होली जिसे रंगों का त्योहार बोला जाता है। इस होली से एक दिन पहले होलिका दहन (holika dahan) मनाया जाता है। हर गली मुहल्लों सोसायटी के सभी जगह के लोग साथ मिलकर होलिका (holika) जलाते है जिस जगह होलिका जलानी होती है वहां पर हफ्तों पहले लोग होलिका दहन (Holika Dahan) के लिए लकड़ियों को इकट्ठा करने लगते हैं। अधिकतर लोगों को यह पता नहीं होता है कि होलिका दहन (Holika Dahan) के लिए कौन सी लकड़ी का इस्तेमाल (Wood) होना चाहिए। इसलिए वो बिना जाने हरे पेड़ की लकड़ियों को होलिका दहन (Holika Dahan) में जला देते हैं जो सही नहीं हैं।
होलिका दहन (Holika Dahan )में न जलाएं इन पेड़ो की लकड़िया-
धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो हर पेड़ पर किसी न किसी देवता का आधिपत्य होता है यही माना जाता है की हर पेड़ों में देवी-देवताओं का वास होता है इसी कारण तीज-त्योहारों में अलग-अलग पेड़ों की पूजा (Worshipping Trees) करने का विधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है। पीपल के पेड़ से लेकर, बरगद के पेड़, शनि का पेड़, आंवले का पेड़, केला का पेड़, आम का पेड़, नीम का पेड़, बेलपत्र का पेड़, अशोक का पेड़ इन सभी की पूजा की जाती है इसलिए होलिका दहन(Holika Dahan) के मौके पर हरे पेड़ो की लकड़ियों को भूल से भी नहीं जलानी चाहिए।
इन पेड़ो की लकड़ियों का हो सकता है इस्तेमाल-
होलिका दहन (Holika Dahan) में कुछ पेड़ो की लकड़ियों को जलाने की सलाह दी जाती है – एरंड और गूलर (Goolar) वैसे गूलर का पेड़ अत्यंत शुभ माना जाता है लेकिन इस मौसम में गूलर (Goolar ) और एरंड इन दोनों ही पेड़ों के पत्ते झड़ने लगते है अगर इन्हे जलाया न जाए तो इनमे कीड़े लगने लगते है। इसलिए इन दोनों पेड़ो का इस्तेमाल होलिका दहन (Holika Dahan ) में किया जाता है।
होलिका दहन में करें उपले और कंडो का इस्तेमाल
होलिका दहन के लिए गाय के गोबर से बने उपले और कंडो (Kande) का विकल्प हर लिहाज से बेहतर है। इसके अलावा खर-पतवार को भी होलिका की आग में जलाना चाहिए। ऐसा करने से हरे पेड़ और लकड़ियों को बचाया जा सकता है। इसलिए होलिका दहन किया जाता है क्योंकि यह बुराई के अंत का प्रतीक है। ऐसे में जरूरी नहीं है कि होली लकड़ी से ही जलाई जाए, होली कंडों से भी जलाई जा सकती है। ऐसे करने से वातावरण भी शुद्ध होता है।
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