जय श्री कृष्ण !!
पवित्र गीता जी के ज्ञान को उस समय बोला गया था जब महाभारत का युद्ध होने जा रहा था। अर्जुन ने युद्ध करने से इन्कार कर दिया था। युद्ध क्यों हो रहा था?
पांडवो के बारह वर्ष के वनवास तथा एक वर्ष के अज्ञातवास से लौट कर आने के पश्चात, कौरवों ने पाण्डवों को आधा राज्य भी देने से मना कर दिया था। पाण्डवों के केवल पाँच गाँव मांगने पर भी, दुर्योधन ने कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक तुल्य भी जमीन नहीं है। यदि उन्हें राज्य चाहिए तो युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र के मैदान में आ जाऐं। अतः पांडवो ने माता कुंती की आज्ञानुसार युद्ध करना स्वीकार कर लिया ।
निश्चित समय पर युद्ध प्रारम्भ हुआ परन्तु युद्ध से ठीक पहले अपने स्वजनो को अपने विरुद्ध खड़ा देख कर अर्जुन शिथिल हो गए तथा श्री कृष्ण से युद्ध नहीं करूँगा, ऐसा कहा:
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा ।
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च ॥ १-३२
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते ।
निहत्य धार्तराष्ट्रान्न का प्रीतिः स्याज्जनार्दन ॥ १-३५
हे गोविन्द! हमें राज्य, सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ! क्योकि जिन सारे लोगो के लिए हम इन्हे चाहते हैं, वे ही इस युद्ध भूमि में खड़े हैं। हे जीवो के पालक ! मैं इन सबो से लड़ने को तैयार नहीं, भले ही बढ़ने में मुझे तीनो लोक क्यों न मिलते हो, इस पृथ्वी की तो बात ही छोड़ दे। भला धृतराष्ट्र के पुत्रो को मारकर हमें कौन सी प्रसन्नता मिलेगीं ?