक्रिय हो, सिर को उसकी विपरीत दिशा में झुकाएं।
- अब आप नेति लोटा की टोंटी को नाक के सक्रिय छिद्र में डाल लें।
- मुंह को खोल कर रखें ताकि आप को सांस लेने में परेशानी न हो।
- पानी को नाक के एक छिद्र से भीतर जाने दे तथा यह दूसरे छिद्र से अपने आप बाहर आने लगेगा।
- जब आधा पानी खत्म हो जाने के बाद लोटा को नीचे रख दें तथा नाक साफ करें। दूसरे छिद्र में भी यही क्रिया दोहराएं। नाक साफ कर लें।
जलनेति के लाभ
- जलनेति सिरदर्द में : अगर आप बहुत ज़्यदा सिरदर्द से परेशान हैं तो यह क्रिया अत्यंत लाभकारी है।
- जलनेति अनिद्रामें: अनिद्रा से ग्रस्त व्यक्ति को इसका नियमित अभ्यास करनी चाहिए।
- जलनेति सुस्ती के लिए : सुस्ती में यह क्रिया अत्यंत लाभकारी होती है।
- जलनेति बालों का गिरना रोके: अगर आपको बालों का गिरना बंद करना हो तो इस क्रिया का अभ्यास जरूर करें।
- जलनेति बालों के सफेद में: यह बालों को सफेद होने से भी रोकता है।
- जलनेति मेमोरी में : आपके के मेमोरी को बढ़ाने में यह विशेषकर लाभकारी है।
- जलनेति नाक रोग में: नाक के रोग तथा खांसी का प्रभावी उपचार होता है।
- जलनेति नेत्र-विकार में: नेत्र अधिक तेजस्वी हो जाते हैं। नेत्र-विकार जैसे आंखें दुखना, रतौंधी तथा नेत्र ज्योति कम होना, इन सारी परीशानियों का इलाज इसमें है।
- जलनेति कान रोग में: कानों के रोगों, श्रवण शक्ति कम होने और कान बहने के उपचार में यह लाभकारी है
- जलनेति का वैज्ञानिक पक्ष: जलनेति में कुछ अधिक नमकीन जल का प्रयोग करने से नाक के अंदर खुजली होती है जिसके कारण झिल्ली में रक्तप्रवाह बढ़ता है तथा ग्रंथीय कोशाओं का स्राव भी बढ़ता है, जिससे ग्रंथियों के द्वार साफ होते हैं। नेति के कारण मात्र नासा-गुहा को ही लाभ नहीं होता बल्कि नेत्रों एवं विभिन्न साइनसों को भी लाभ मिलता है।
इसी प्रकार सूत्र नेति की जाती
1. इस क्रिया को करने के लिए थोड़ा मोटा लेकिन कोमल धागा लें जिसकी लम्बाई बारह इंच या डेढ़ फुट के आसपास हो और इस बात का ख्याल रखें कि वो आपकी नासिका के छिद्र में आसनी से जा सकें।
2. अब इस धागे को गुनगुने पानी में भिगो लें और इसका एक छोर नासिका छिद्र में डालकर मुंह से बाहर निकालें।
3. यह प्रकिया बहुत ही ध्यान से करें। फिर मुंह और नाक के डोरे को पकड़ कर धीरे-धीरे दो या चार बार ऊपर नीचे खीचना चाहिए।
4. इसके बाद इसी प्रकार दूसरे नाक के छेद से भी करना चाहिए।
नोट यह दोनों क्रियाएं किसी अच्छे प्रशिक्षित योगाचार्य के निर्देशन में पूरी तरह सीखकर ही करें…