गामा पहलवान का जन्म एक कुश्ती-प्रेमी मुस्लिम परिवार में 1880 में हुआ। अमृतसर पंजाब में पैदा हुए गामा कश्मीरी ‘बट’ परिवार के ‘पहलवान मुहम्मद अज़ीज़’ के पुत्र थे। उनका जन्म का नाम ‘ग़ुलाम मुहम्मद’ था।
जब गामा 6 वर्ष के थे, तो उनके पिता मोहम्मद अजीज बक्श का देहांत हो गया था जो कि एक प्रसिद्ध पहलवान थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद, गामा पहलवान की देखभाल उनके नाना और नून पहलवान ने की थी। नून पहलवान की मृत्यु के बाद उनके चाचा इदा ने उनकी देखभाल की और उन्होंने ही गामा पहलवान को कुश्ती में पहली बार प्रशिक्षण दिया।
उनकी रग-रग में कुश्ती का खेल समाया हुआ था। गामा और उनके भाई ‘इमामबख़्श’ ने शुरू-शुरू में कुश्ती के दांव-पेच पंजाब के मशहूर ‘पहलवान माधोसिंह’ से सीखने शुरू किए। दतिया के महाराजा भवानीसिंह ने गामा और उनके छोटे भाई इमामबख़्श को पहलवानी करने की सुविधायें प्रदान की।
सन 1888 में, दस वर्ष की उम्र में ही गामा ने जोधपुर, राजस्थान में कई पहलवानों के बीच शारीरिक कसरत के प्रदर्शन में भाग लिया और ‘महाराजा जोधपुर’ ने गामा को उनकी अद्भुत शारीरिक क्षमताओं को देखते हुए पुरस्कृत किया।
गामा पहलवान का खान-पान और व्यायाम :
आहार की बात आती है, तो व्यक्ति को अतिरिक्त सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। गामा जैसे पहलवानों ने अपने आहार योजना के मामले में अपने लिए एक खास जगह बनाई है।उनके आहार में 7.5 लीटर दूध, छह मुर्गियां और एक पाउंड से अधिक कुचले हुए बादाम के पेस्ट को टॉनिक पेय में शामिल किया गया था।
गामा पहलवान एक मजबूत व्यक्ति की परिभाषा थे – उन्होंने 50 वर्षों में एक भी मुकाबला नहीं हारा, हर दिन 5,000 स्क्वैट्स और 3,000 पुश-अप्स किए। गामा पहलवान ने 1902 में 1,200 किलोग्राम वजन का एक पत्थर उठाया जब वह 20 साल के थे। पत्थर अब बड़ौदा संग्रहालय में प्रदर्शित है और इसे स्थानांतरित करने के लिए 25 लोगों और एक मशीन की आवश्यकता थी।
उनकी विरासत ऐसी थी कि हसली नामक एक डोनट के आकार का व्यायाम डिस्क, जिसका वजन 100 किलोग्राम था, जिसका उपयोग उन्होंने स्क्वाट और पुशअप्स करते समय किया था, पटियाला में राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) संग्रहालय में प्रदर्शित है।
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करियर की शुरुआत:
गामा युवावस्था में थे और उनके सामने आने वाला हर पहलवान धूल चाटता था। 1895 में उनका सामना देश के सबसे बड़े पहलवान रुस्तम-ए-हिंद रहीम बक्श सुल्तानीवाला से हुआ। रहीम की लंबाई 6 फुट 9 इंच थी, जबकि गामा सिर्फ 5 फुट 7 इंच के थे लेकिन उन्हें जरा भी डर नहीं लगा।
गामा ने रहीम से बराबर की कुश्ती लड़ी और आखिरकार मैच ड्रॉ हुआ। इस लड़ाई के बाद गामा पूरे देश में मशहूर हो गए और यह उनके मंत्रमुग्ध कर देने वाले करियर की शुरुआत थी।
साल-दर-साल गामा की ख्याति बढ़ती रही और वह देश के अजेय पहलवान बन गए। गामा ने 1898 से लेकर 1907 के बीच दतिया के गुलाम मोहिउद्दीन, भोपाल के प्रताब सिंह, इंदौर के अली बाबा सेन और मुल्तान के हसन बक्श जैसे नामी पहलवानों को लगातार हराया। 1910 में एक बार फिर गामा का सामना रुस्तम-ए-हिंद रहीम बक्श सुल्तानीवाला से हुआ। एक बार फिर मैच ड्रॉ रहा। अब गामा देश के अकेले ऐसे पहलवान बन चुके थे, जिसे कोई हरा नहीं पाया था।
विश्व चैंपियन को दी चुनौती:
दुनिया के कई प्रसिद्ध पहलवानों को हराने के बाद, गामा ने उन लोगों के लिए एक चुनौती जारी की जो “विश्व चैंपियन” के शीर्षक का दावा करते थे। जिसमें जापान का जूडो पहलवान ‘तारो मियाकी’, रूस का ‘जॉर्ज हॅकेन्शमित’, अमरीका का ‘फ़ॅन्क गॉश’ शामिल थे।
गामा पहलवान की हाइट कम होने की वजह से उन्हें इंटरनेशनल चैंपियनशिप में शामिल नहीं किया गया। इसके बाद उन्होंने वहां के पहलवानों को अपनी तरफ से खुली चुनौती दी थी कि वे किसी भी पहलवान को 30 मिनिट के अंदर पछाड़ सकते हैं लेकिन किसी भी पहलवान ने उनकी चुनौती स्वीकार नहीं की।
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ब्रूस ली भी थे प्रेरित:
गामा पहलवान ने कई खिताब जीते, जिसमें वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियनशिप और वर्ल्ड कुश्ती चैम्पियनशिप भी जीता, जहां उन्हें ‘टाइगर’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। बताया जाता है कि उन्होंने मार्शल आर्ट आर्टिस्ट ब्रूस ली को भी चैलेंज किया था। जब ब्रूस ली गामा पहलवान से मिले तो उन्होंने उनसे ‘द कैट स्ट्रेच’ सीखा, जो योग पर आधारित पुश-अप्स का वैरिएंट है। इसके अलावा 20वीं शताब्दी की शुरुआत में गामा पहलवान रुस्तम-ए-हिंद भी बने।
वे इतने कुख्यात थे कि 1922 में जब वे भारत आए तो प्रिंस ऑफ वेल्स ने उनसे मिलने की जिद की। तब वे उन्हें चांदी की गदा भेंट करते है। गामा की लोकप्रियता इतनी थी कि ब्रूस ली भी उनसे प्रेरित थे।भारतीय कुश्ती-कला की विजय पताका को विश्व में फहराने का श्रेय केवल गामा को ही प्राप्त है।
गामा पहलवान का निधन:
अपने अंतिम दिनों में, गामा को एक पुरानी बीमारी का सामना करना पड़ा और अपने इलाज के लिए भुगतान करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। उनकी मदद करने के लिए, उद्योगपति और कुश्ती प्रशंसक जीडी बिड़ला ने ₹2,000 और ₹300 की मासिक पेंशन का दान दिया।
महाराजा पटियाला और बिड़ला बन्धुओं ने उनकी सहायता के लिए धनराशि भेजनी शुरू की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 22 मई, 1960 लाहौर, पाकिस्तान को ‘रुस्तम-ए-ज़मां’ गामा मृत्यु से हार गए। गामा मरकर भी अमर है।
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