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चलने की क्षमता खो देने के बाद भी कामयाबी की राह पर दौड़तीं रहीं अत्रेयी निहारचंद्रा 2

चलने की क्षमता खो देने के बाद भी कामयाबी की राह पर दौड़तीं रहीं अत्रेयी निहारचंद्रा

ज़रा याद कीजिए आप जीवन में कितनी बार चलना सीखे होंगे , एक बार , जी हां बचपन में हम सभी चलना सीखते हैं और अपने कमज़ोर कदमों में जान डालकर उसे मजबूती के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ा देते हैं । लेकिन आज आपको एक ऐसी शख्सियत के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने एक बार नहीं , दो बार नहीं बल्कि अपने जीवनकाल में तीन बार चलना सीखा और अपनी कामयाबी के पथ पर इस तरह दौड़ीं की सफलता उसके कदमों को चूमने लगी ।

किसी ने सच ही कहा है कि यदि जीवन में मुश्किल दौर का सामना आपने नहीं किया तो आपने फिर जीवन के असली मर्म को समझा ही नहीं है । ये मुश्किल दौर दरअसल हमें अपने भीतर की दृढ़इच्छाशक्ति को मापने में सहायक होते हैं और बुरे वक्त के इस इम्तेहान में अगर हम पास हो जाते हैं तो फिर सफलता का मूलमंत्र हमें प्राप्त हो जाता है जो किसी भी दुरूह परिस्थिति में हमेशा हमारे साथ होता है ।

कल्पना से परे है कि एक लड़की के जीवन में दो बार ऐसी दुर्घटना घटती है जो उसको एक स्थान पर बैठने को विवश कर देती है और वही लड़की अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से दुर्घटनाओं के दंश को अपनी सफलता से कोसों दूर पीछे छोड़ आती है । आइए जानते हैं अत्रेयी निहालचंद्रा को जिसने अपने पैरों से , जी हां आपने सही पढ़ा , अपने पैरों से अपनी किस्मत लिखी है । ये कहानी है बंगलुरू स्थित रिवाइज़ डायट की संस्थापक अत्रेयी की जिन्होंने अपना जीवन समाज के उन लोगों के प्रति समर्पित कर दिया है जो खान-पान संबंधी समस्याओं से ग्रसित हैं और जिनका वज़न उनके लिए समस्या बना हुआ है ।

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अत्रेयी की महत्वाकांक्षी यात्रा 17 साल की छोटी सी उम्र में ही शुरू हो जाती है । पिता का सहारा बनना उनका सपना था और इसी सपने को साकार करने की पहल में उन्होंने छात्र जीवन में ही अपने पिता के प्रोनिएक फोर्ज एंड फ्लेंज्स नामक कंपनी में काम करना शुरू कर दिया था । पिता का संबल बन अत्रेयी उनके व्यापारिक गतिविधियों को भलीभांति संभाल रहीं थीं । लेकिन होनी को कौन टाल सकता था , अत्रेयी जब 23 साल की थीं तो वो एक दर्दनाक दुर्घटना का शिकार हो गईं जिसकी वजह से उनके घुटने के पास लिगामेंट डैमेज हो गया । चोट काफी गंभीर थी और डॉक्टर्स की सलाह व तमाम इलाज का निष्कर्ष ये निकला कि अब अत्रेयी चल सकने में असमर्थ हो गईं थीं और उन्हें इसी वजह बिस्तर पर ही आराम करने की सलाह दी गई ।

अंग्रेजी में कहा जाए तो वो कंप्लीट बेड रेस्ट करने को मजबूर हो गईं थीं । युवा अत्रेयी के लिए यह एक ऐसा निराशाजनक दौर था जिसने उन्हें बुनियादी जरूरतों के लिए भी दूसरों पर आश्रित कर दिया था । उन्हें चलने के लिए या खड़े होने के लिए भी मदद की जरूरत पड़ने लगी थी । वक्त के इस बुरे दौर से उबरना कोई आसान कार्य न था लेकिन जुझारू प्रवृत्ति की अत्रेयी ने इस बुरे वक्त को भी जैसे मात देने की ठान सी ली थी । वो घर के ही नज़दीक ही एक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र से जुड़ गईं थीं जहां पर उनका इलाज किया जा रहा था । यहां पर न सिर्फ अपना पूर्ण इलाज करवाया बल्कि 14 महीने तक उन्होंने प्रकृति के विज्ञान व उसके गूढ़ रहस्यों को भी जाना ।

कहते हैं न कि जब किसी कार्य को करने की ठान ली जाए तो खुदा भी आपकी मदद करने को विवश हो जाता है और कुछ ऐसा ही हुआ अत्रेयी के साथ भी । यहां से पूरी तरह से स्वस्थ होकर अत्रेयी अपने घर वापस आ गईं । कुछ दिनों बाद उन्होंने आईाईएम बंगलुरू में एडमिशन लिया और एनएसआर से जुड़ गईं । कोर्स कंप्लीट किया तो फिर से अपने पैरों पर खड़े होने की चाह उनके अंदर उठने लगी और उन्होंने आईटी इंडस्ट्री में नौकरी के लिए एप्लाई किया । आईटी इंडस्ट्री में एक अदद नौकरी के लिए उन्हें दर-दर भटकना पड़ा । बकौल अत्रेयी ‘सच तो ये है कि मेरे पिता के मित्र , जिनकी बंगलुरू में कई कंपनियां हैं , वह भी मुझे नौकरी नहीं दे सके ‘ ।

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नौकरी नहीं मिलने पर वो निराश नहीं हुईं और वापस आईआईएम बंगलुरू आ गईं जहां पर एक रिसर्चर के तौर पर उन्होंने काम करना शुरू कर दिया । इसके साथ ही उन्होंने यहीं से पीएचडी करने की तैयारी भी शुरू कर दीं । अत्रेयी के वैवाहिक जीवन की मधुर शुरुआत भी इसी जगह से शुरू होती है । यह किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं थी । अपने होने वाली पती से उनकी आईआईएम बंगलुरू में ही पहली मुलाकात हुई थी । दोनो में ही प्रेम और एक दूसरे के प्रति सम्मान गहरा था जो बाद में शादी के बंधन में जा बंधा ।

जीवन में खुशियां रंग बिखेरना शुरू कर दी थीं । अत्रेयी ने बंगलुरू में ही अपना निवास बनाया और पति संग रहने लगीं । वक्त की उपलब्धता और प्रकृति के प्रति रुचि ने अत्रेयी को लिखने की ओर विवश किया और फिर उन्होंने उन्होंने अपना एक फूड ब्लॉग लिखना शुरू किया जिसमें भारतीय मसालेदार व्यंजनों का स्वास्थ्यपरक रूप में प्रयोग लोगों के सामने उन्होंने रखना शुरू कर दिया । रिवाइज़ डायट या संशोधित आहार की उत्पत्ति यहीं से हुई ।

सफलता का कोई पैमाना नहीं होता और न ही कोई सही वक्त । सफलता कर्मठता देखकर स्वयं ही आपके दरवाज़े दस्तक दे देती है और कुछ ऐसा ही हुआ अत्रेयी के फूड ब्लॉग के साथ भी । लोगों ने उनके ब्लॉग को पढ़ना शुरू कर दिया और उन्हें इसका अच्छा रिस्पांस भी मिलना शुरू हो चुका था । आईआईएम बंगलुरू में रिसर्चर के तौर पर उनकी जॉब भी अच्छी चल रही थी साथ ही खुशहाल दांपत्य जीवन , आप आश्वस्त होंगे कि जिस विषम परिस्थितियों का सामना अत्रेयी निहारचंद्रा ने पूर्व में किया था उनका अब अंत हो चुका था लेकिन शायद आप गलत हैं , अत्रेयी के संघर्षों का दौर दरअसल अभी शुरू हुआ था । नियती की क्रूर दृष्टि उनपर एक बार फिर पड़ती है और वह एक बार फिर दुर्घटना का शिकार हो गईं । इसे महज संयोग ही कहा जा सकता है कि इस दुर्घटना में उन्हें वापस उसी घुटने पर चोट लगी जिसमें पहली बार उन्हें चोट लगी थी । मेडिकल रिपोर्ट्स निराशाजनक थीं । पैर की मांसपेशियां कमज़ोर हो चुकी थीं और उन पर किसी भी प्रकार की दवाइयों का असर नहीं हो रहा था । जैसे जैसे समय व्यतीत हो रहा था वैसे वैसे उनका पैर अपनी संवेदना खोता जा रहा था । यह परिस्थिति किसी भी इंसान को अंदर से तोड़कर रख सकती है । उसकी इच्छाशक्ति को विवश्ता में बदल सकती है लेकिन शायद नकारात्मकता जैसा कोई शब्द अत्रेयी की शब्दावली में था ही नहीं । अपने आत्मविश्वास को एक बार फिर से एकत्र करके उन्होंने आईआईएम से अवकाश लेने का फैसला किया । अत्रेयी अपने घर गुजरात वापस गईं और फिर से उसी प्राक़तिक चिकित्सा केंद्र की तरफ रुख किया जहां से उन्हें पहली बार सफलता मिली थी । उन्हें विश्वास था कि उनकी चिकित्सा यहां के डॉक्टर्स बेहतर तरीके से कर सकते हैं और सबसे खास बात ये कि पैसों की तंगी का सामना उन्हें करना पड़ रहा था और बंगलुरू की तुलना में उनका इलाज यहां पर काफी सस्ते में हो सकता था ।

हमेशा ही सकारात्मक सोच रखने के कारण इस बार भी अत्रेयी ने अपने स्वस्थ होने की प्रक्रिया को खुशी के साथ व्यतीत करने का निश्चय किया । अत्रेयी का मानना है कि ‘ घने बादलों के अंधेरे के पीछे प्रायः सूर्य की प्रकाशमयी रोशनी होती है , मुश्किल वक्त में भी हमारे सीखने के लिए काफी कुछ होता है ‘ । गुजरात के इस नैचुरोपैथी सेंटर से उन्हें इस बार भी काफी सकारात्मक सहयोग प्राप्त हुआ । यहां के चिकित्सकों ने उन्हें सर्जरी नहीं करवाने की सलाह दी और उन्हें वज़न कम करने को कहा । चिकित्सकों का मानना था कि उनके पैरों पर शरीर का भार कम से कम पड़ने पर वह जल्द ही ठीक हो सकती हैं । यह बात सुनने में तो काफी अच्छी थी लेकिन टूटी हुई मांसपेशियों व पैर में खत्म होती संवेदनाओं के साथ वज़न कम करना एक चुनौतीपूर्ण काम था । चुनौतियां कई थीं लेकिन उनका सामना भी अत्रेयी को ही करना था । फैसला करना मुश्किल था और डॉक्टर्स की उम्मीद अत्रेयी पर टिकी थी । यह बताना जरूरी न होगा कि अत्रेयी ने फैसला कर लिया था और उन्होंने हल्की कसरत जैसे कि योगा आदि करना शुरू कर दिया । उन्होंने इस दौरान अपने खान-पान को नियमित किया साथ ही एक निश्चित आहार लेने लगीं ।

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जहां चाह , वहां राह । इस मुहावरे के एक एक शब्द को चरितार्थ करती हुईं अत्रेयी निहारचंद्रा ने जैसे नियति को ही चुनौती देनी शुरू कर दी थी और अपने परिश्रम से उन्होंने एक बार फिर से वो कर दिखाया जिसे चमत्कार की संज्ञा देना भी बेमानी लगेगा । वो अपने पैरों पर खड़े हो सकने में समर्थ होने लगीं । धीरे धीरे उनके पैर ने सुधार के संकेत देने शुरू कर दिए । उनमें तेजी से सुधार होने लगा और समय के साथ साथ पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गईं ।

कुछ दिनों के बाद अत्रेयी ने बंगलुरू अपने निवास पर जाने का फैसला किया । मुश्किलों की एक कहानी जब खत्म होती तो दूसरी उनके सामने खड़ी हो जाती थी और इसी क्रम में उनको परिवार से अपेक्षिक सहयोग मिलना बंद हो गया जिसकी वजह से अत्रेयी को फिर से आईआईएम बंगलुरू लौटना पड़ा । उनके स्वास्थ्य के लिए आवश्यक व्यायाम ( एक्सरसाइज) काफी महंगा था और उनके सामने आर्थिक तंगी की समस्या आन पड़ी थी । ऐसे मुश्किल समय में उनके सामने समस्या का हल निकलता नहीं दिख रहा था कि इसी बीच उनके करीबी मित्रों ने उन्हें एक फिटनेस सेंटर खोलने की सलाह दी । अत्रेयी फूड एंड न्यूट्रिएंट विशेषज्ञ थीं और उन्होंने इस पर एक ब्लॉग भी लिखना शुरू किया था साथ ही उन्हें इस कार्य का अनुभव भी था । मित्रों की सहायता से व खुद पर भरोसा करके उन्होंने एक फिटनेस सेंटर बंगलुरू में खोल दिया । और यहां से रिवाइज़ डायट को एक नया आयाम मिला ।

यह कहना अतिरेक न होगा कि ब्लॉग की दुनिया से निकलकर रिवाइज़ डायट अब लोगों के बीच और भी ज्यादा प्रसिद्ध हो चुका था । अत्रेयी कहती हैं कि ‘अपने बढ़े हुए वज़न की चिंता छोड़कर हमें अपने हेल्थी होने की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए । वज़न कम करने की चिंता करना समय और स्वास्थ्य दोनो की ही बरबादी है । उनका कहना है कि – मैं चाहतीं हूं कि लोगों का अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बढ़े । स्वस्थ रहना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है , खाने की अच्छी समझ से , जीवन में धैर्य से और दिमाग की शांति से एक स्वस्थ जीवन को प्राप्त किया जा सकता है ‘ ।

अपने मित्रों के साथ शुरू किए गए रिवाइज़ डायट की सफलता की शुरूआत उस शख्स से होती है जो अपना वज़न दो माह में ही १२ किलो तक करने में सफल । पहले ही क्लाइंट की ये कहानी तब और भी रोचक हो जाती है जब लोगों को ये पता चला कि इन दो महीनों में उसने अपना मनपसंद भोजन जैसे श्वार्मा रोल्स और जंक फूड खाना बिल्कुल भी बंद नहीं किया था । बस यहीं से अत्रेयी ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । धीरे धीरे लोगों के बीच इसकी प्रसिद्धी बढ़ती ही जा रही थी और एक साल के अंदर इसने बंगलुरू शहर में अपनी एक अलग पहचान स्थापित कर ली। इस दरमयान अत्रेयी ने 100 से ज्यादा लोगों की सहायता की जिनमें ज्यादातर महिलाएं थीं।

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वर्तमान में रिवाइ्ज़ डायट देशभर के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए अलग – अलग स्तर पर कार्य कर रहा है । दो साल के अंदर अत्रेयी ने लगभग 200 लोगों को उनके नियमित आहार के साथ उनका वज़न कम करने में सहायता की । अत्रेयी शायद महंगे इलाज का दंश झेल चुकी थीं इसलिए उन्होंने अपने यहां एक माह के लिए 1200 रुपए शुल्क का प्रावधान रखा है । बता दें कि बाजार में उपलब्ध अन्यों की तुलना में यह शुल्क काफी किफायती है ।

अत्रेयी स्वयं प्राकृतिक तरीके से लाभांवित हुई थी्ं और यही कारण है कि वो समाज में प्राकृतिक चिकित्सा को जन जन तक पहुंचाना चाहतीं हैं । खान-पान के स्तर को सुधार कर शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है और खास बात ये है कि आज देश ही विदेशों से लोग भी अत्रेयी के रिवाइज़ डायट का लाभ उठाने आ रहे हैं ।

अत्रेयी निहारचंद्रा का उद्देश्य समाज में ज्यादा से ज्यादा लोगों की सहायता करना है और उनकी इच्छा है कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक रिवाइज़ डायट लेकर पहुंचें । वो हर साल कम से कम 200 लोगों की सहायता करने का लक्ष्य लेकर कार्य कर रहीं हैं । अत्रेयी निहारचंद्रा वर्तमान में न्युट्रिया टाउन में न्युट्रीशियनिस्ट के तौर पर सेवारत हैं और लोगों को निःशुल्क प्रशिक्षण देतीं हैं । यहां पर वज़न कम करने के साथ ही वो स्थायी अथवा दीर्घकालिक रोगों का भी इलाज करतीं हैं।

अत्रेयी फिलहाल फूड एंड न्यूट्रीशियन से एमएससी कर रही हैं । वो अपने नैचुरोपैथी , न्युट्रीशियन व रिवाइज़ फूड जैसे विशिष्ट कार्यों से आने वाले समय में 80000 से भी ज्यादा लोगों को लाभांवित करना चाहती हैं । अपने इस लक्ष्य व सेवाभाव को साकार रूप देने के लिए अत्रेयी इस वक्त फंड एकत्र कर रहीं हैं ।

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अत्रेयी निहारचंद्रा ने अपने जीवन के हर उतार चढ़ाव का सामना किया और अपनी किस्मत स्वयं लिखती गईं । वह किसी विरांगना की भांति हर एक मुश्किलों पर विजय प्राप्त करती चली गईं और एक क्षण के लिए भी अपने आपको निरीह या अबला महसूस होने नहीं दिया । यह साधारण विजय नहीं थी , निश्चय ही यह गौरवांवित कर देने वाली एक जीती जागती कहानी है जिसपर कोई भी फ़क्र महसूस कर सकता है । सलाम है ऐसी जीजिविषा को जिसने हर बार खड़े होकर अपनी अदम्य इच्छाशक्ति का परचम लहराया है ।

 

Source – Yourstory

60 thoughts on “चलने की क्षमता खो देने के बाद भी कामयाबी की राह पर दौड़तीं रहीं अत्रेयी निहारचंद्रा”

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