पंडो जनजाति को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र घोषित किया गया था:
छत्तीसगढ़ के पंडोनगर गांव, जंगलों के बीच राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले, पंडो आदिवासी निवास करते हैं। पंडो जनजाति के रिवाज और परंपरा इनको आम लोगों से अलग करती है।
प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने कार्यकाल के दौरान पंडो जनजाति को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र घोषित किया था और इनके संरक्षण के लिए विशेष नीति बनाने के निर्देश दिए थे। ऐसी तीन जनजातियों को दत्तक पुत्र घोषित किया गया था क्योंकि ये विलुप्त होने के कगार पर थीं।
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महिलाएं दूसरे दरवाजे का उपयोग हमेशा नहीं करती:
कुछ रिवाज तो कई सवाल भी खड़े करते हैं, लेकिन इन लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता। एक ओर जहां महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। वहीं आज भी ये इलाका अंधविश्वासों की जंजीर से जकड़ा हुआ है।
इस गांव में करीब 120 घर हैं। इस गांव के सभी घरों में दो दरवाजे हैं। एक दरवाजे से पुरुष प्रवेश करते हैं तो दूसरे दरवाजे से महिलाएं।
पंडो नगर की इस परंपरा के पीछे भी पंडो जनजाति के लोगों का अलग ही तर्क है। दरअसल, महिलाएं दूसरे दरवाजे का उपयोग हमेशा नहीं करती हैं।
पिछले कई दशकों से चली आ रही है ये परम्परा:
इनका मानना है कि गर्भवती महिलाएं जब बच्चों को जन्म देती हैं या मासिक धर्म के समय वो अपवित्र होती हैं। इस वजह से वे घर में प्रवेश नहीं कर सकती। क्योंकि घर में उनके देवता और पूर्वज निवास करते हैं।
पंडो जनजाति में यह परंपरा पिछले कई दशकों से चली आ रही है। उस दरवाजे के अंदर सिर्फ एक कमरा ही रहता है और उस कमरे में सिर्फ एक बिस्तर रहता है। इस दौरान उन महिलाओं को किसी भी बाहरी व्यक्ति से मिलने की भी इजाजत नहीं होती है और न ही वे घर के किसी भी सामान को हाथ लगा सकती हैं।
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एक महीने तक उन्हें यह यातना झेलनी पड़ती है। हर महीने मासिक धर्म के दिनों में भी एक सप्ताह तक उन पर यही प्रतिबंध लागू होते हैं।
स्थानिय महिलाओं को इस रिवाज से कोई परेशानी नहीं:
महिलाओं को इस रिवाज से कोई परेशानी नहीं हैं। वे मानती हैं कि यह उनकी परंपरा उनके पूर्वजों से चली आ रही है और वे चाहती हैं यह परंपरा आगे भी चलती रहे।
वहीं जिले के डीएम को जब इस बात की जानकारी मिली तो वह महिलाओं के सम्मान के लिए गांव मे जागरुकता फैलाने का काम शुरु करने की बात करते नजर आए।