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भोपाल गैस त्रासदी - अभी भी ताजे हैं जख्म 2

भोपाल गैस त्रासदी – अभी भी ताजे हैं जख्म

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 31 साल पहले 3 दिसंबर का सूरज हजारों मौतों का मातम करता हुआ उदित हुआ था। इस शहर में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी को तीन दशक से अधिक समय बीत गया लेकिन उससे मिले जख्म आज भी हरे हैं। यह लोगों के अवचेतन मन में पैठ किए हुए ऐसे जख्म हैं जो पीछा नहीं छोड़ते। उस समय युवा रहे लोग अब बूढ़े हो चले हैं लेकिन गैस त्रासदी के खौफनाक अनुभव मन में बैठकर उनकी उम्र के साथ सफर करते रहे हैं।

रात में अक्सर डर जाती हैं रईसा बी

भोपाल के पुतलीघर इलाके की रईसा बी (55) को रात में होने वाली कोई भी हलचल डरा जाती है और 31 वर्ष पहले की एक रात की याद ताजा हो जाती है, जब लोग बदहवास भागे जा रहे थे। हर तरफ चीत्कार सुनाई दे रही थी। एक तरफ जहां सड़कों पर लोग बेहोश पड़े थे, तो कई स्थानों पर शव भी नजर आ रहे थे। यूनियन कार्बाइड संयंत्र से दो दिसंबर,1984 की रात में रिसी जहरीली गैस ने तीन हजार लोगों को मौत की नींद सुला दिया था और हजारों लेागों को बीमारियां देकर तिलतिल करके मरने को छोड़ दिया। आज भी हजारों लोग जहरीली गैस से मिली बीमारियां ढोए जा रहे हैं और मौत का इंतजार कर रहे हैं।

हाथ ठेलों पर ढोई जा रही थीं लाशें

रईसा बी कहती हैं कि परिवार के सदस्य बाहर के कमरे में और वे भीतर के कमरे में सो रही थीं। रात में ऐसा लगा जैसे किसी ने मिर्ची छोड़ दी हो। किसी को खांसी आ रही थी तो किसी को आंखों में जलन होने लगी थी। कुछ देर बाद ऐसा लगा जैसे सड़कों पर सैकड़ों लोग भागे जा रहे हों। आवाजें डरा देने वाली थीं। उनके घर के पीछे कुछ खुला हिस्सा था लिहाजा उन्होंने वहां पहुंचकर अपनी जलन और खांसी को कम किया। वे बताती हैं कि देर रात से लोगों के घर छोड़कर भागने का शुरू हुआ सिलसिला सुबह तक चलता रहा, कोई पैदल भागे जा रहा था, तो किसी ने बैलगाड़ी का सहारा लिया। अस्पताल में इलाज करने वालों की भारी भीड़ थी तो शवों का अंबार लगा हुआ था। इतना ही नहीं हाथ ठेलों पर शवों को ढोया जा रहा था।

जान बचाने के लिए बेटे को छोड़कर भाग गई थीं हाजरा

कारखाने के आसपास के इलाके की बस्तियों आज भी अपनी बर्बादी की कहानी कहती है। बुजुर्गो की कराह, अपंग बच्चे और जमीन में घिसट कर चलने की लाचारी हर बस्ती का हिस्सा बन गई है। एक तरफ उन्हें इलाज नहीं मिल रहा है तो दूसरी ओर जो मुआवजा मिला है, वह उनके जख्मों पर नमक डालने जैसा है। संयंत्र के सामने की तरफ है जेपी नगर, और इसी इलाके में सबसे ज्यादा लोगों को नुकसान हुआ था। इसी बस्ती में रहने वाली हाजरा बताती है कि हादसे की रात का मंजर आज भी उनकी आंखों के सामने आ जाता है तो उस रात उन्हें नींद नहीं आती है। वे बताती हैं हादसे की रात अपने एक बेटे को घर में सोता हुआ छोड़कर एक अन्य बेटे और पति के साथ जान बचाने भागी थी, कुछ देर बाद जब उन्हें बेटे की याद आई तो वापस घर में आकर देखा तो वह बेहोश पड़ा था।

शाहजहांनी पार्क में बिखरे हुए थे शव

इस्लामपुर के वसीम अहमद हादसे की रात को याद कर अब भी डर जाते है, वे बताते हैं कि रात के समय अपनी दुकान पर थे उसी समय लिली सिनेमा घर से फिल्म का शो छूटा था। वहीं ठंड होने के साथ शादी समारोह चल रहा था। इसी दौरान उनकी आंखों में जलन हो रही थी, तब उन्हें लगा कि शादी समारोह में बन रही सब्जी में ज्यादा मिर्ची का छौंक लगा दिया, मगर यह जलन बढ़ती गई।

वसीम बताते हैं कि जब वे देर रात को शाहजहांनी पार्क पहुंचे तो वहां शव बिखरे पड़े थे, वहीं कई लोग अपनी जान बचाने की जद्दोजहद में लगे थे, किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें। कुछ लोग रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड की तरफ भागे जा रहे थे। उनके एक परिचित नशे में थे, और गैस से हुई जलन से उन्हें भी लग गया कि कुछ गड़बड़ है और वे ट्रेन से लटक कर होशंगाबाद चले गए थे।

अंतिम संस्कार के लिए कम पड़ गई जगह

इस हादसे के शिकार बने लोग बताते हैं कि तीन दिसंबर को हंसता खेलता भोपाल मातम में बदल गया था, कहीं जनाजे निकल रहे थे तो कहीं अर्थियां निकल रही थी। दफनाने से लेकर अंतिम संस्कार का क्रम कई दिनों तक चलता रहा, और हाल यह हुआ कि अंतिम संस्कार के लिए जगह भी कम पड़ गई थी।

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