विवाह मात्र रस्म नहीं, यह दो लोगों के परस्पर मन को जोड़ने वाला तार है इसलिए यदि दांपत्य जीवन की लय-ताल में तालमेल हो तो सरगम सुमधुर बन जाती है। वहीं अगर मन मिलने को राजी न हों तो कर्कशता जिंदगी भर का साथ हो जाती है। दांपत्य जीवन से जुड़ी परंपराएं व त्योहार आपसी प्रेम तथा सामंजस्य को बल देते हैं। तो यह त्योहार केवल प्रतीक क्यों बनें? क्यों न हम इनकी गहराई को दांपत्य जीवन की नींव बना लें और गृहस्थी के आंगन में हमेशा चौथ के चांद को चमकता देखें।
सगाई, सिंदूर, मंगलसूत्र, संबंधियों की उपस्थिति में सात फेरों व सात वचनों द्वारा सात जन्म तक पति-पत्नी बने रहने की शपथ लेने वाले वर-वधू का दांपत्य जीवन रूपी संगीत कुछ ही दिनों में क्यों बेसुरा हो जाता है? क्यों कुछ जोड़े शादी के सभी बंधन व कसमें तोड़कर तलाक लेने पर उतारू हो जाते हैं? यदि ऐसे टूटते रिश्तों का विश्लेषण किया जाए तो एक बात सामने आती है। वैचारिक मतभेद एवं एक-दूसरे की भावनाओं का आदर न करना यहां यह सबसे बड़ी कमी होती है।
जरूरी है कि पति-पत्नी आपस में समझ को विकसित करें। आखिर ये आप दोनों के जीवन का प्रश्न है। किसी एक त्योहार पर ही एक-दूसरे के प्रति आस्था का प्रदर्शन करने के बजाय हर दिन उस त्योहार सा मानकर अपने रिश्ते को सार्थकता प्रदान करें।
यदि आप अपने दांपत्य जीवन का संगीत सुरीला बनाना चाहते हैं, तो इन विशेष सात बातों को जीवन में उतारें।
1. सामंजस्य :
गुण-अवगुण हर इंसान में पाए जाते हैं। भले ही कोई इंसान कितना भी अच्छा क्यों न हो उसमें भी बुराई हो सकती है। अपने जीवनसाथी की कमियों, बुराइयों को लेकर विवाद करना दांपत्य जीवन में दरार पैदा करता है। इसलिए जीवनसाथी की कमियों की बजाए अच्छाइयों पर ध्यान दें, और प्यार से समझाकर बुराइयां दूर करने का प्रयत्न करें। विचारों एवं स्वभावों का उचित सामंजस्य ही सुखी वैवाहिक जीवन की धुरी है।
2. सहनशीलता :
जब किसी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है तो उसकी सहनशीलता का बांध टूट जाता है। ऐसे में वह ऐसा कुछ कर बैठता है जो उसे नहीं करना चाहिए। इसलिए पति या पत्नी द्वारा गलती करने पर असहिष्णु होने की बजाए उनके स्थान पर खुद को रखकर देखिए कि यदि आप उस जगह (परिस्थिति) होते तो क्या करते? यह सोच जहां आपको सहनशील बना देगी वहीं आप व्यर्थ के तनाव से भी बच सकते हैं।
3. संवाद :
पति-पत्नी में झगड़ा होने पर पति-पत्नी अक्सर बोलना बंद कर देते हैं। वहीं कुछ पत्नियां रूठकर मायके चली जाती हैं। ऐसा करने से मन में अनेक शंकाएं जन्म ले लेती हैं। रिश्तों में दरार आती है सो अलग। इसलिए मनमुटाव या तकरार होने पर बातचीत द्वारा समस्या का हल निकालने का प्रयास करें एवं अपनी गलतियों को स्वीकारना भी सीखें। जहां प्यार होता है वहां तकरार होना लाजमी है परंतु विवाद में भी संवाद कायम रखें।
4. समय :
आजकल तलाक के कारणों में एक मुख्य कारण एक-दूसरे को समय न दे पाना भी है। पति-पत्नी करियर या भौतिकता में इतना खो जाते हैं कि एक-दूसरे को समय ही नहीं दे पाते और यहीं से रिश्तों में शिथिलता आने लग जाती है। इसलिए काम से फुर्सत निकालकर एक-दूसरे के साथ कुछ लम्हें जरूर बिताएं या कहीं घूमने जाएं। इससे जहां एक-दूसरे के दिल की बातें जानने का अवसर मिलेगा वहीं रिश्तों में नयापन, अपनापन एवं प्रगाढ़ता भी आती है।
5. सुझाव :
अक्सर हर इंसान की एक फितरत होती है कि घर, ऑफिस हर जगह प्रत्येक कार्य अपने मन के अनुरूप हो। जब मनोनुकूल कार्य नहीं होता तो वह तकरार करने लग जाता है। इसलिए पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे से अपनी बात मनवाने की अपेक्षा सुझावात्मक रूप में कहें कि अमुक कार्य यदि ऐसे किया जाए तो कैसा रहेगा। ऐसा करने से जहां आप मनमुटाव व तकरार से बच सकते हैं वहीं आपसी परामर्श द्वारा कार्य करने से अच्छे परिणाम भी मिल सकते हैं।
6. सहयोग :
किसी भी व्यक्ति के साथ तालमेल करने में अक्सर हमारा इगो बाधक बनता है कि मैं उससे पहले बात क्यों करूं? यह काम मैं क्यों करूं? यह तो उसका (पति/पत्नी का) काम है आदि पति-पत्नी एक दूजे का सुख-दुख बांटने के लिए होते हैं तो आपस में सहयोग करने में कभी पीछे न रहें। पति पर ऑफिस के कार्यों का बोझ आने पर पत्नी यथासंभव सहयोग कर सकती है। वहीं घर के कामकाज में यदि पति, पत्नी की मदद करे तो इससे प्यार बढ़ता है आपसी सहयोग से कठिन काम आसान भी हो जाते हैं।
7. सराहना :-
प्रशंसा शब्द भले ही छोटा हो परंतु आप जिसकी तारीफ करते हैं, उससे एक ओर उसकी कार्यकुशलता बढ़ती है। वहीं संबंधों में मधुरता भी आती है। इसलिए अच्छा कार्य करने पर प्रशंसा करने में कभी भी कंजूसी न करें। इनके अलावा शादी की सालगिरह, जन्मदिन पर एक-दूजे को गिफ्ट देना न भूलें, आपस में पूर्ण विश्वास करें शक को कोई जगह न दें। इस प्रकार उक्त सात बातों (सुरों) को अपने जीवन में उतारकर आप अपने दांपत्य जीवन की सरगम को सुरीला बना सकते हैं।