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sweet relation

रिश्ते नाते हमारी जिंदगी का एहम हिसा है इनको आंच न आने दे…….

रिश्ते की अहमियत कोई मां से पूछे जिसके लिए अपने बच्चे से बड़ा रिश्ता कोई नहीं है, और इसीलिए कहा जाता है कि औरत के लिए मां बनने से बड़ा सुख कोई दूसरा नहीं। किसी बहन से पूछिए भाई का रिश्ता क्या होता है। जब रक्षाबंधन आता है। हर रिश्ते की अपनी जगह होती है, और उसे निभाने का हुनर आप में होना चाहिए।

रिश्ते तभी स्वस्थ बने रह सकते हैं। जब अपेक्षाएं न्यूनतम और वाजिब हों। अन्यथा रिश्तों में दरार आने में देर नहीं लगती फिर वह रिश्ता कितना ही मधुर और घनिष्ठ क्यों न हो। रिश्तों के इस चक्रव्यूह को समझिए और कुछ ऐसा करिए कि इस चक्रव्यूह में फंसने की बजाय आप रिश्तों का आनंद लेते रहें, यही रिश्ते निभाने की असली कला है। समाज में रहकर आपको मानवता का महत्व जानना जरूरी है।

आप सब जानते है, कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। और सामाजिक प्राणी है, तो रिश्ते भी होंगे ही। वैसे तो प्रेम एक ऐसी भावना है, जो मनुष्य तो मनुष्य, मूक पशुओं तक से रिश्ता जोड़ देती है। रिश्ते भी कई प्रकार के होते हैं। अगर आप रिश्ते को दिलो और दिमाग से निभाए तो यहीं पर ही स्वर्ग दिखेगा।

दुनिया रिश्तों पर चल रही है. खून के रिश्ते, दोस्ती के रिश्ते, सामाजिक रिश्ते और मानवता का नाता. इन 4 कैटेगरी में सारे रिश्ते आ जाते हैं, और इन्हीं के इर्दगिर्द हम जीवन गुजार लेते हैं। किसी ने ठीक ही कहा था,  ‘‘अगर रिश्तेनाते निभाना आप की कमजोरी है, तो आप इस दुनिया के सब से मजबूत इंसान हैं.’’ उन की बात सच है क्योंकि हर रिश्ता बनाने के बाद उसे निभाना पड़ता है वरना वह रिश्ता खत्म हो जाता है।

भले ही खून के रिश्ते हमें जन्म से मिल जाते हों लेकिन उन्हें बनाए रखने के लिए निभाना पड़ता है। मतलब उस पर मेहनत करनी पड़ती है। मेहनत करने से आशय यह नहीं है, कि किसी तरह की खुशामद करनी पड़ती हो बल्कि रिश्तों को निभाने के लिए समय और समझदारी की जरूरत होती है।

आज एकल परिवारों का चलन बढ़ रहा है, भाई व बहन अकेले हो रहे हैं, पहले की तरह परिवारों में 7-8 भाई बहन नहीं हैं। ऐसे में उन रिश्तों की अहमियत बढ़ जाती है। जो खून के न हों, जैसे दोस्ती, व्यापारिक या आसपड़ोस के रिश्ते।

कुछ रिश्ते ऐसे भी बनाने पड़ते हैं, जो समय की जरूरत होते हैं, जैसे व्यापारिक रिश्ते, आसपड़ोस से संबंध, क्लब या अन्य सामाजिक गठबंधन. ये रिश्ते बनते तो हमारी जरूरतों की वजह से हैं लेकिन अगर हम इन में स्नेह और अपनापन भी शामिल कर लें तो कोई हर्ज नहीं है, न जाने कब ये गहरा रूप ले लें और जीवनभर सार्थक साथ निभाएं।

 

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