चेन्नई पर मंडराए बाढ़ के खतरे ने पेरिस में पर्यावरण को बचाने के लिए जुटे दुनिया के तमाम चौधरियों का ध्यान खींचा है। पर्यावरण विद मानते हैं कि इन शहरों में की बनावट में प्लानिंग की तो दिक्कत है ही, लेकिन उससे भी भयावह संकेत पर्यावरण के बदलने का है। सवाल यह है कि चेन्नई के बाद भारत सहित दुनिया के कई ऐसे शहर हैं, जो डूब सकते हैं।
हालांकि देखा जाए तो यूं तो दुनिया भर के अनेक शहरों और देशों पर समुद्र का जलस्तर बढ़ते जाने से लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है, लेकिन इसकी शुरुआत होगी महलों जैसे गोंडालों, विख्यात शिल्पियों की कलाकृतियों से सजे खूबसूरत वेनिस से, जिसके समुद्र के भीतर सो जाने की कथा में बस इति लिखे जाने की देर है।
शायद इस सदी का यौवनकाल खत्म होते-होते पर्यटक इसे पनडुब्बियों अथवा कांच की बंद नावों के जरिये देखा करें। अंदाजा आज के पर्यटकों के अनुभवों से लग सकता है, जो कहते हैं कि यह शहर मृत्यु नहीं वरन शव संरक्षण की प्रक्रिया से गुजर रहा है क्योंकि भले वह हंसे-खेले, चढ़े-उतराए, पर्यटकों को रिझाए, पर शहर के कोने-कोने से गुजरती दि ग्रैंड कैनाल दु:स्वप्न बनकर शहर को धमकाने लगी है कि जाओ अब कहीं और बसो!
लेकिन, वो इंसान ही क्या, जो जूझे ही ना। इसीलिए दिन हो या रात, करीब ढाई घंटे के लिए उथल-पुथल मचाने वाले ज्वार आने के सायरन बजने की देर नहीं होती, वेनिसवासी सभी कामों को तिलांजलि दे अथाह पानी से युद्ध लड़ने लगते हैं और अपनी मुस्तैदी से वेनिस के कुछ और जवां दिन, कुछ और जवां शामें मौत के आगोश से खींच लाते हैं करोड़ों यूरो का गबन करने के आरोप में अध्यक्ष और प्रांत के गवर्नर समेत 35 लोगों के गिरफ्तार किए जाने के बाद धीमा पड़ा प्रोजेक्ट मोजेज भी अपनी कछुआ रफ्तार से शहर को बचाने के कदम बढ़ा रहा है। कल कुछ भी हो, लेकिन आज प्रकृति के कहर को वेनिसवासी मुंह पर बोल चुके हैं- वे हार नहीं मानेंगे।
बाढ़ से तो रिश्ता है जन्म का :
वैसे बाढ़ वेनिस के लिए नई बात नहीं है। 25 मार्च सन् 421 में इटली को हूणों द्वारा तहस-नहस कर दिए जाने से बचकर आए लोगों द्वारा बसाए जाने के बाद इसने तबाही के ढेरों मंजर झेले हैं। तब चारों ओर से घिरे 124 टापुओं के इस शहर में पानी ने ही लोगों को सुरक्षा प्रदान की थी, जो आज दुश्मन बन चुका है। आलम यह है कि सन् 527 की बाढ़ एक चौथाई शहर बहा ले गई। 1240 में शहर की सड़कें करीब 6 फुट पानी में डूब गर्इं। 1268 की बाढ़ ने असंख्य नागरिकों को उनके घरों समेत गायब कर दिया तो बहुत ठंड से मर गए।
इस सबके साथ जगह-जगह दीवारें उठाकर पानी को रोकने की कार्रवाईयां भी जारी रहीं, जो बहुत कारआमद सिद्ध न हुर्इं, और तो और जलस्तर कम होना जिसकी रफ्तार सन् 400 से 1900 तक 5 इंच प्रति शताब्दी थी, बीसवीं सदी में बढ़कर1 फुट प्रति शताब्दी हो गई। नतीजा जैसे-जैसे भूमिगत जलस्रोत सूखते गए, शहर तेजी से धंसना शुरू हो गया। बाढ़ के कारण भले जटिल हों, लेकिन प्रभाव जगजाहिर हैं। प्रसिद्ध सेंट मार्क स्क्वायर अब प्रति वर्ष 230 से अधिक दिन पानी का प्रकोप झेलता है। समुद्र की कुछ सतहें वर्ष में कोई 300 बार नहरों के किनारों से ऊपर पहुंचने लगी हैं। बात करें 4 नवंबर 1966 की, जब पानी समुद्र स्तर से 6 फुट ऊंचा चढ़ा और भारी बरसात, पूर्ण चंद्र ज्वार और हवा के कम दवाब ने समुद्र को शहर में धकेल दिया। इसने वेनिस से ना सिर्फ खेती का नामोनिशान मिटा दिया, बल्कि अधिकतर पेड़-पौधों की जिंदगी भी ले ली। जनवरी 2001 में तो आधे से ज्यादा शहर 15 दिन तक पानी में डूबा रहा।
खलबली मची कि यदि तत्काल कुछ ना किया, तो वेनिस का विनाश अवश्यंभावी है। गरमागरम बहस-मुबाहिसों के बाद 2 कारण महत्वपूर्ण माने गए। एक तो यह कि नगर के भारी उद्योग धंधों ने भूमिगत पानी को सोख लिया था। नतीजतन वेनिस के नीचे की भूमि सूखते स्पंज की तरह सिकुड़ रही थी। दूसरा दुनिया के मौसम में परिवर्तन के कारण अधिकाधिक तूफान आने से उत्तरी एडियाट्रिक में पानी का स्तर व्यापक रूप से ऊंचा हो गया था।
इस बात से इतालवी सरकार ही गंभीर नहीं हुई, आज 20 देशों में करीब 70 गैर सरकारी संस्थाएं और धर्मार्थ संगठन वेनिस बचाओ अभियान चला रहे हैं। उन्होंने 100 से अधिक पुन:स्थापन परियोजनाएं पूर्ण कर ली हैं, अनेकों पर काम चल रहा है। नई जलप्रणाली में आल्पस पर्वत से ताजा पानी लाया जा रहा है, जिससे वेनिस के धंसने की गति मंद पड़ी है। रेत के ऊंचे-ऊंचे बांध बनाकर किनारों की ऊंचाई भी बढ़ाई जा रही है। शोध के बाद समुद्र का बढ़ता पानी शहर में घुसने से रोकने के लिए लंदन के थेम्स रिवर बैरियर की भांति 78 मोबाइल दरवाजों के मोजेज प्रोजेक्ट को स्वीकृति दी गई, जिस पर असल काम 2003 से शुरू हुआ।
ऐसा नहीं कि शहर की इमारतें नदी के चढ़ाव-उतराव को ध्यान में रखकर न बनाई गई हों, लेकिन उन सदियों पुराने भवन निर्माताओं को भी यह सपना न आया होगा कि पानी का स्तर ऊंचा दर ऊंचा होता जाएगा। यही नहीं, विश्व की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक, जहां करीब 3 करोड़ पर्यटक हर साल आते हों, वह वेनिस अपने शानदार गोंडालों एवं जलीय यातायात को लेकर परेशान है, जिनके आने-जाने से उठी लहरें नदी किनारे स्थित इमारतों में पानी भरने व उनकी नींवें हिलाने के लिए काफी हैं, और तो और आधुनिक सीवेज सिस्टम बस यहां नाममात्र ही है। अभी भी वेनिसवासी ज्वार भाटे पर ही निर्भर हैं जिसे पर्यटकों का बढ़ता जोर गंभीर बनाए दे रहा है। परेशानियों का ही दबाव है कि शहर की आबादी घटते-घटते 60 हजार से भी कम हो गई है जबकि 50 के दशक में वेनिस में इससे 3 गुना अधिक लोग निवास करते थे।
हां, हम यह भी नहीं झुठला सकते कि वेनिस आज पुरातनकाल से अधिक सुरक्षित है, ज्यादा संसाधन उसके पास मौजूद हैं। पुरातन वेनिसवासियों ने समुद्र के किनारे दीवारें उठाई थीं और 2 बड़ी नदियों का रुख भी मोड़ा, जो कि बड़े इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट हैं, लेकिन वे सुरक्षित नहीं थे। उन्होंने लगातार जानें गंवाईं, उनकी तुलना में आज नुकसान नहीं के बराबर है। लेकिन, यह भी सच है कि उपायों के बावजूद जहां वेनिस 2 मिमी प्रति वर्ष की गति से समुद्र में धंस रहा है, वहीं समुद्र स्तर भी 2 मिमी प्रति वर्ष के हिसाब से बढ़ रहा है। ऐसे आंकड़ा 4 मिमी प्रति वर्ष हो जाता है, जो दिखे भले छोटा, लेकिन इसके व्यापक प्रभावों को इससे नहीं आंका जा सकता।
लो आ रहा है वेनिस का मसीहा ”मोजेज”:
रात के 1 बजे का समय…मोजेज कंट्रोल सेंटर, 10 लोगों की टीम हाईटेक स्क्रीन्स पर समुद्र के पानी में आ रहे उतार-चढ़ावों को ग्राफ, चार्ट्स और डायग्राम लगातार समझ-बूझ रही है। उन्होंने 5 साल केवल कल्पनाओं और वर्चुअल रियलिटी प्रोग्राम में समुद्र के पानी के आकलन का काम किया है, तभी समुद्र स्तर के खतरे से ऊपर उठने का अलार्म बजता है और टीम प्रोजेक्ट मोजेज को अमल में लाने को हरी झंडी दिखा देती है। जोरदार आवाजों के साथ एक के बाद एक स्टील के 78 दरवाजे समुद्री कहर के रास्ता रोककर खड़े हो जाते हैं। पहली बार हाई टाइड में भी वेनिस का विख्यात सेंट मार्क स्क्वायर पानी में नहीं डूबता, कानफोड़ू अलार्म किसी भी वेनिसवासी को नींद से नहीं जगाते। खतरा टाल दिया गया है, भले समंदर की लहरें पसोपेश में पड़ी हों कि सदियों से जारी उनके कार्यक्रम में बाधा बनने यह कौन आ गया।
साढ़े 5 बिलियन यूरो में वर्ष 2018 तक बनकर तैयार होने वाला प्रोजेक्ट मोजेज के उक्त काम को सिर्फ कल्पना कहकर मत नकारिये, यह वास्तव में 3 मीटर ऊंची लहरों को वैसे ही रोकेगा, जैसा कि इसके बारे में कहा जा रहा है। हाल ही में इसके सबसे टेढ़े और जटिल कार्य 23 हजार टन की कांक्रीट फाउंडेशंस को अंजाम दिए जाने के बाद से इसके बारे में शक वैसे भी नहीं बनते। इसमें प्रत्येक दरवाजा 65 फुट चौड़ा, 65 से 100 फुट लंबा और 300 टन का है।
आम तौर पर यह पानी पर अदृश्य सा तैराता रहेगा, लेकिन 40 इंच से ज्यादा पानी बढ़ने पर आगमन के कुल 1.6 किमी क्षेत्र के 3 रास्तों पर तैनात यह दरवाजे पानी को हवा के दवाब के जरिये शहर में घुसने से रोक देंगे। यही नहीं, हर दरवाजे का जुड़वां भी तैयार किया जा रहा है ताकि हर 5 साल में बिना काम में छेड़छाड़ किए दरवाजे को मरम्मत के लिए निकाला जा सके। प्रत्येक दरवाजे पर एक वाटरप्रूफ कैमरा भी लगा होगा, जो गेट के खुलने-बंद होने की सही गतिविधि की जानकारी कंट्रोल रूम को देता रहेगा।
प्रोजेक्ट मोजेज की टीम 2011 से दरवाजों के नियंत्रण कार्य को अंजाम देने के लिए हवा के दवाब, हर समुद्री गतिविधि और नदियों से आने वाले पानी का गणितीय और सांख्यिकीय डाटा जुटाने में लगी है, ताकि जब वक्त पड़े तो किसी भी किंतु-परंतु की गुंजाइश ही ना रहे। शोध का ही फल है कि आज यह टीम अगले 5 साल की बाढ़ की भविष्यवाणी बखूबी कर सकती है और अगले 100 वर्षों तक वेनिस को डूबने से बचाने के लिए ताल ठोंक चुकी है।
क्यों खास है वेनिस :
अगर वेनिस कोई आम शहर होता तो इस दारूण विनाश को बड़ी आसानी से प्रगति की परिणिति कहकर टाल सकते थे, मगर वेनिस तो अतीत और वर्तमान दोनों ही दृष्टियों से बेजोड़ है। समूचे संसार में वेनिस मानव निर्मित सौंदर्य का शायद सबसे बड़ा केंद्र है। सेंट मार्क स्क्वायर से मात्र 1500 मीटर की परिधि में ही 400 से अधिक राजमहल, 120 गिरजाघर और चित्रकला एवं मूर्ति शिल्प के लगभग 16,000 नमूने हैं- अनेक ऐसे कलाकारों द्वारा रचित, जो पाश्चात्य सभ्यता के सबसे विख्यात शिल्पियों में से थे। ये कलाकृतियां सदियों से अद्धितीय रही हैं।
शहर के इस मुख्य गिरजाघर को करीब एक हजार साल पहले बनाया गया था। 9वीं सदी में यहां बने चर्च की शहर में अहम भूमिका रही है। उस दौरान वेनिस पूर्व और पश्चिम का अहम चौराहा हुआ करता था। इसी चर्च में तब राजतिलक हुआ करता था।
150 नहरें, 124 द्वीप, 400 पुल : वेनिस को कर्इ उपनाम मिले हैं, जैसे सिटी ऑफ ब्रिज, द फ्लोटिंग सिटी, सिटी ऑफ कैनल्स, सिटी ऑफ मास्क, द क्वीन ऑफ एड्रियाटिक आदि। करीब 124 द्वीप होने से इसे ‘सिटी ऑन वॉटर’ भी कहते हैं। वेनिस की सबसे बड़ी नहर ग्रांड कैनाल ‘S’ शेप में है और पूरे शहर को 2 भागों में बांटती है। पूरे शहर में 150 नहरे हैं, जिन पर 400 पुल बने हैं। इटली के इस शहर को या तो नावों पर घूमा जा सकता है या फिर पैदल। यही नहीं, वेनिस की एक गली को तो दुनिया की सबसे पतली गलियों में शुमार किया जाता है, इसकी चौड़ाई 53 सेंटीमीटर है।
ऐस बढ़ रहा है पूरी दुनिया पर खतरा :
मनुष्य ने प्रकृति को विज्ञान के सहारे खोजते हुए उसे अपना मित्र तो बना लिया है, लेकिन जरूरत से ज्यादा संसाधनों का दोहन उसे प्रकृति का दुश्मन बनाते जा रही है। चेन्न्ई की बाढ़ को यदि मनुष्य सभ्यता संकेत माने और इटली के वेनिस शहर को अपनी तमाम कोशिशों के बाद भी बचाने में असफलता का द्योतक तो फिर दुनिया के देशों को समझ लेना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन का मुद्दा अस्तित्व से जुड़ा हुआ है।
पर्यावरणविदों का मानना है कि आने वाले समय में कई ऐसे शहर हैं, जहां ऐसी ही बेवजह और बेमौसम बारिश से नुकसान होगा, भारत की बात करें तो इसमें बेगलुरु, मुंबई जैसे शहर अपनी बनावट के कारण डूबने का शिकार होंगे।
इधर खतरों की बात करें तो दुनिया में फिर चक्रवाती तूफानों की संख्या में इजाफा होगा। वहीं भारत में एशिया में भूकंप की मार पूरा हिमालय क्षेत्र देख ही रह है और काठमांडू इसका उदाहरण है, जबकि उत्तराखंड में गंगा की छाती पर बनाए हुए बांध के परिणाम जगने के इंतजार में है, सवाल यहां भारत का ही नहीं है बल्कि पूरी दुनिया का है। क्यों प्राकृतिक तबाही का मतलब केवल बाढ़ ही नहीं है बल्कि भूकंप भी है, जिससे बचना बहुत मुश्किल है।
Source-khabar.ibn.com