किसी भी देश की पहचान उसकी संस्कृति और सांस्कृतिक, प्राकृतिक व ऐतिहासिक धरोहरों से होती है। ये धरोहर न सिर्फ उसे विशिष्टता प्रदान करती हैं बल्कि उसे दूसरे देशों से अलग भी दिखलाती हैं।
हमारे देश में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक यानी चारों दिशाओं में ऐसी सांस्कृतिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक छटाएं बिखरी पड़ी हैं कि पर्यटक उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो जाएं। प्राचीन स्मारक, मूर्ति शिल्प, पेंटिंग, शिलालेख, प्राचीन गुफाएं, वास्तुशिल्प, ऐतिहासिक इमारतें, राष्ट्रीय पार्क, प्राचीन मंदिर, अछूते वन, पहाड़, विशालकाय रेगिस्तान, खूबसूरत समुद्रीय तट, शांत द्वीप समूह और भव्य व आलीशान किले।
इन धरोहरों में ऐतिहासिक किलों, हवेलियों और बावड़ियों का कोई मुकाबला नहीं। ये सचमुच लाजवाब हैं। भारतीय भूमिगत स्थापत्य ढांचे की एक अनोखी मिसाल गुजरात के पाटन जिले में स्थित ‘रानी की वाव’ अब विश्व धरोहर हैं। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को की वैश्विक विरासत समिति ने हाल ही में कतर की राजधानी दोहा में हुई एक बैठक में ‘रानी की वाव’ को अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल करने का फैसला किया है।
रानी की वाव सारी दुनिया में ऐसी इकलौती बावड़ी है, जो विश्व धरोहर सूची में शामिल हुई है। यह वाव (बावड़ी) इस बात का भी सबूत है कि प्राचीन भारत में जल-प्रबंधन की व्यवस्था कितनी बेहतरीन थी।
गुजरात से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल होने वाली ‘रानी की वाव’ दूसरी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व का स्थल है। इससे पहले यूनेस्को साल 2004 में राज्य के पंचमहल जिले में स्थित चांपानेर-पावागढ़ किले को भी विश्व विरासत सूची में शामिल कर चुका है।
ग्यारहवीं शताब्दी में बना सीढ़ीदार कुआं ‘रानी का वाव’ को विश्व विरासत सूची में शामिल करते हुए यूनेस्को ने इसे भूजल संसाधनों का उपयोग करने में प्रौद्योगिकीय विकास और जल प्रबंधन का विशिष्ट उदाहरण बताया। अपने एलान में समिति ने इसे भारत में स्थित सभी वाव (स्टेपवेल) की रानी का खिताब भी दिया।
एक लिहाज से देखें तो ‘रानी का वाव’ देश में सीढ़ीदार कुएं के उद्भव का चरम है। मारु-गुर्जर शैली का यह सात मंजिला सीढ़ीदार कुआं इस इलाके के अंदर बाढ़ आने और जियोटेक्टोनिक बदलावों के कारण से सरस्वती नदी के लुप्त हो जाने की वजह से यह सात दशक तक गाद की परतों के नीचे दबा रहा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसे खोजकर, शानदार स्थिति में संरक्षण किया।
रानी की वाव’ को साल 1063 में सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम की याद में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने बनवाया था। यह वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा तथा 27 मीटर गहरा है। यह भारत में अपनी तरह का एक अनूठा वाव है। स्थापत्य के अलंकृत पैनलों वाला यह कुआं पहली ही नजर में पर्यटकों का मन मोह लेता है।
वाव के खंभे हमें सोलंकी वंश और उनके दौर के वास्तुकला के नायाब नमूनों को दिखलाते हैं। वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि, आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
वाव की सीढ़ियां भूमितल से शुरू होती है, जो पर्यटकों को अनेक स्तंभों और मंडपों से आती ठंडी हवा के साथ नीचे बने गहरे कुएं तक ले जाती है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने पिछले साल फरवरी में ही ‘रानी की वाव’ को यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची के लिए मनोनीत किया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की कोशिशें रंग लाईं और विश्व विरासत समिति ने इसे अपनी सूची में शामिल कर लिया।
विश्व विरासत कमेटी ने अपनी इसी बैठक में ‘रानी की वाव’ के अलावा भारत की ही एक अन्य धरोहर हिमाचल प्रदेश में स्थित ‘ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क कंजरवेशन एरिया’ (जीएचएनपीसीए) को भी विश्व विरासत की फेहरिस्त में शामिल किया है। इसे प्राकृतिक विरासत की श्रेणी में चुना गया है।
इस सूची में यह देश की एकमात्र प्रवष्टि थी। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क 905 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। ये जैव विविधता और प्राकृतिक संपदा से भरपूर क्षेत्र है। करीब नौ साल पहले फ्रेंड्स नामक एक स्वयंसेवी संस्था ने ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के संरक्षण और विश्व विरासत दर्जे के लिए वैश्विक समर्थन जुटाने की मुहिम शुरू की थी, जिसमें उसे अब जाकर कामयाबी मिली है।
पश्चिमी हिमालय के संरक्षण के लिए ये सचमुच एक ऐतिहासिक कदम है। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के अलावा भारत में छह अन्य ऐसे प्राकृतिक स्थल हैं जो यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में पहले से शामिल हैं। इसमें पश्चिम बंगाल का सुंदर वन और पांच राज्यों में फैले पश्चिमी घाट भी शामिल है।
गौरतलब है कि यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत में शामिल कर लिए जाने के बाद, वह जगह या स्मारक पूरी दुनिया की धरोहर बन जाता है। इन विश्व स्मारकों का संरक्षण यूनेस्को के इंटरनेशनल वर्ल्ड हेरिटेज प्रोग्राम के तहत किया जाता है। यूनेस्को हर साल दुनिया भर के ऐसे ही बेहतरीन सांस्कृतिक और प्राकृतिक स्मारकों को सूचीबद्ध कर, उन्हें उचित देखभाल प्रदान करती है।
इन विश्व धरोहरों का वह प्रचार-प्रसार करती है, जिससे ज्यादा से ज्यादा पर्यटक इन स्मारकों के इतिहास, स्थापत्य कला, वास्तु कला और प्राकृतिक खूबसूरती से वाकिफ होते हैं। विश्व विरासत की सूची में शामिल होने का एक फायदा यह भी होता है कि उससे दुनिया भर के पर्यटक उस तरफ आकर्षित होते हैं।
अभी तक भारत के केवल पैंतीस स्मारक विश्व विरासत की सूची में शामिल थे, जिनमें से उनतीस सांस्कृतिक श्रेणी में और छह प्राकृतिक विरासत की श्रेणी में है। गुजरात की ‘रानी की वाव’ और हिमाचल प्रदेश में स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के इन दो स्मारकों के और विश्व विरासत की सूची में शामिल हो जाने से अब इनकी संख्या सैंतीस हो गई है।
‘रानी की वाव’ को विश्व विरासत की नई सूची में शामिल किया जाना, देश के लिए सचमुच एक बड़ी उपलब्धि है। विश्व धरोहर की सूची में किसी जगह का शामिल होना ही ये बताता है कि उस जगह की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितनी कीमत होगी। भूमिगत जल के स्रोत के उपयोग व जल प्रबंधन प्रणाली के रूप में ‘रानी की वाव’ का कोई जवाब नहीं।
यह वाव हमें बतलाती है कि पुराने समय में हमारे देश में जल-प्रबंधन की कितनी बेहतर व्यवस्था थी। हमारे पुरखे भूमिगत जल का इस्तेमाल इस खूबी के साथ करते थे कि व्यवस्था के साथ इसमें एक सौंदर्य की झलकता था।
अब जबकि गुजरात की इस ऐतिहासिक वाव को विश्व धरोहर का दर्जा मिल गया है, तो केंद्र सरकार और गुजरात सरकार दोनों की ये सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि वह इस वाव को सहेजने और संवारने के लिए, एक व्यापक कार्य योजना बनाएं। ताकि ये अनमोल धरोहर हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रहे। विश्व विरासत की सूची में शामिल होने के बाद, निश्चित तौर पर जिम्मेदारियों में भी इजाफा होता है।
जिम्मेदारियां न सिर्फ सरकार की बढ़ी हैं, बल्कि हर भारतीय नागरिक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी इस अनमोल विरासत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को सहेज कर रखे। उसका संरक्षण करें। इसके महत्व को खुद समझें और आने वाली पीढ़ियों को भी इसका महत्व समझाएं।