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हिन्दू धर्म में क्यों पूज्यनीय है गाय

हिन्दू धर्म में गाय पवित्र व माता क्यों मानी जाती है?

हिन्दू धर्म में गाय को मां की तरह पूजा जाता है।  इस धरती पर पहले गायों की कुछ ही प्रजातियां होती थीं। प्राचीन काल में गाय की एक ही प्रजाति थी। सबसे पहले गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय की नई प्रजातियों का विकास किया उस समय गाय की 8 या 10 नस्लें ही थीं। जिनका नाम कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था। कामधेनु के लिए गुरु वशिष्ठ से विश्वामित्र सहित कई अन्य राजाओं ने कई बार युद्ध किया, लेकिन उन्होंने कामधेनु गाय को किसी को भी नहीं दिया। गाय के इस झगड़े में गुरु वशिष्ठ के 100 पुत्र भी मारे गए थे।

गाय पर निर्भर था भारतीय किसान-

भारत का किसान एक समय गाय पर ही निर्भर था। उस समय  भारतीय किसान कृषि के क्षेत्र में पूरे विश्व में सर्वोपरि था। इसका कारण केवल गाय थी। भारतीय किसान गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त मानते थे। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि वर्षो से सोना उगलती आ रही है, लेकिन हरित क्रांति के नाम पर १९६० से १९८५ तक रासायनिक खेती द्वारा भारतीय कृषि भूमि को एक सडयंत्र के तहत नष्ट कर दिया गया।
इसी का परिणाम है कि आज रासायनिक खेती ने भारत की धरती को बाँझ बना दिया है. अब खेतों में केंसर जैसी बीमारिया उपजती है। गाय के गोबर में गोमूत्र, नीम, धतूरा, आक आदि मिलाकर बनाये गए कीटनाशक द्वारा खेतो को किसी भी प्रकार के कीटनाशक से बचाया जाता था, वर्षों से हमारे किसान यही करते आये थे, लेकिन आधुनिकता के नाम पर अमेरिका और यूरोपीय लोगो ने हमारी सभ्यता, संस्कृति के साथ ही हमारी धरती को भी नष्ट कर दिया।

क्यों पवित्र माना जाता है गाय का दूध-

गाय का दूध व घी अमृत के समान है, वहीं दही हमारे पाचन तंत्र को सेहतमंद बनाए रखने में बहुत ही कारगर सिद्ध होता है, साथ ही दही के सैकड़ों फायदे हैं। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं।
प्राचीन काल में हर संस्कृति में, हर समाज में अकाल पडऩा सामान्य सी बात होती थी। भारतीय संस्कृति में गावों में ऐसी मान्यता थी कि अगर आपके घर में गाय है तो अकाल पड़ने की स्थिति में भी आपके बच्चे जीवित रहेंगे। उसका कारण यह था कि अगर गाय नहीं है तो आपके बच्चे मर जाएंगे, क्यों कि जब एक मां अपने बच्चो को स्तनपान नहीं करा पाती थी और दूसरे भोजन की व्यबस्था नहीं थी तो गाय ही बच्चों के लिए मां की तरह होती थी। उस समय हर कोई किसी न किसी समय भोजन और पोषण के लिए गाय के दूध पर निर्भर था। इसलिए गाय का दूध बहुत पवित्र बन गया, क्योंकि यह जीवन को पोषण देता है।

वैज्ञानिक दृष्टि में गाय का महत्व-

वैज्ञानिकों के अनुसार सभी जीव- जन्तुओं तथा दुग्धधारी पशुओं में केवल गाय ही एक ऐसा पशु है जिसकी 180 फुट लम्बी आँत होती है। जो गाय द्वारा खाए गए भोजन को पचाने में सहायक होता है। गाय की रीढ़ की हड्डी के भीतर सूर्यकेतु नामक नाड़ी होती है जिस पर सूर्य की किरण के स्पर्श से स्वर्ण तत्व का निर्माण होता है गाय के एक क्वंटल (100 किलोग्राम) दूध में एक माशा स्वर्ण पाया जाता है। गाय के दूध व घी का रंग पीला होने का भी यही कारण है। यह पीलापन कैरोटीन तत्व के कारण होता है। कैरोटीन तत्व की शरीर में कमी होने पर ही मुख, फेफड़े तथा मूत्राशय में कैंसर होने के अवसर ज्यादा होते हैं। यह कैरोटीन तत्व गाय के दूध में भैंस के दूध से 10 गुणा ज्यादा होते हैं। एक बात और जिसे वैज्ञानिकों से शोध किया कि भैंस के दूध को गर्म करने पर पौष्टिक तत्व ख़त्म हो जाते हैं जबकि गाय के दूध को गर्म करने पर वह ख़त्म नहीं होते।

वैज्ञानिकों ने गाय के सींगों का आकार पिरामिड की तरह होने के कारणों पर भी शोध किया और पाया कि गाय के सींग शक्तिशाली एंटीना की तरह काम करते हैं और इनकी मदद से गाय सभी आकाशीय ऊर्जाओं को संचित कर लेती है और वही ऊर्जा हमें गौमूत्र, दूध और गोबर के द्वारा प्राप्त होती है। इतना ही नहीं शोध से यह भी पता चलता है कि गौमूत्र में कारबोलिक एसिड होता है जो कि कीटाणुनाशक होता है तथा शुद्धता एवं स्वच्छता बढ़ाता है। इसके अलावा भी अनेक परीक्षणों से पता चला है कि गौमूत्र में नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिक एसिड, पोटेशियम, सोडियम तथा लैक्टोज आदि तत्व होते हैं जो मनुष्य के शरीर को हष्ट- पुष्ट बनाते हैं। गाय के गोबर तथा मूत्र को मिलाने से प्रोपलीन ऑक्साइड गैस बनती है जो बरसात लाने में सहायक मानी जाती है और एक दूसरी गैस इथलीन ऑक्साइड भी पैदा होती है जो ऑपरेशन थियेटर में काम आती है।

नेशनल रिसर्च इंस्टिट्यूट, करनाल (हरियाणा) से प्रकाशित एक आलेख में गाय के घी का वैज्ञानिक विश्लेषण बताया गया है जिसके अनुसार इस घी में वैक्सीन एसिड, ब्युटिक एसिड, वीटा कैरोटीन जैसे तत्व पाये जाते हैं जो शरीर में पैदा होने वाले कैंसरीय तत्वों से लड़ने की क्षमता रखते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा यह भी माना गया कि गाय के 10 ग्राम घी को दीपक में जलाने, गोबर के जलते उपलों पर डालने अथवा यज्ञ में आहुति डालने से लगभग एक टन प्राण वायु उत्पन्न होती है तथा उससे वायुमंडल में एटोमिक रेडिएशन का प्रभाव काम हो जाता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भोपाल में 1984 में यूनियन कार्बाइड कारखाने से गैस रिसाव के समय देखने को मिला। जिन घरों में गाय के गोबर, मूत्र, दूध व घी का प्रयोग था वहां गैस का प्रभाव काम पाया गया था।

गाय के दूध का रासायनिक विश्लेषण करने पर उसमे 87.3 %पानी, 4 % प्रोटीन्स, 4 % वसा, 4 %कार्बोहाइड्रेट्स, 0. 7 %मिनरल्स तथा ऊर्जा यानी कैलोरी 65 % पायी जाती है। इसके अलावा भी कैल्शियम, सोडियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, क्लोरीन, लौह तत्व व विटामिन ए, बी, सी, डी भी पाये जाते हैं तथा विटामिन ए की अधिकता होती है जो शरीर को सशक्त बनाने में अधिक सहायक है।

रशियन वैज्ञानिकों द्वारा भी अपने शोध में पाया गया कि गाय के दूध और घी में strontian नामक तत्व है जो अणु विकरण का प्रतिरोधक है। गाय के दूध में सेरीब्रोसाडस तत्व है जो बुद्धि के विकास में सहायक है। गाय का दूध शीतल होने के कारण पित्त विकार, अल्सर, एसिडिटी तथा दाह रोगों में लाभदायक, सुपाच्य, माताओं, दुर्बल, वृद्ध, बीमार व बच्चों के लिए गुणकारी है। जलोदर नामक बिमारी से ग्रस्त व्यक्ति के लिए पानी पीना सख्त मना होता है मगर वह भी गाय का दूध पीकर स्वस्थ हो सकता है।

क्या कहते हैं हमारे शास्त्र-

हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि-

या लक्ष्मीः सर्वभूतानां सर्वदेवष्ववस्थिता।
धेनरूपेण सा देवी मम पापं व्यपोहतु।

नमो गोभ्यः श्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य एव च।
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्रोभ्यो ममो नमः।

अर्थात जो सब प्रकार की भूति, लक्ष्मी है, जो सभी देवताओं में विद्यमान है, वह गौ रूपिणी देवी हमारे पापों को दूर करे। जो सभी प्रकार पवित्र है, उन लक्ष्मी रुपी सुरभि कामधेनु की संतान तथा ब्रह्मपुत्री गौओं को मेरा बार बार नमस्कार। वेदों में पृथ्वी को भी गाय रूपा माना गया है। गौ के श्रंगों के मध्य में ब्रह्मा, ललाट में भगवान शंकर, दोनों कानो में अश्विनी कुमार, नेत्रों में चन्द्रमा और सूर्य,तथा कक्ष में साध्य देवता, ग्रीवा में पार्वती, पीठ पर नक्षत्र गण, ककुद् में आकाश,गोबर में अष्टैश्वर्य संपन्न तथा स्तनों में जल से परिपूर्ण चारों समुद्र निवास करने की बात कही गयी है। वाल्मीकीय रामायण के अनुसार भी गाय को समृद्धि, धन-धान्य एवं सृष्टाति सृष्ट भोज्य पदार्थों की प्रदाता बताया गया है।

ऋग्वेद 8/101/15 में कहा गया है —

माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य­ नाभिः।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागार्दितिम वधिष्ट।

अर्थात गाय शत्रुओं को रुलाने वाले वीर मरुतों की माता, वसुओं की कन्या, अदिति की पुत्री और अमृत का तो मानो केंद्र ही है। इसलिए विवेकी मनुष्यों को निरपराध तथा अवध्य गाय का वध नहीं करना चाहिए। गाय धर्म एवं संस्कृति का प्रतीक है। वेदों ने उसे श्रद्धा भाव से नमन किया है-

रुपायाध्ये ते नमः। (अथर्ववेद 10/10/1)

त्याग मूर्ति होने के कारण देवी भागवत में उसे सर्वोत्तम माता कहा गया है –

नमो देव्यै महादेव्यै सुरभ्यै च नमो नमः।
गवां बीजस्वरूपायै नमस्ते जगदम्बिके। (9/49)

महाभारत के ‘अनुशासन पर्व” भीष्म पितामह महाराज युधिष्ठर को गाय महामात्य सुनाते हुए कहते हैं –

मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः।

वह सभी सुखों वाली है, सभी प्राणियों की माता है।

आदिशंकराचार्य जी ने ‘ब्रह्मोपलब्धि’ में सर्वोत्तम साधन माना है–

गावः पवित्रं परमं गावो मांगल्यमुत्तमम्।
गावः स्वर्गस्य सोपानं गावो धन्याः सनातनाः।

महर्षि चवन की गोनिष्ठा का प्रतीक नहुष को दिया गया यह उपदेश —-

गाबो: लक्ष्म्याः सदामूलं गोषुपाप्मा न विद्यते।
अन्नमेव सदा गावो देवानां परमं हविः।

गावः स्वर्गस्य सोपानं गावः स्वर्गोsपि पूजिताः।
गावः कामदुहो देव्यो नान्यात किंचित परं स्मृतम्।

महाकवि कालिदास ने भी “रघुवंश” में कहा है –

न केवलानाम् पयसा प्रस्तिमवेही मां कामदूधां प्रसन्नाम्। (2/63)

अन्य मतों में गाय के प्रति धारणा-

मुस्लिम धर्म ग्रन्थ कुरआन में गाय का वर्णन-

पैगम्बर मोहम्मद ने “नाशियात हादी” ग्रन्थ में कहा है “ गाय का दूध और घी तुम्हारी तंदरुस्ती के लिए जरुरी है, किन्तु गाय का गोश्त नुक्सान करने वाला है।
“हदीस” में कहा गया है कि गाय के गोस्त से बीमारियां होती हैं तथा गाय का दूध दवाई व घी रसायन है।

मुल्ला महम्मद वाकर हुसैनी (महारुल अनवर) का कहना है कि “ गायों को मारने वाला, फलदार दरख़्त काटने वाला और शराब पीने वाला कभी बख्शा नहीं जाएगा।

हजरत आयशा (मुहम्मद साहब की पत्नी) ने कहा कि –” रसूल अल्लाह ने फरमाया है कि गाय का दूध शिफ़ा है और घी दवा व उसका माँस भयंकर मर्ज है। अतः उस पर छुरी नहीं चलायी जानी चाहिए।

पवित्र  कुरआन में कहा गया है कि –

अल्लाह ने आदम को आदेश देते हुए कहा —तुम और तुम्हारी पत्नी जब स्वर्ग में थे, उस समय हमने तुम्हे फल खाने के लिए दिए। और तुम अब जहाँ भी रहोगे वहां भी तुम्हे फल ही खाने को देंगे। (2 . 35 )

तुम्हारे रहने के लिए यह धरती बनाई है और सिर पर आकाश रूपी छत तैयार की है तथा आकाश से पानी बरसाया है इसलिए कि तुम्हारे खाने के लिए फल पैदा हों सकें।“(2/22)

सभी धर्मों ने गाय के महत्त्व को जाना समझा और अपने अनुयायियों से उसका करने के लिए भी कहा। आज विश्व में अनेक देश हैं जहाँ गाय के काटने पर मृत्यु दंड का भी प्रावधान बताया जाता है।

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है, कि गाय को माता कहने का कारण हमारे ऋषि- मुनियों तथा तात्कालिक वैज्ञानिकों की शोध के पश्चात गाय की उपयोगिता ही है। हमारे शास्त्रों में गाय को वैतरणी पार करने वाली भी कहा गया है उसका कारण  गाय कभी भी पानी में नहीं बैठती, न ही ठहरती है। इतना ही नहीं गंदे पानी तालाब की तरफ भी गाय नहीं जाती है। अगर कहीं ज्यादा पानी में गाय फंस जाए तो वह तैरती हुयी सूखे स्थान की तरफ चली जाती है। हमारे शास्त्रों में गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी पार करने की बात भी शायद इसी खोज का परिणाम है। शास्त्रों के अनुसार कुछ पशु पक्षी ऐसे है जो आत्मा के विकास यात्रा के अंतिम पड़ाव पर होते हैं उनमे से गाय भी एक है।  इसके बाद उस आत्मा को मनुष्य योनि में आना होता है। गाय की योनि में होने का अर्थ है- विश्राम, शांति और प्रार्थना। आप कभी किसी गाय या बैल की आँखों में  देखेंगे तो आपको उसकी निर्दोषता नजर आएगी। आपको उसमे देवी या देवता होने का आभास होगा।

कामधेनु

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